बेटे ने बताया कि पिता सुबह जनरल शिफ्ट में ड्यूटी के लिए निकले। वे बीमार नहीं थे, उनकी उम्र करीब ५० साल है। आईटीआई किए हुए हूं, दो छोटी बहन एम कॉम पढ़कर यूपीएससी की तैयारी कर रही है और दूसरी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है। पिता का सपना था कि एक बेटी डॉक्टर बने। वहीं बेटा सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा दे रहा था। घर में कमाने वाले पिता अकेले थे।
अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस संयंत्र में एक दर्जन यूनियन है। वहां एक कर्मचारी की मौत हो जाती है और परिवार को कोई जाकर जानकारी तक नहीं देता। यूनियन केवल चुनाव लडऩे या वेतन समझौता कराने के काम तक सिमट तो नहीं रही है। हर मामले में एक दूसरे को झूठ व सच का सहारा लेकर पीछे छोड़ देने वाले नेता, इस मामले में पीडि़त परिवार के घर तक क्यों नहीं पहुंचे। विभाग के जिन कर्मियों को यह मालूम हो गया था कि राम कुमार की मौत हो चुकी है और घर वालों को जानकारी नहीं दी गई है, वे अपने घर में कैसे चैन से बैठ गए। पीडि़त परिवार का उनको ध्यान नहीं आया। एक घर के मुखिया के चले जाने का दर्द क्या उनको मालूम नहीं।