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भिलाई

37 मौत के बाद नन्हीं मछली के सहारे डेंगू की जंग, पहले अंग्रेजों ने फिर दिल्ली सरकार ने बनाया था हथियार, अब भिलाई की बारी

एक ऐसी मछली जो न केवल मच्छरों का दुश्मन है, बल्कि डेंगू, मलेरिया के लार्वा को मिनटों में चट कर जाती है। पानी में मच्छर के लार्वा को पनपने ही नहीं देती है।

भिलाईSep 01, 2018 / 03:32 pm

Dakshi Sahu

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37 मौत के बाद नन्हीं मछली के सहारे डेंगू की जंग, पहले अंग्रेजों ने फिर दिल्ली सरकार ने बनाया था हथियार, अब भिलाई की बारी

भिलाई. एक ऐसी मछली जो न केवल मच्छरों का दुश्मन है, बल्कि डेंगू, मलेरिया के लार्वा को मिनटों में चट कर जाती है। पानी में मच्छर के लार्वा को पनपने ही नहीं देती है। इन मछलियों की आंखें इतनी तेज होती है कि यदि पानी के ऊपर कोई मच्छर भी बैठ जाए तो झपटकर खा जाती है। यह जानकारी शासन-प्रशासन पर बैठे हुए जिम्मेदार लोगों को है।
बावजूद शासन-प्रशासन ने अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि ये मछलियां डेंगू के संक्रमण को फैलने से रोकने में इतनी कारगार है कि इन्हें जल स्रोत में छोड़कर काफी हद तक स्थिति को कंट्रोल किया जा सकता है। शहर को डेंगू और मलेरिया के मच्छर पनपने से छुटकारा भी दिलाई जा सकती है।
दिल्ली की सरकार ने इसी पैटर्न पर किया था काम
पिछले साल जब दिल्ली में डेंगू का संक्रमण फैला था तब दिल्ली की सरकार और महानगर पालिका ने डेंगू और मलेरिया के रोकथाम के लिए गम्बूजिया मछली को हथियार बनाकर स्थिति को काबू में किया था। आज भी नॉर्थ एमसीडी का स्वास्थ्य विभाग डेंगू के खिलाफ ईको-फ्रेंडली तरीकों को बढ़ावा दे रहा है। डेंगू और मलेरिया के रोकथाम के लिए जल स्रोत, गड्ढे, तालाब और वॉटर बॉडीज बनाकर गम्बूजियां मछली छोडऩे काम कर रही है। इस तकनीक से डेंगू के संक्रमण को रोकने में काफी हद तक सफलता भी मिली है।
दवा का छिड़काव अस्थायी समाधान
दवा का छिड़काव अस्थायी समाधान है। केमिकल युक्त दवा का लगातार छिड़काव से वातावरण प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है। यदि बारिश हो गई तो दवा का असर कम हो जाता है। और फिर से दवा का छिड़काव करना पड़ता है। शहर में इसी पैटर्न पर काम चल रहा है। निगम का अमले को बारिश की वजह से सड़क, नाली या गड्ढों में ही बार-बार दवा का छिड़काव कर रही है। अमला २१ वार्डों को छोड़कर बाकी के वार्डों के घरों में दवा का छिड़काव नहीं कर पा रही है। इसलिए यह अधिक खर्चीली।
यह कैसे है डेंगू के मच्छरों का दुश्मन
24 घंटे में एक गम्बूजिया मछली 100 से 300 लार्वा खा सकती है। गम्बूजिया मछली को बढ़ाने के लिए 3 से 6 महीने का समय लगता है। मछली ३-४ इंच तक लंबी होती है। पानी में यह मछली लगभग 4 से 5 साल तक जीवित रह सकती है। एक मादा मछली में एक महीने में करीब 50 से 200 अंडे देती है। अंडे से बच्चे जल्दी से निकल आते हैं।
मछली के बच्चे भी 2 मिली मीटर लंबा होने पर मच्छरों के लार्वा को खाने लगते हैं। उप संचालक मतस्यिकी विभाग दुर्ग, सुधा दास ने बताया कि फिलहाल संचालनालय में गम्बूजिया मछली का स्टॉक नहीं है। यदि निकायों से डिमांड की जाती है तो हम पश्चिम बंगाल से मंगाकर मछलियां उपलब्ध करा देंगे। यह मच्छर के लार्वा को नष्ट करने में बेहतर और कारगार उपाय है।
गप्पी के नाम से भी जाना जाता है
गप्पी मछली की खोज ब्रिटिश नाविक जेम्स कुक ने की थी। कुक ने रॉयल ब्रिटिश नेवी में नौकरी की। यात्रा और भौगोलिक परिस्थियों के दौरान अधिकांश जगहों पर मच्छरों का प्रकोप रहता था। इस कारण कुक ने इस समस्या को गप्पी मछली की सहायता से कम किया था। भिलाई टाउनशिप के ग्रीन बेल्ट में जगह-जगह बारिश का पानी जमा है।
यह पानी बारिश भी नहीं होगी तब भी ७-८ दिनों भरा रहेगा। यहां इन मछलियों को छोड़ा जा सकता है। लार्वा को नष्ट किया जा सकता है। छावनी और खुर्सीपार एरिया के गड्ढे में जहां कहीं पर भी बारिश का पानी जमा है। या तालाब है। वहां मछलियों को छोड़ा जा सकता है।
मछली स्थायी समाधान
गम्बूजिया मछली डेंगू मलेरिया के मच्छरो से लडऩे के लिए इको फ्रेंडली और स्थायी समाधान है। इससे वातावरण या जलीय जीव को कोई साइड इफेक्ट नहीं है। ये मछलियां कम और गंदा पानी में भी जिंदा रह सकती हैं। मछलियां जिंदा रहने तक उस जल स्रोत में मच्छर का लार्वा पनप ही नहीं सकता। १०० वर्गफीट एरिया के लिए 60-70 मछलियां काफी है। इसलिए कम खर्च में स्थायी कारगार उपाय है।
जानिए मछली कैसे नष्ट करती है लार्वा
गम्बूजिया एक ऐसी मछली है जो मच्छरों के लार्वा को पनपने से रोक सकती है। ये मछलियां पानी में तैर रही एडीज डेंगू और मलेरिया के मच्छरों के अंडा एवं लार्वा को खा जाती है। यदि पानी के ऊपर मच्छर भी बैठ जाए, तो उसे भी खा जाती है।

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