मराठा सेनापति भाऊ यदि महाराजा सूरजमल के परामर्श को मान लेते तो पानीपत युद्ध में उनकी पराजय नहीं होती और न अंग्रेजों को भारत में प्रवेश करने का अवसर मिल पाता। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस युद्ध के बाद देश में विदेशी शक्तियों ने अधिकार जमा लिया। सूरजमल ने अपने जीवन में अस्सी युद्ध लड़े और सभी में विजयी रहे, उन्हें कोई राजा-महाराजा हरा नहीं पाया। इमाद के लेखक ने सत्य ही उसे जाटों का प्लेटो कहा है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए दिल्ली में इमाद से लड़े गए युद्ध में धोखे से महाराजा सूरजमल 25 दिसंबर 1763 को वीरगति को प्राप्त हो गए। 25 दिसंबर ईशा का बलिदान दिवस विश्व का महान पर्व बन गया। उनके 256वें बलिदान दिवस पर समूचा देश उन्हें नमन करता है।