इस परेशानी से निजात को लेकर दोनों अस्पतालों के प्रभारी चिकित्सकों ने जिला प्रशासन, नगर निगम आयुक्त व अस्पताल प्रशासन को लिखित व मौखिक शिकायत की, फिर भी समस्या जस की तस है। थक हारकर अस्पताल का स्टाफ गंदगी, कीचड़ और दुर्गन्ध में बैठने पर मजबूर है।
इन अस्पतालों में करीब सात से आठ वर्ष पहले 80 से 110 मरीज प्रतिदिन उपचार कराने आते थे। अब इनकी संख्या घटते-घटते 40 से 45 रह गई है। कह सकते हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी से मरीज भी यहां उपचार कराने आने में रुचि नहीं दिखा रहे। इसलिए मरीजों का औसत कम होता जा रहा है।होम्योपैथिक अस्पताल में कम्पाउण्डर बनवारी लाल का कहना है कि जनाना अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजन व खुद मरीज होम्यो व आयुर्वेद अस्पताल के आसपास शौच करते हैं।
वहीं नाला अवरुद्ध है, जिससे गंदा पानी भर जाता है। गंदगी और दुर्गन्ध के कारण बैठना मुश्किल है। मरीजों को गंदे पानी से होकर अस्पताल आना पड़ता है। इसलिए मरीजों की संख्या भी कम हुई है। कई बार पीएमओ व अन्य अधिकारी से लिखित व मौखिक शिकायत की। मगर निदान नहीं हुआ।
आयुर्वेद अस्पताल में चिकित्सक डॉ. परमानंद का कहना है कि मरीजों के खुले में शौच और नाले का गंदा पानी जमा होने से अस्पताल के आसपास गंदगी रहती है। मरीजों की संख्या भी कम हो गई है। पीएमओ से कई बार शिकायत कर चुके हैं। कोई प्रभाव नहीं आया। ऐसे में गंदगी के बीच उपचार करना पड़ता है। अस्पताल की स्थिति बदतर होती जा रही है। यहां तक की अस्पताल क्षतिग्रस्त है। मरम्मत होनी चाहिए। कोई निदान नहीं किया।