आरबीएम जिला अस्पताल में कहने को पांच दंत रोग विशेषज्ञ नियुक्त हैं लेकिन यहां न तो रूट कैनाल की जाती है और न ही फिलिंग की सुविधा है। ऐसे में जो रूट कैनाल सरकारी अस्तपताल में सिर्फ दो सौ रुपए में हो जाती है उसके लिए मरीजों को निजी डेंटल क्लीनिकों पर पांच गुणा तक अधिक रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। डॉ. प्रणव गुप्ता ने बताया कि अस्पताल की डेंटल चेयर यूनिट व उपकरण खराब पड़े हैं। ऐसे में मरीजों को उक्त दोनों सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं। डॉ. गुप्ता ने बताया कि डेंटल चेयर यूनिट व उपकरणों के लिए कई बार डिमांड की गई।
चिकित्सा विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो जिले के अधिकतर अस्पताल व स्वास्थ्य केन्द्रों पर दंत रोग विशेषज्ञ दांत उखाडऩे व सामान्य बीमारियों का उपचार तो कर रहे हैं लेकिन एक भी मरीज की रूट कैनाल नहीं की गई। आंकड़ों के अनुसार आरबीएम अस्पताल में बीते दो साल में 3135 मरीजों के दांत उखाड़े, कुम्हेर में 234 के, नदबई में 267 के, बयाना में 362 के, नगर में 600, कामा में 68 मरीजों के दांत उखाड़े गए। जबकि कुम्हेर में ८७, नदबई में ५५, नगर व कामां स्वास्थ्य केन्द्रों पर 63-63 फिलिंग की गईं।
जिले के कई स्वास्थ्य केन्द्र तो ऐसे हैं जहां दंत रोग विशेषज्ञ होने के बावजूद न तो रूट कैनाल की जाती है, न फिलिंग और न ही एक्सट्रैक्शन(दांत उखाडऩा) किया जाता है। जिले के भुसावर, डीग, पहाड़ी और शहर स्थित सैटेलाइट अस्पताल में सिर्फ दंत रोगियों को दवाइयां लिखने का कार्य किया जा रहा है।
जिले के कुम्हेर, नदबई, बयाना, नगर, कामां और शहर के सैटेलाइट अस्पताल में दंत रोग विशेषज्ञ भी हैं और डेंटल चेयर व उपकरण की सुविधा भी उपलब्ध है। लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि बीते दो साल में इन स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी मरीजों को रूट कैनाल की सुविधा नहीं मिल पाई। नदबई सीएचसी के दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. रामनिवास मीना का कहना है कि रूट कैनाल तो करते हैं लेकिन रिकॉर्ड में नहीं चढ़ाते थे।