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भरतपुर

शहर का चैन दांव पर, अवैध कॉम्पलेक्स का नकाब

मास्टर प्लान की पालना नहीं कर आवासीय कालोनियों में व्यावसायिक गतिविधियों को मंजूरी दे देने पर आवासीय कालोनियों का सुख चैन छिन गया है।

भरतपुरJun 17, 2017 / 11:45 am

rajesh khandelwal

मास्टर प्लान की पालना नहीं कर आवासीय कालोनियों में व्यावसायिक गतिविधियों को मंजूरी दे देने पर आवासीय कालोनियों का सुख चैन छिन गया है।

लोग आए दिन व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण की शिकायत करते हैं लेकिन इन गतिविधियों से पैसे कमा चुकी सरकार और उसकी एजेंसियां जनता को राहत दिलाने की जरा भी नहीं सोच रही है।
यूआईटी ने आवासीय कॉलोनियों को विकसित इसलिए किया ताकि लोगों को चैन से रहने का आसरा मिल सके। लेकिन छोटी-मोटी दुकानें, अग्रभाग में पूरी व्यावसायिक गतिविधियां, कहीं अलग-अलग तल पर चल रही व्यावसायिक गतिविधियां चलाने के लिए मकानों को शॉपिंग कॉम्पलेक्स की शक्ल दे दी गई। निगम व यूआईटी आंखें मूंदे हैं। किसी हादसे के बाद ही भवन निर्माण की मंजूरी के लिए संबंधित भवन की फाइल को टटोला जाता है। जैसा कि मैरिज होम हादसे में हुआ।
नए बाजार नहीं हुए विकसित

भरतपुर शहर का दुर्भाग्य ही है कि इसकी आबादी का विस्तार काफी दूर तक हो चुका लेकिन आबादी की जरुरत अनुसार नए बाजार विकसित नहीं किए गए।
आज भी शहरवासियों सहित गांव-देहात से आने वाले लोगों की जरुरत का सामान मुख्य बाजार में जाने पर मिलता है। यही वजह है कि बिजलीघर से लेकर कुम्हेर गेट के बीच बसे बाजार से जुड़ी गलियों में रिहायशी मकान बहुमंजिला दुकानों में बदलते जा रहे हैं।
आबादी में बाजार के हाल

कुम्हेर गेट से कोतवाली चौराहा : तेजी से बाजार पनपा है। पुरानी दुकानों तथा रिहायशी मकानों को तोड़कर कॉम्पलेक्स कुछ वर्ष में विकसित हो गए।
कोतवाली से लक्ष्मण मंदिर : मुख्य बाजार के अलावा अंदरुनी क्षेत्रों में कई दुकानों का बाजार वर्षों से संचालित है।
लक्ष्मण मंदिर से गंगा मंदिर : शहर का सबसे सघन व्यापारिक क्षेत्र। सड़क पर बनी दुकानों व मकानों में कई मंजिला व्यावसायिक परिसर पनप गए। हालात ऐसे हैं के लक्ष्मण मंदिर का पुरातन स्वरूप भी व्यावसायिकता की भेंट चढ़ चुका है। इसमें बहुसंख्यक घर व्यापारिक केन्द्र बन चुके हैं। शापिंग काम्पलैक्स विकसित हो चुके।
चौबुर्जा से बिजलीघर : इस क्षेत्र में दो दशकों में व्यावसायिक गतिविधियां तेजी से पनपी। मकानों में लोगों ने दुकानें आदि बनाकर छोटे-छोटे बाजार विकसित कर लिए। ऐसे में पार्किंग की मारामारी हो रही है।


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