वैश्विक स्तर पर इनके मांस, चमड़ी, शल्क, हड्डियां व अन्य शारीरिक अंगों की अधिक मांग होने से बड़े पैमाने पर इसका शिकार किया जाता है। इसका मांस लजीज होने से चीन व वियतनाम जैसे कई देशों के होटलों व रेस्तराओं में खाने की लिए परोसा जाता है। अंधविश्वासी, ढोंगी, तांत्रिक इससे काला जादू व टोना-टोटका करते हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी तस्करी की जाती है। चीन व थाईलैंड जैसे कई देशों में इसके शल्कों का उपयोग यौनवर्धक औषधि व नपुंसकता दूर करने के लिए भी किया जाता है। शल्क को निकालने के लिए पैंगोलिन को जिन्दा ही खौलते गर्म पानी में डाल दिया जाता है।
जानकारी के अनुसार विश्व में पैंगोलिन की तस्करी वन्य जीवों में सबसे ज्यादा की जाती है। लगभग तीन सौ पैंगोलिन हर दिन गैर कानूनी तरीके से पकड़े जाते हैं। अनुमान यह भी है कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में इस वन्य जीव की कीमत दस से बारह लाख रुपए तक आंकी गई है। भारत में लगभग बीस से तीस हजार रुपए में इसे बेचा व खरीदा जाता है।
अन्तरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन ) ने अपनी रेड लिस्ट में भी इसको संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल करा रखा है। भारत में इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक में रखा गया है। इसका आखेट करना, इसको सताना, मारना या पीटना, विष देना, तस्करी करना यह सब गैर कानूनी एवं अपराध की श्रेणी में आते हैं। एमसी डाहिरे, परिक्षेत्रीय अधिकारी कुम्हारी, वन मंडल दुर्ग ने बताया कि देखने पर तो शल्क पैंगोलिन का ही प्रतीत हो रहा है मगर उसकी कौन सी प्रजाति है यह कह नहीं सकते। कुम्हारी पुलिस को एफएसएल टेस्टिंग सेंटर हैदराबाद में इसकी जांच कराने का सुझाव दिया है।