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भरतपुर

सरकारी संजीवनी से रोशन हुए आतिशबाजी उद्योग

– फैक्ट्रियों में चला काम- एनसीआर से राहत की उम्मीद

भरतपुरOct 17, 2021 / 02:31 pm

Meghshyam Parashar

सरकारी संजीवनी से रोशन हुए आतिशबाजी उद्योग

सरकारी संजीवनी से रोशन हुए आतिशबाजी उद्योग

भरतपुर . सरकारी बंदिशों से फुस्स हुए पटाखा उद्योग को अब सरकारी संजीवनी ने रोशन कर दिया है। दिवाली से पहले आई इस राहत ने खुशियों के बम फोड़ दिए हैं। ऐसे में सुस्त उद्योगों में अब फिर से आतिशबाजी की बहार है। शनिवार को फैक्ट्रियों में फिर से हलचल शुरू हो गईं। ऐसे में व्यापारियों के साथ श्रमिकों ने भी राहत की सांस ली है। हालांकि एनसीआर पर अभी रोक है, लेकिन बाहर आतिशबाजी भेजे जाने से उद्योगों के चलने की उम्मीद बंधी है। ऐसे में इस उद्योग में दिवाली से पहले जश्न है।
पिछले दो साल से पटाखे चलाने पर बंदिश होने के कारण आतिशबाजी उद्योग बेपटरी हो गया था। कई जगह तो ताला लगने की नौबत हो गईथी। अब सरकार ने प्रदेश में दो घंटे पटाखे चलाने की छूट दी है। ऐसे में दिवाली का उल्सास अब दोगुना हो गया है। पटाखों पर वैन होने और भरतपुर के एनसीआर में शामिल होने से जिले को दोहरा झटका लग रहा था। ऐसे में यहां के उद्योग-धंधे दम तोड़ रहे थे। आलम यह था कि नए उद्योग धंधे लगने की बात तो दूर पुराने धंधे भी दम तोड़ रहे थे। अब सरकारी छूट के बाद इन्हें खासी राहत मिली है। यह राहत इन उद्योगों के लिए नई रोशनी लेकर आई है।
ग्रीन पटाखों से नहीं प्रदूषण

फुलझड़ी बनाने वाले दीपक चंदानी बताते हैं आतिशबाजी चलाने की परंपरा करीब 4 हजार वर्ष पुरानी है। भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने पर अयोध्यावासियों ने आतिशबाजी कर उनका स्वागत किया था। वे बताते हैं कि ग्रीन पटाखों से कतई प्रदूषण नहीं होता है। प्रदूषण ऐसे पटाखे करते हैं, जो आसमान में जाकर फूटते हैं। भरतपुर में बनने वाली फुलझड़ी और पटाखों से कतई प्रदूषण नहीं होता है। ऐसे में प्रदूषण के नाम पर इस पर रोक लगाना गलत है। पहले ही कोरोना की मार से ऐसे उद्योग आहत थे। अब एनसीआर ने इसे बिल्कुल तोड़कर रख दिया है। ऐसे में 8 से 10 करोड़ सालाना होने वाला कारोबार सिमटकर 2 से 4 करोड़ तक आ गया है। अब सरकार के इस फैसले से उद्योगों को राहत मिलेगी। चंदानी बताते हैं कि पहले भरतपुर में चार फैक्ट्री थीं। इनमें से दो बंद हो चुकी हैं। एक फैक्ट्री में कम से कम 50 श्रमिक काम करते हैं, जिनके परिवार का गुजारा इसी मेहनताने से होता है। सरकार को इस उद्योग को राहत देनी चाहिए, जिससे भरतपुर के लोगों को रोजगार मिल सके।

यह बोले व्यापारी
सरकार के इस फैसले का तहेदिल से स्वागत है। यह हमारे लिए संजीवनी के जैसा है। दो साल से धंधा बिल्कुल चौपट हो गया था। अब कुछ राहत मिली है। ऐसे में बाहर माल भेज सकेंगे। व्यापारियों के साथ बेरोजगार श्रमिकों को भी बहुत बड़ी राहत मिलेगी। एनसीआर भरतपुर के लिए फायदेमंद साबित नहीं हो रहा है। प्रदूषण की मार के बहाने यहां के उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह भरतपुर को एनसीआर से बाहर कराए, जिससे यहां उद्योग धंधों को राहत मिल सके।
– दीपक कुमार चंदानी, व्यापारी आतिशबाजी उद्योग

सरकार का यह आदेश व्यापारियों के लिए बहुत बड़ी राहत लेकर आया है। इससे आतिशबाजी उद्योग को नईजान मिलेगी। भले ही भरतपुर में आतिशबाजी चलाने पर रोक हो, लेकिन हम बाहर माल सप्लाई कर सकेंगे। इससे व्यापारियों के साथ श्रमिकों को भी बड़ी राहत मिलेगी। खास तौर से बंद होने के कगार पर खड़े उद्योगों को इससे जीवनदान मिला है। भरतपुर यदि एनसीआर से हट जाए तो इससे व्यापार को दोहरा लाभ हो सकता है। फिलहाल एनसीआर से फायदा कम और हानि ज्यादा नजर आ रही है।
– मनीष कुमार चंदानी, व्यापारी आतिशबाजी उद्योग

यह बोले श्रमिक

मैं यहां पिछले 20 साल से अधिक समय से काम कर रहा हूं, लेकिन पिछले तीन साल से आतिशबाजी उद्योग की हालत बहुत दयनीय है। अब सरकार से कुछ राहत मिली है तो यह उद्योग अब राहत की सांस ले रहा है। इस कारोबार से बहुतेरे लोगों को रोजगार मिल रहा है। पिछले तीन साल से श्रमिक रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे थे। अब उम्मीद जगी है कि कुछ अच्छा होगा।
– दिगम्बर सिंह कश्यप, श्रमिक आतिशबाजी फैक्ट्री नौंह

पहले एनसीआर ने इस उद्योग की हालत पतली कर दी। इसके बाद कोरोना ने उद्योगों को ठप सा कर दिया। काम नहीं मिलने के कारण परिवार का गुजारा मुश्किल हो रहा था। अब यह काम चलने लगा है तो मजदूरी मिल रही है। ऐसे में अब परिवार का गुजारा ठीक से हो सकेगा।
– प्रेमवती, श्रमिक नौंह आतिशबाजी फैक्ट्री

सरकार से इन उद्योगों को राहत मिली है। ऐसे में अब हमारी दिवाली भी बेहतर तरीके से मन सकेगी। पहले काम नहीं मिल रहा था तो परिवार के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया था। होली के बाद इसका काम शुरू होने से लगातार रोजगार मिलता रहता है। इससे परिवार का पालन-पोषण बेहतर तरीके से हो जाता है।
– यशोदा, श्रमिक, नौंह आतिशबाजी फैक्ट्री

आंकड़ों में आतिशबाजी उद्योग

4 हजार वर्ष पुरानी है आतिशबाजी चलाने की परंपरा

4 फैक्ट्रियों में से दो हो चुकी हैं बंद

10 करोड़ रुपए का है सालाना कारोबार
4 करोड़ का रह गया सिमटकर उद्योग

100 परिवार आश्रित हैं इस उद्योग पर

50 श्रमिक पहले काम करते थे पहले एक फैक्ट्री में, अब महज 10-12

25 लाख का माल बाहर जाता था प्रति वर्ष एक फैक्ट्री से

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