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भिलाई

फंड नहीं मिला तो बंद कर दिया इस जिले का एकमात्र आवासीय दिव्यांग प्रशिक्षण केंद्र, भगवान भरोसे दृष्टि बाधित बच्चे

अखरा स्थित एक मात्र आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्र (आरएसटीसी) सत्र की शुरूआत जुलाई 2009 में ही चल पाया। उसके बाद से यह सेंटर बंद हो गया है।

भिलाईJan 17, 2020 / 02:58 pm

Dakshi Sahu

फंड नहीं मिला तो बंद कर दिया इस जिले का एकमात्र आवासीय दिव्यांग प्रशिक्षण केंद्र, भगवान भरोसे दृष्टि बाधित बच्चे

फंड नहीं मिला तो बंद कर दिया इस जिले का एकमात्र आवासीय दिव्यांग प्रशिक्षण केंद्र, भगवान भरोसे दृष्टि बाधित बच्चे

भिलाई /पाटन. प्रदेशभर में शिक्षा का अलख जगाया जा रहा है। शिक्षा के लिए सभी जतन किए जा रहे हैंं। पाटन क्षेत्र में दिव्यांग बच्चों को दी जानी वाली शिक्षा के प्रति प्रशासन गम्भीर नहीं दिख रहा है। जिले का अखरा स्थित एक मात्र आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्र (आरएसटीसी) सत्र की शुरूआत जुलाई 2009 में ही चल पाया। उसके बाद से यह सेंटर बंद हो गया है। साल 2010 से यह दुर्ग जिले की एक मात्र संस्था थी, जिसमे दुर्ग, धमधा एव पाटन ब्लाक के श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित एव मानसिक विमेदित बच्चे आधुनिक यंत्रों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता था। केंद्र के बन्द होने के बाद बच्चे अपने घरों में असहाय है। उन्हें सक्षम बनाने शासन की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है।
रिसोर्स सेंटर बनाया
विशेष प्रशिक्षण केंद्र अखरा को ही रिसोर्स सेंटर बनाया गया है जो सप्ताह में दो दिन शुक्रवार एव शनिवार को दिव्यांग बच्चों को विशेष प्रशिक्षण देने खुलता है, लेकिन इस केंद्र में भी कोई पालक अपने बच्चे को सेंटर दूर होने के कारण लेकर नहीं आते। इस संस्था में आधुनिक यंत्र उपलब्ध है। बावजूद इसका लाभ दिव्यांग बच्चे नहीं ले पा रहे हैंं।
स्कूल में मिलता है सपोर्र्ट
समावेशी शिक्षा के तहत दिव्यांग बच्चे स्कूल जा पाते हैं उन्हें स्कूल में ही प्रशिक्षित शिक्षक शारीरिक बाधा के अनुसार शिक्षा देते हैं। पाटन ब्लाक के 18 संकुल में कक्षा एक से लेकर 12 वीं तक लगभग 492 बच्चे विभिन्न बाधा के चलते दिव्यांग हैं। इसके साथ ही 50 से 60 ऐसे बच्चे है जो बहु दिव्यांगता के कारण स्कूल नहीं जा पाते और शिक्षा से वंचित हैं।
समावेशी शिक्षा
राज्य स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा दिव्यांग बच्चों को शिक्षा देने के लिए समावेशी शिक्षा विभाग बनाया है। जिसमे बकायदा शिक्षकों को प्रशिक्षित करके दिव्यांग बच्चों को शिक्षा देने के कार्य में लगाया है। समावेशी शिक्षा दो स्तर पर दी जाती है पहला गृह आधारित शिक्षा (होम बेस्ड एजुकेशन) जिसमें जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते उन्हें एक प्रशिक्षित शिक्षक घर जाकर उनके शारीरिक बाधा के अनुसार विभिन्न यंत्रों एवं परिवार जनों के माध्यम से स्वालंबन के लिए प्रेरित करते हैं।
समावेशी शिक्षक की कमी
18 संकुल से बने इस विकासखण्ड में दिव्यांग बच्चों को शिक्षा देने लगभग 4 प्रशिक्षत शिक्षकों की आवश्यकता है पर मात्र एक शिक्षक ही समावेशी शिक्षा में पदस्थ है। जिन्हें दृष्टि बाधित बच्चों के लिए पदस्थ किया गया है। शिक्षक को भी ऑफिस काम, प्रशिक्षण में जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। केंद्र में तीन शिक्षक की और जरूरत है। उपकरण सभी तरह के उपलब्ध हैं पर प्रशिक्षित शिक्षक का अभाव है।
स्काट एलाउंस – जो बच्चे दिव्यांगता के चलते स्कूल नहीं जा पाते उन्हें वाहक की जरूरत होती है। इसके लिए उन्हें 10 माह के लिए शासन से 3000 रुपए प्रदान किया जाता है जो राज्य कार्यालय से बच्चों के खाते में जमा है। पाटन ब्लाक में इस तरह 75 बच्चों का चयन किया गया है।
ट्रांसपोटेशन एलाउंस – दृष्टि बाधित बच्चों को यह सुविधा प्रदान की जाती है इन्हें भी 10 माह का 3 हजार रुपए उनके खाता में दिया जाता है। डीईओ प्रवास सिंह बघेल ने बताया कि यह केंद्र सर्व शिक्षा अभियान के तहत संचालित था, लेकिन सर्व शिक्षा अभियान को राष्ट्रीय शिक्षा अभियान शामिल करने के बाद इस केंद्र के लिए फंड आना बंद हो गया है। शिक्षा विभाग ने एक महीने इस चलाने की कोशिश भी की पर इसका खर्च 50 हजार रुपए से अधिक था, इसलिए इसे बंद करना पड़ा।

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