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भिलाई

आदिवासियों ने गांवों में बोर्ड लगाकर लिखा- अनुसूचित क्षेत्र, शासन का दखल मना है!

राजनांदगांव के मानपुर इलाके के गांवों के लोगों ने बनाई अपनी रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा, कहा- जल, जंगल, जमीन की रक्षा हम खुद करेंगे

भिलाईMay 07, 2018 / 01:50 pm

Atul Shrivastava

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Adivasis wrote the board in the villages, written- the interference of the scheduled area, the rule is forbidden!

राजनांदगांव। आदिवासी प्रभावित क्षेत्र मानपुर के कई इलाकों को अनुसूचित क्षेत्र करार देने और इन इलाकों में शासन और प्रशासन के प्रवेश को वर्जित करने के बोर्ड लगा दिए गए हैं। आदिवासियों के इस तरह के ऐलान के बाद प्रशासन में हड़कम्प की स्थिति है। दरअसल, आदिवासियों ने जल, जंगल और जमीन पर अपना आधिपत्य कायम करने और शासन, प्रशासन को अपने इलाके से दूर करने के लिए एक साल तक लोगों को एकजुट करने के बाद गांवों में इस तरह के बोर्ड लगा दिए हैं। अब ऐसा हो जाने के बाद पुलिस ने सख्ती से कुछ गांवों में बोर्ड जरूर हटा दिए हैं लेकिन गांवों में इस तरह विरोध की आग जमकर सुलग रही है।

छत्तीसगढ़ के जशपुर इलाके में पत्थरगड़ी की हवा चली है। इस पर बहस के बीच ही अब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्वाचन जिले राजनांदगांव के माओवाद प्रभावित आदिवासी बाहुल्य मानपुर ब्लाक के करीब आधा दर्जन गांवों में जल, जंगल, जमीन पर अपना हक जताने के लिए आदिवासी खुलकर सामने आ गए हैं। आदिवासियों ने बकायदा कई गांवों में संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों में उल्लेखित बातों को बोर्ड में लिखवाकर ऐलान कर दिया है कि इन इलाकों में शासन और प्रशासन का दखल नहीं चलेगा। यहां पर आदिवासियों का फैसला ही मान्य होगा।
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बनाई रूढ़ीप्रथा ग्र्राम सभा
मानपुर ब्लाक के बसेली, खुर्सेकला, खुर्सेखुर्द, कारेकट्टा, मदनवाड़ा, हुरवे, हुरैली, दोरदे, मूचर जैसे गांवों के ग्रामीणों ने आपस में बैठक कर एक रूढ़ीवादी ग्राम सभा का गठन किया और इस ग्राम सभा के जरिए अपनी आवाज बुलंद करनी शुरू की। इस ग्राम सभा का मानना है कि मानपुर और मोहला आदिवासी क्षेत्र है और राज्य की सरकार आदिवासी नहीं है, ऐसे में सरकार का इस क्षेत्र की जमीन पर कोई हक नहीं है और न ही वह इसे लेकर कोई फैसला ले सकती है।
सालभर से तैयारी
जल, जंगल, जमीन की रक्षा करने में खुद को सक्षम बताते हुए आदिवासी कहते हैं कि पुलिस और प्रशासन के लोग उनकी मदद को कभी नहीं आते। रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा के सचिव राजू मरकाम कहते हैं कि अपने हिसाब से काम करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं ताकि इसमें प्रशासनिक दखल न हो। उन्होंने कहा कि पिछले साल १४ अप्रैल २०१७ को कई गांवों के आदिवासियों ने बैठक कर ग्रामसभा का गठन किया था और इस साल १४ अप्रैल को डॉ. अम्बेडकर की जयंती के मौके पर गांवों में ऐसे बोर्ड लगाए गए हंै।
पुलिस बना रही दबाव, अध्यक्ष की गिरफ्तारी
सचिव राजू मरकाम बताते हैं कि पुलिस प्रशासन दबाव बनाकर गांवों से बोर्ड को निकालने का काम कर रही है लेकिन वे इस रूढ़ीप्रथा परंपरा को कायम रखना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि इस ग्रामसभा के प्रमुख और आदिवासियों के नेता सर्वआदिवासी समाज के अध्यक्ष सुरजुराम टेकाम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है लेकिन पीछे नहीं हटेंगे और पारंपरिक रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा का पालन करते रहेंगे।

सरकार जंगल साफ कर देती है
गांव के संजय तुलावी ने कहा कि आदिवासी अपने जंगल, अपने पर्यावरण की रक्षा खुद करना चाहते हंै। तुलावी ने कहा कि सरकार भी जंगल की रक्षा की बात करती है लेकिन वह जंगल को साफ भी कर रही है, ऐसे में हम खुद अपने हिसाब से रूढ़ीप्रथा ग्रामसभा के नियमों के तहत काम करना चाहते हैं।
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आयरन ओर के माइंस पर बना दिया मंदिर
कीमती आयरन ओर की पहाडिय़ों से घिरे इस इलाके में खनन के लिए शासन ने कुछ समय पहले सर्वे कराया था लेकिन यहां वन विभाग, खनिज विभाग का दखल न हो इसके लिए आदिवासियों ने पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर बनाकर अपने देवता का मंदिर बना दिया है। इसी तरह कारेकट्टा के मैदान में अपने एक दिवंगत साथी के नाम का बोर्ड लगाकर इस स्थान को स्टेडियम करार दे दिया गया है।
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सब कुछ पुलिस की जानकारी में

ऐसा नहीं है कि साल भर तक आदिवासी इस तरह की योजना तैयार करते रहे और अचानक उन्होंने इसे अमल में ला दिया है। पता चला है कि जिस बसेली और मदनवाड़ा क्षेत्र से इस पूरी योजना का संचालन हो रहा था, उस इलाके के पुलिस बेस कैम्प (अब थाना) के अफसरों को इस पूरे मामले की जानकारी थी। पुलिस अफसर इस मामले को हल्के में ले रहे थे और उधर भीतर ही भीतर आदिवासी अपनी बड़ी रणनीति पर काम कर रहे थे। इस बीच जशपुर के पत्थरगड़ी का मामला गरमाया और इसके बाद यहां पुलिस के अफसरों के कान खड़े हुए और आदिवासियों पर दबाव बनाने का काम शुरू हुआ।
राजनांदगांव के एसपी प्रशांत अग्रवाल का कहना है कि आदिवासियों को कुछ लोग बहकाने का काम कर रहे थे। लोगों को समझा दिया गया है और आदिवासियों ने खुद ही बोर्ड हटा दिए हैं। कोई बड़ा मामला नहीं है।

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