कार्यक्रम की संयोजिका सुनीता वर्मा, विभागाध्यक्ष हिन्दी ने कहा कि तुलसी की रचनाएं आज भी प्रासंगिक है, आज लोकतंत्र में संकट, भष्ट्राचार और भाई-भतीजावाद का बोलबाला है। हमारे राजनेता ही अन्याय से शासन प्रणाली को आगे बढ़ाते है तब तुलसी के रामराज्य की कल्पना सार्थक हो उठती है, क्योंकि तुलसी के अनुसार राजा को जनप्रिय व प्रजापालक होना चाहिए। कीर्ति व्यास ने कहा, जहां भी सीखने का मौका मिले उसे सीखना चाहिए। आपने मंच पर खड़े होकर गाने का साहस किया यह महत्वपूर्ण है। आज के दौर में 80 से 90 प्रतिशत विद्यार्थियों को तुलसी के जन्म के बारे में नहीं पता, ऐसे में तुलसी की स्मृति में भजन प्रतियोगिता का आयोजन सराहनीय है।
वक्ताओं ने बताया कि तुलसीदास का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था जिसके कारण उनके माता-पिता ने उन्हे छोड़ दिया था। अगर मूलनक्षत्र में जन्म लेना अशुभ होता तो तुलसीदास का रामचरित्र मानस विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ नहीं होता। तुलसी इतने महान कवि नहीं होते। आज का युग विज्ञान का युग है, तथ्य ढुंढकर उस पर विश्वास करना। आप ज्ञानी बनें अंधविश्वासी नहीं। निर्णायक दुबे ने गुरू-शिष्य परंपरा और रामचरित्र मानस की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
प्राचार्य डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला ने कहा, मंच मिले तो उपयोग करना चाहिए, हार-जीत महत्वपूर्ण नहीं है। आज मानस का पाठ घर-घर में होता है, रोज दो चैपाइयां जरूर पढ़ें। मैनेजमेंट के जैसा उदाहरण रामचरित मानस में मिलता है। हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी गई, कपड़ा, मिट्टी तेल, माचिस सब लंका का और जल भी लंका गई, इसे मैनेजमैंट कहते हैं।
भजन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त दिप्ती ने ‘मैली चादर ओढ़ के द्वार तेरे कैसे आऊं गाकर दशकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। वहीं शैलजा पवार ने ‘राम तोरे जादू भरे पांव मोहे डर लागे तुझे कैसे बैठाण् नांवÓ में लोकगीत पर आधारित भजन गाकर तालियां बटोरीं। फूलों में ढूंढ़ा बगिचा में पाया है, गाकर रिचा पटेल ने तालियां बजाने के लिए मजबूर कर दिया। वहीं पूनम शुक्ला ने कृष्ण गोविंदा हरि- मुरारी हे नाथ नरायण वासुदेवाÓ भजन गाया। इस अवसर पर वाइलिन वादक कीर्ति व्यास का स्म्मान किया गया।