जब संसाधन नहीं तो क्यूं ले रहे मरीज आलम यह है कि शहर के ज्यादातर निजी अस्पताल कोविड-19 मरीजों को मनमर्जी से भर्ती कर मनमाने तरीके से दाम वसूल रहे हैं। खास बात यह है कि इनके पास कोविड मरीजों के उपचार की पूरी सुविधा तक नहीं है। ऑक्सीजन, रेमडिविसिर इंजेक्शन एवं ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर आदि यह सरकारी स्तर से या भामाशाह से ले रहे हैं। लोगों का जीवन बचाने के नाम पर मिल रही सरकारी मदद से यह अस्पताल चांदी कूटते नजर आ रहे हैं। आलम यह है कि सब कुछ सरकारी अस्पताल से लेने के बाद यह कोरोना पॉजिटिव मरीजों को भर्ती कर मनमानी पैसा वसूल कर रहे हैं, जिन पर विभाग की अनदेखी के चलते अंकुश नहीं लग पा रहा है। सरकारी वेंटीलेटर से निजी अस्पताल में उपचार करने संचालकों से यह भी नहीं पूछा जा रहा कि जो मरीज वेंटीलेटर पर जा रहा है, उसकी चिकित्सकीय देखरेख के लिए फिजीशियन या एनेस्थेटिक है या नहीं।
किस अस्पताल को कितने मिले इंजेक्शन 60 – जिंदल हॉस्पिटल 20 – सिटी हॉस्पिटल 6 – भरतपुर निर्संग होम 6 – एमजे हॉस्पिटल इंजेक्शन देने में भी बरसी मेहरबानी
शहर के जिंदल हॉस्पिटल ने सरकारी दरियादिली का खूब फायदा उठाया है। जिंदल हॉस्पिटल पहले सरकारी वेंटीलेटर जुटाने में अव्वल रहा तो रेमडिविसिर इंजेक्शन देने में भी सरकारी स्तर पर उस पर मेहरबानी बरस रही है। आलम यह है कि अकेले जिंदल हॉस्पिटल को आरबीएम अस्पताल से 60 रेमडिविसिर इंजेक्शन दिए गए हैं, जो शहर के अन्य सभी निजी अस्पतालों से बहुत ज्यादा हैं। हालांकि रेमडिविसिर की सरकारी दर तय है, फिर भी दूसरे निजी अस्पतालों को 20 से ज्यादा इंजेक्शन नहीं मिले हैं।
अब सामने आ रहे हर दिन नए केस जिस निजी हॉस्पिटल को जिला कलक्टर की मौखिक स्वीकृति पर वेंटीलेटर दिए गए थे, अब उसी के हर दिन नए मामले सामने आ रहे हैं। शुक्रवार को दो और मामले सामने आए। ऐसे में उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पहले वेंटीलेटर के किराया कुछ बताया और मरीज की मौत के बाद कुछ वसूला गया। अब ऐसे मरीजों के परिजन भी हाइकोर्ट में दायर याचिका में साथ होने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अगर किसी मरीज के परिजन का नाम सामने आ जाता है तो खुद प्रशासनिक अधिकारी, राजनेता व हॉस्पिटल संचालक के खास लोग दबाव डालकर चुप करा रहे हैं। इसलिए अब वह नाम उजागर किए बगैर ही कार्रवाई करेंगे। क्योंकि जिला प्रशासन को शिकायत करने का कोई मतलब ही नहीं है। क्योंकि जिला प्रशासन ही इस लूट में सबसे बड़ा सहयोगी है। यह जगजाहिर हो चुका है कि जब वेंटीलेटर देने के बाद खुद जिला कलक्टर ही बार-बार बयान बदल रहे थे तो अचानक राज्य सरकार के आदेश को अपनी पहल बता दिया। मतलब साफ है कि इसमें राजनेताओं की मिलीभगत भी शामिल है। जिला प्रशासन को भी न्याय प्रक्रिया के तहत पार्टी बनाकर जबाव मांगना चाहिए। सबसे बड़ी खामी और झूठ खुद जिला प्रशासन ने ही कहा है।
इनका कहना है -मांग के अनुसार आरबीएम की टीम इंजेक्शन देना निर्धारित करती है। इसमें मरीज के ऑनलाइन रिकॉर्ड, आरटीपीसीआर रिपोर्ट एवं मरीज की गंभीर स्थिति पर निजी अस्पतालों को रेमडिविसिर मुहैया कराए जा रहे हैं। इंजेक्शन किसने प्रिस्क्राइब किया है, यह हम नहीं जांचते।
– डॉ. जिज्ञासा साहनी, प्रमुख चिकित्स अधिकारी आरबीएम