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भरतपुर

महामारी में चिकित्सकों की अपने परिवारों से बढ़ी दूरियां

भरतपुर. महामारी के संकट की घड़ी में बीमारी से जूझते लोगों का जीवन बचाने और स्वस्थ जनों को सावचेत करने की अग्नि परीक्षा में चिकित्सक स्वयं का आहुत करने से पीछे नहीं हटते।

भरतपुरApr 02, 2020 / 07:01 pm

pramod verma

महामारी में चिकित्सकों की अपने परिवारों से बढ़ी दूरियां

महामारी में चिकित्सकों की अपने परिवारों से बढ़ी दूरियां

भरतपुर. महामारी के संकट की घड़ी में बीमारी से जूझते लोगों का जीवन बचाने और स्वस्थ जनों को सावचेत करने की अग्नि परीक्षा में चिकित्सक स्वयं का आहुत करने से पीछे नहीं हटते। यह हमेशा से होता आया है। इसकी बानगी अब कोरोना वायरस के संक्रमण से बढ़ते प्रभाव से दिखाई दे रही है, जहां मेडिकल कॉलेज से संबद्ध आरबीएम में लगभग 40 चिकित्सक व 90 से 100 नर्सिंग स्टाफ अपने परिवार से दूरी बनाते हुए आमजन को इस विपदा से मुक्ति दिलाने में जुटे हैं।
इन्हीं में से हैं काली की बगीची निवासी डॉ. धर्मेंद्र सिंह कोरोना यूनिट में मरीजों को देखते व्यस्त दिखे। क्योंकि, जनता कफ्र्यू के बाद संक्रमण की महामारी की आशंका पर लॉक डाउन किया गया। तब से अब तक बच्चों से मिलने का अवसर कम हो गया है। लगता है जैसे अलग-थलग हो गए हैं। घर पर न दिन में आने का पता न रात को जाने का पता है। इसलिए भी बच्चों से दूरी बढ़ गई है और हमें भी संक्रमण की स्थिति में उनके पास जाने से डर लगता है। अड़ोसी-पड़ोसी भी हमसे दूर रहना चाहते हैं। ऐसे में परिवार के लोग टीवी देखकर, कैरम या अन्य खेल खेलकर समय व्यतीत करने के साथ हमारा इंतजार करते हैं। हम बच्चों को हाथ भी नहीं लगा पाते।

वहीं डॉ. रोहिताश चौधरी भी संक्रमण की आशंका को लेकर अस्पताल आने वालों की स्क्रीनिंग व उपचार में लगे हैं। हालांकि ये मेडीकल कॉलेज में रहते हैं फिर महामारी के दौर में अपने परिजनों से दूर हैं। क्योंकि, सीमाएं सील हैं और आने-जाने की व्यवस्था नहीं है। वहीं ऐसी स्थिति में मरीजों का उपचार इनके लिए सर्वोपरि है। इन्हें भी कॉलेज से निकलने के बाद न दिन का पता है और न रात को जाने का पता है। परिजनों की याद आए तो फुरसत के कुछ क्षणों में उन्हें सावचेत करने के साथ दो बातें कर लेते हैं। ये लोगों को लॉक डाउन की पालना करने का संदेश भी दे रहे हैं।

इसी तरह कोरोना यूनिट में कोतवाली निवासी चिकित्सक बॉबी कश्यप दिन-रात ड्यूटी दे रहीं हैं। इनके साथ फीमेल नर्स रश्मि गुप्ता, मोनिका कालरा भी संक्रमण के संदिग्ध आने पर उनकी स्क्रीनिंग और जांच व मौसमी बीमारी के लक्षण होने उपचार दे रही हैं। इनके परिवार में भी बच्चे इंतजार करते रहते हैं। रात को पहुंचे तो बच्चों की आंखें एक आहट पर खुल जाती हैं। वहीं दिन की दिनचर्या टीवी, कैरम, मोबाइल पर गैम में बितानी पड़ती है। अगर मां के आने का समय पता हो तो दिन में खेलते रहते हैं। समय की जानकारी न हो तो दिन में सो जाते हैं।

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