प्रकरण के मुताबिक घटना ११ जुलाई२०१६ की है। बाल संप्रेक्षणगृह में रहने वाले आधा सैकड़ा बच्चों ने अचानक उत्पात मचाना शुरु कर दिया। संप्रेक्षणगृह में लगे लाइट व, टीवी व अन्य सामानों क ो तोडफ़ोड़ करना शुरू कर दिया। शोर शराबा सुनकर किशोर न्याय बोर्डकी तत्कालीन अध्यक्ष मोहनी कवर अपचारी बच्चों को समझाईश देने पहुंची थी, लेकिन अपचारी बच्चे अचानक आक्रोशित हो गए।अपचारी बच्चों ने वहां उपस्थित कर्मचारियों व आरक्षक पर हमला कर दिया। इस घटना के बाद अपचारी बच्चे लाठी, रॉड लेकर छत पर चढ़ गए और समझाईश के लिए घटना स्थल पर पहुंचे कलक्टर, न्यायाधीश, एसपी पर न केवल पथराव किया, बल्कि उन्हें अश्लील गालियां भी दी।
प्रकरण में कुल २२ गवाह थे। एफआईआर कराने वाले तत्कालीन कार्यक्रम अधिकारी ने न्यायालय में बयान में बताया कि वह घटना की सूचना पर बाल संप्रेक्षणगृह पहुंचा था। वह तोडफ़ोड़ करते किसी बच्चे को करते नहीं देखा और न ही किस अपचारी बच्चे को हमला करते देखा।
खास बात यह है कि इस मामले में एक वर्ष बाद राष्ट्रीय मानव अधिकार की टीम दिसंबर २०१७ में दुर्गपहुंची और पूरे प्रकरणक ी जांच की। जांच तीन दिनों तक चली। इस दौरान आयोग की टीम ने तत्कालीन कर्मचारी, अधिकारी व अपचारी बच्चों का बयान दर्ज किया। सेंट्रल जेल में निरुद्ध आरोपी दीपेन्द्र गोड़ उर्फ मसान का भी आयोग ने बयान लिया था। आरोपी मशान घटना के बाद से सेंट्रल जेल दुर्ग में निरुद्ध है।