यही वजह है कि बिक्री की प्रक्रिया चलती रहती है। ऐसे में वर्ष 2017 से 2019 में अब तक रिपोर्ट पर गौर करें तो इन वर्षों में 766 नमूने घी, दूध, मावा, पनीर, मिठाई, अचार, मसाले आदि के लिए हैं, लेकिन इनमें से 102 नमूने फेल और शेष पास पाए गए। हालांकि फेल नमूनों का चालान संबंधित संचालक के खिलाफ कोर्ट में पेश होता है, जहां से कार्रवाई की जाती है।
गौरतलब है कि एक दिन में तीन से चार दूध और दुग्ध उत्पादों के नमूनों की कार्रवाई के बाद नमूनों को जांच के लिए अलवर प्रयोगशाला में भेजा जाती है। वहां से रिपोर्ट का देरी से आना मिलावटियों के हौंसले बुलंद कर देता है। ऐसे में दूध और इससे निर्मित खाद्य पदार्थ खाने से लोग बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं। जबकि, संभाग मुख्यालय पर खाद्य जांच की प्र
यह सब जानते हैं कि जिले के मेवात क्षेत्र में त्योहार पर मिलावटी दूध से मिठाइयां तैयार कर बेची जाती है। इसका प्रभाव भरतपुर में भी हो सकता है। लेकिन, स्वास्थ्य विभाग के अधीन संचालित खाद्य सुरक्षा विभाग में कर्मचारियों का अभाव कार्य की गति को प्रभावित कर रहा है। इसलिए वर्ष 2017 में 275 नमूने लिए इनमें से 41 फेल, वर्ष 2018 में 271 में से 37 फेल और वर्ष 2019-20 में अब तक 220 नमून लिए 24 फेल रहे। इनमें से 10 के चालान कोर्ट में पेश किए है, जो विचाराधीन हैं।
संभाग मुख्यालय पर खाद्य के नमूनों की जांच के लिए 50 लाख रुपए की लागत से भवन निर्मित किया है, जहां जांच मशीनें भी उपलब्ध हैं। इस स्थिति में भी जांच अलवर में हो रही हैं। वहां से रिपोर्ट आने में 15 से 20 दिन लग जाते हैं तब तक कार्रवाई शिथिल रहती है। जबकि, यहां मुख्यालय पर प्रयोगशाला है। सूत्रों का कहना है कि प्रयोगशाला में फूड एनालाइजर का अभाव है। इसलिए नमूने अलवर भेजे जाते हैं। अगर यहां जांच शुरू हो जाए तो दो दिन में रिपोर्ट मिल जाएगी।
भरतपुर में सीएमएचओ डॉ. कप्तानसिंह का कहना है कि खाद्य सुरक्षा में स्टाफ का अभाव है और जांच अलवर में होती हैं। वहां से रिपोर्ट आने में समय लगता है। यहां प्रयोगशाला में फूड एनालाइजर नहीं हैं। यहां जांच नहीं होती। विभाग दूध उत्पादों में मिलावट की रोकथाम के लिए कार्रवाई कर रहा है। रिजेंट के लिए हमने दस लाख की डिमांड भेजी है।