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भरतपुर में मध्य एशिया से आए पेलिकन से घना गुलजार, पर्यटकों को लुभा रही अठखेलियां

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भरतपुरJan 27, 2019 / 03:58 pm

Nidhi Mishra

migratory birds in Ghana sanctuary, Bharatpur

migratory birds in Ghana sanctuary, Bharatpur

भरतपुर। मध्य एशिया से आए पेलिकन से इस बार घना ही नहीं आसपास के गांव भी गुलजार हैं। जहां जलभराव वाले स्थानों पर पेलिकन पक्षियों की अठखेलियां पर्यटकों को खूब लुभा रही हैं। जहां साईबेरिया के पास के ही मध्य एशिया से पेलिकन की संख्या यहां बढ़ी है तो वहीं साईबेरियन क्रेन का अब भी इंतजार है। क्योंकि 15 साल पहले तक सात हजार किलोमीटर का हवा में सफर तय करने आने वाले साईबेरियन सारस देखना अब सपना सा बन चुका है। घना को विश्व में साईबेरियन क्रेन के लिए ही प्रमुख माना जाता है। हालांकि इस सपने को फिर साकार किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए राज्य व केंद्र सरकार के स्तर किसी बड़े प्रोजेक्ट को स्वीकृत करने की आवश्यकता है। जो कि पिछले लंबे समय सिर्फ फाइलों में धूल चाट रहा है। साईबेरियन सारस को अंतिम बार वर्ष 2002-03 में ही देखा गया था। इसके बाद अफगानिस्तान इलाके में उनके अंधाधुंध शिकार ने उनका घना को आने का रास्ता ही रोक लिया। इससे साईबेरियन सारस ने यहां आना ही बंद कर दिया।
राजस्थान के पूर्वी द्वार भरतपुर की पहचान केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जानी जाती है। केवलादेव को भरतपुर पक्षी विहार भी कहा जाता है। इसकी वजह उद्यान में सैकड़ों की संख्या में पाए जाने वाले दुर्लभ व विलुप्त होते पक्षी हैं। जो सैकड़ों मील का फासला तय कर घना में ठिकाना बनाते हैं। इसमें साईबेरियन सारस भी शामिल था। घना की पहचान से जुड़े इन पक्षियों को वापस लाने के लिए बीच में प्रयास भी हुए लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। विशेषज्ञों ने घना में ही एक ब्रीडिंग सेंटर स्थापित करने का सुझाव दिया था। विशेषज्ञों की रिपोर्ट राज्य व केन्द्र सरकार को भेजी गई लेकिन उच्च स्तर पर खास प्रयास नहीं होने से मामला ठण्डा पड़ गया।
जानिए क्यों अधिक संख्या में पेलिकन

बताते हैं कि इस बार बारिश अच्छी होने से पक्षियों के लिए मछलियां भी खूब है। पेलिकन ने पहले धौलपुर का रुख किया, लेकिन वहां बांध पर मछलियों के विक्रय का ठेका होने के कारण पटाखे चलाने से वे आगरा और भरतपुर का रुख कर गए। यहां उनके लिए शांति होने के कारण संख्या बढ़ गई। पेलिकन के लिए कम से कम एक से डेढ़ फीट पानी होना जरूरी होता है। जो कि इस बार जगह-जगह उपलब्ध है।
साईबेरियन सारस का एक जोड़ा घना लाएं तो बने बात

एक्सपटर्स की मानें तो घना में साईबेरियन सारस का एक जोड़ा लाकर यहां रखा जाए और उस पर अध्ययन किया जाए कि आखिर ऐसी पिछले कुछ सालों में क्या कमी रही है कि वे यहां नहीं आ रहे हैं। इसके बाद ब्रीडिंग पर ध्यान दिया तो घना एक बार फिर उनसे आबाद हो सकता है। घना में वर्ष 2012 में हुई अंतरराष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला में साइबेरियन क्रेन को वापस घना में लाने पर मंथन हुआ। इसमें विशेषज्ञों ने एक साईबेरियन जोड़ा घना में लाने की बात कही। वहीं, उद्यान में ही रिसर्च एवं ब्रीडिंग सेंटर स्थापना पर विचार हुआ। कार्यशाला की रिपोर्ट में घना में सेमी कैप्टिव सेंटर तैयार कर बेल्जिमय व जर्मनी से साईबेरियन क्रेन का जोड़ा लाकर स्थानीय माहौल में रखने का विशेषज्ञों ने सुझाव दिया था। लेकिन इसके लिए भारी बजट और केन्द्र सरकार स्तर पर प्रोजक्ट पर अधिकारियों के कोई रुचि नहीं दिखाने से मामला ठण्डा पड़ गया। उधर, साईबेरिया में एक साईबेरियन क्रेन को भी तैयार किया गया लेकिन बाद में उसकी आकस्मिक वजह से मौत होने से क्रेन भरतपुर लाने की योजना ठप पड़ गई।
रियासत के समय शिकारगाह था घना

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पूर्व में भरतपुर रिसायत के समय एक शिकारगाह की तरह था। आजादी के बाद वर्ष 1982 में केन्द्र सरकार ने इसको राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया और उसके बाद वर्ष 1985 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया था।
यह है साईबेरियन सारस नहीं आने के दो कारण

1. साइबेरिया के सेंट्रल इलाके से क्रेन अफगानिस्तान होकर भारत पहुंचती थी। लेकिन अफगानिस्तान में उन दिनों छिड़े गृह युद्ध ने क्रेन की आवाजाही को प्रभावित किया। क्रेन अफगानिस्तान में ठहराव करती थी, जहां बड़े स्तर पर शिकार होने से धीरे-धीरे यह मार्ग बंद हो गया।
2. साईबेरिया से तीन अलग-अलग मार्गों से क्रेन आती हैं। इसमें सेंट्रल साईबेरिया से आने वाले क्रेन भारत पहुंचती है जबकि वेस्टर्न एरिया से क्रेन ईरान जाती हैं। ये दोनों मार्ग वर्तमान में बंद पड़े हैं। इसकी बड़ी वजह शिकार होना है। वहीं, ईस्टर्न इलाके से क्रेन चीन जाती है, जो आज भी पहुंच रही है। इसकी वजह इन इलाकों में उन्हें ब्रीडिंग के लिए सुरक्षित स्थान मिलना है। यहां हर साल करीब 2 से 2500 की संख्या में क्रेन पहुंचती हैं।
घना में कब-कितने आए पेलिकन

वर्ष संख्या

2018-19 567

2017 339

2016 302

2015 265

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