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भिलाई

छत्तीसगढ़ साक्षी रहा बिरजू महाराज के मनमोहक कत्थक नृत्य का, BSP के बुलावे पर दो बार आए थे मिनी इंडिया

प्रसिद्ध कत्थक नर्तक और पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज (Birju Maharaj) का नाम लेते ही उनका मनमोहक नृत्य, भावभंगिमाएं और उनके गाए गीत कानों में गूंजने लगते हैं।

भिलाईJan 18, 2022 / 08:47 am

Dakshi Sahu

छत्तीसगढ़ साक्षी रहा बिरजू महाराज के मनमोहक कत्थक नृत्य का, BSP के बुलावे पर दो बार आए थे मिनी इंडिया

छत्तीसगढ़ साक्षी रहा बिरजू महाराज के मनमोहक कत्थक नृत्य का, BSP के बुलावे पर दो बार आए थे मिनी इंडिया

भिलाई. प्रसिद्ध कत्थक नर्तक और पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज का नाम लेते ही उनका मनमोहक नृत्य, भावभंगिमाएं और उनके गाए गीत कानों में गूंजने लगते हैं। सोमवार सुबह-सुबह उनके निधन की खबर आने के बाद सोशल मीडिया में सभी ने उन्हें अपने-अपने ढंग से याद किया। लेकिन भिलाई में सैकड़ों लोग ऐसे भी थे जो पंडित बिरजू महाराज की कलाकारी को जीवंत देख चुके हैं। भिलाई शहर दो बार उनकी प्रस्तुति का साक्षी रहा।
अस्सी के दशक में मिनी इंडिया के लोगों का मन मोहा
80 के दशक में वे दो बार भिलाई आए और दोनों ही बार उनकी अदाकारी अलग ही छाप छोड़ गई। उस जमाने के लोग भले ही अब भिलाई में कम ही रहते हो पर कुछ शख्स की आंखों में पंडित बिरजू महाराज का नृत्य, गायन और उनकी बातें इस तरह रची बसी है जैसे मानों कुछ दिनों पहले ही की बात हो। जानकारों की मानें तो सबसे पहले पंडित बिरजू महाराज बीएसपी के बुलावे पर भिलाई आए थे। उन दिनों वे नेहरूनगर के एक समाजसेवी और उद्योगपति के यहां ठहरे थे।
छत्तीसगढ़ साक्षी रहा बिरजू महाराज के मनमोहक कत्थक नृत्य का, BSP के बुलावे पर दो बार आए थे मिनी इंडिया
दो घंटे तक दी शानदार नृत्य और गायन की प्रस्तुति
नेहरू कल्चर हाउस में शानदार उन्होंने करीब 2 घंटे की प्रस्तुति दी थी। जिसमें कत्थक के साथ ही शास्त्रीय रागों पर आधारित कुछ गीत भी उन्होंने गाए थे। दूसरी बार वे सेक्टर-5 स्थित श्री बालाजी मंदिर के कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। इस बार उनका कार्यक्रम जयंती स्टेडियम के सामने ग्राउंड में हुआ था। जहां भिलाई के हजारों कलाप्रेमी साक्षी बने थे।
शास्त्रीय नृत्य और गीतों में जान बसती थी
साहित्यकार विनोद मिश्र बताते हैं कि 80 के दशक में जब बिरजू महाराज पहली बार भिलाई आए थे तो वे कुछ दोस्तों के साथ उनका साक्षात्कार लेने उनके पास पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कहा कि वे बातें कम और गाकर ज्यादा सुनाएंगे। कत्थक के साथ ही शास्त्रीय गायन में भी उनकी अच्छी पकड़ होने के चलते उन्होंने उस दिन अवधी में कुछ कजरी सुनाई थी। उन्होंने कहा था कि शास्त्रीय संगीत और नृत्य हमारी विरासत है। इसे आगे बढ़ाने नई पीढ़ी को ही सामने आना होगा। तभी यह परंपरा आगे बढ़ेगी। विनोद बताते हैं कि उन्हें उस दिन घंटे भर सुना था और दो घंटे से ज्यादा प्रस्तुति देते देखा था। नृत्य और गीतों में उनकी जान बसती थी। ऐसे कलाकार अब शायद ही दोबारा दुनिया में आएं।
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