मानपुर ब्लाक के बसेली, खुर्सेकला, खुर्सेखुर्द, कारेकट्टा, मदनवाड़ा, हुरवे, हुरैली, दोरदे, मूचर जैसे गांवों के ग्रामीणों ने आपस में बैठक कर एक रूढ़ीवादी ग्राम सभा का गठन किया और इस ग्राम सभा के जरिए अपनी आवाज बुलंद करनी शुरू की। इस ग्राम सभा का मानना है कि मानपुर और मोहला आदिवासी क्षेत्र है और राज्य की सरकार आदिवासी नहीं है, ऐसे में सरकार का इस क्षेत्र की जमीन पर कोई हक नहीं है और न ही वह इसे लेकर कोई फैसला ले सकती है।
जल, जंगल, जमीन की रक्षा करने में खुद को सक्षम बताते हुए आदिवासी कहते हैं कि पुलिस और प्रशासन के लोग उनकी मदद को कभी नहीं आते। रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा के सचिव राजू मरकाम कहते हैं कि अपने हिसाब से काम करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं ताकि इसमें प्रशासनिक दखल न हो। उन्होंने कहा कि पिछले साल १४ अप्रैल २०१७ को कई गांवों के आदिवासियों ने बैठक कर ग्रामसभा का गठन किया था और इस साल १४ अप्रैल को डॉ. अम्बेडकर की जयंती के मौके पर गांवों में ऐसे बोर्ड लगाए गए हंै।
सचिव राजू मरकाम बताते हैं कि पुलिस प्रशासन दबाव बनाकर गांवों से बोर्ड को निकालने का काम कर रही है लेकिन वे इस रूढ़ीप्रथा परंपरा को कायम रखना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि इस ग्रामसभा के प्रमुख और आदिवासियों के नेता सर्वआदिवासी समाज के अध्यक्ष सुरजुराम टेकाम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है लेकिन पीछे नहीं हटेंगे और पारंपरिक रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा का पालन करते रहेंगे।
सरकार जंगल साफ कर देती है
गांव के संजय तुलावी ने कहा कि आदिवासी अपने जंगल, अपने पर्यावरण की रक्षा खुद करना चाहते हंै। तुलावी ने कहा कि सरकार भी जंगल की रक्षा की बात करती है लेकिन वह जंगल को साफ भी कर रही है, ऐसे में हम खुद अपने हिसाब से रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा के नियमों के तहत काम करना चाहते हैं।
कीमती आयरन ओर की पहाडिय़ों से घिरे इस इलाके में खनन के लिए शासन ने कुछ समय पहले सर्वे कराया था लेकिन यहां वन विभाग, खनिज विभाग का दखल न हो इसके लिए आदिवासियों ने पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर बनाकर अपने देवता का मंदिर बना दिया है। इसी तरह कारेकट्टा के मैदान में अपने एक दिवंगत साथी के नाम का बोर्ड लगाकर इस स्थान को स्टेडियम करार दे दिया गया है।
ऐसा नहीं है कि साल भर तक आदिवासी इस तरह की योजना तैयार करते रहे और अचानक उन्होंने इसे अमल में ला दिया है। पता चला है कि जिस बसेली और मदनवाड़ा क्षेत्र से इस पूरी योजना का संचालन हो रहा था, उस इलाके के पुलिस बेस कैम्प (अब थाना) के अफसरों को इस पूरे मामले की जानकारी थी। पुलिस अफसर इस मामले को हल्के में ले रहे थे और उधर भीतर ही भीतर आदिवासी अपनी बड़ी रणनीति पर काम कर रहे थे। इस बीच जशपुर के पत्थरगड़ी का मामला गरमाया और इसके बाद यहां पुलिस के अफसरों के कान खड़े हुए और आदिवासियों पर दबाव बनाने का काम शुरू हुआ।