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भिलाई

कहीं पति के बदले पत्नी, तो कहीं पत्नी की जगह पति मैदान में, पिता की विरासत संभालने अब बेटे भी तैयार

सभी पार्टियों में ऐसे कई उदाहरण है जब एक ही परिवार के सदस्यों को टिकट बांटा गया। मौजूदा चुनाव में भी टिकट बंटवारे का यही नजारा सामने है।

भिलाईNov 06, 2018 / 12:08 am

Bhuwan Sahu

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कहीं पति के बदले पत्नी, तो कहीं पत्नी की जगह पति मैदान में, पिता की विरासत संभालने अब बेटे भी तैयार

भिलाई . यंू तो राजनीति में वंशवाद कोई नई बात नहीं है। सभी पार्टियों में ऐसे कई उदाहरण है जब एक ही परिवार के सदस्यों को टिकट बांटा गया। मौजूदा चुनाव में भी टिकट बंटवारे का यही नजारा सामने है। चुनाव से पहले पार्टियां कितना भी राग अलाप लें कि कार्यकर्ताओं की पंसद से और काम करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं को ही टिकट मिलेगा, लेकिन जब असल में देने की पारी आती है तो पार्टियां सब कुछ ताक पर रखकर भूल जाती हैं। तब नेताओं का सिर्फ एक ही तर्क होता है, जीत की ज्यादा संभावनाओं को देखते हुए फैसला किया गया है। आखिर सवाल सरकार बनाने का है। अविभाजित दुर्ग जिले में भी ऐसी कई सीटें हैं जहां दलों ने कहीं परिवारवाद को आगे बढ़ाते हुए टिकट बांटा है तो कहीं संगठन में जिन्हें मौका दिया, सत्ता की दौड़ में भी उन्हीं चेहरों को फिर आगे रखा है। ऐसे भी कई प्रत्याशी हैं जो पहले से ही किसी न किसी सत्ता का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्हें और प्रमोट करने दोबारा अवसर दिए हैं।
पति-पत्नी के बीच लगा रही दांव

डौंडीलोहारा में भाजपा पति- पत्नी के बीच ही दांव खेल रहा है। 2003 में लाल महेंद्र सिंह टेकाम भाजपा से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 2008 के चुनाव में पार्टी ने उनकी जगह पत्नी नीलिमा सिंह टेकाम को मैदान में उतार दिया। नीलिमा भी विधायक चुन ली गईं। २०१३ में पार्टी ने टेकाम परिवार के बजाए होरीलाल रावटे को मौका दिया, लेकिन पार्टी को लगभग १९,७३५ वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। अब भजपा फिर पत्नी की सीट से पति लाल महेंद्र सिंह टेकाम को आजमाने जा रही है।
संगठन भी वही संभालेंगे और सत्ता भी

भाजपा ने जिलाध्यक्ष जैसे महत्पूर्ण पदों पर रहे दो लोगों को विधानसभा में उतारा है। दुर्ग ग्रामीण प्रत्याशी जागेश्वर साहू दुर्ग जिला भाजपा का नेतृत्व कर चुके हैं। वहीं अहिवारा से चुनाव लड़ रहे सांवलाराम डाहरे को विधायक रहते हुए भिलाई जिला भाजपा की कमान सौंप दी गई। वे अब फिर चुनाव मैदान में हैं।
पत्नी को मैदान में उतारा

बालोद जिले के संजारी बालोद विधानसभा सीट से कांग्रेस ने इस बार विधायक भैया राम सिन्हा की पत्नी संगीता सिन्हा को मैदान में उतारा है। वजह है भैयाराम ने २०१३ में कांग्रेस को ३०,४३३ वोट के अंतर से जीत दिलाई थी। जातिगत समीकरण में भी मामला फिट बैठ गया। इसके पूर्व भारतीय जनता पार्टी ने मदन साहू को मौका दिया था। वे विधायक चुने गए थे। मदन की अचानक मौत के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी कुमारी मदन साहू को प्रत्याशी बनाया गया था। हालांकि इस बार पार्टी ने यहां युवा एवं नए चेहरे को मौका दिया है।
गुंडरदेही से दीपक साहू उम्मीदवार

गुंडरदेही में अपने पिता ताराचंद साहू की विरासत संभालने के लिए भाजपा ने उनके बेटे दीपक साहू को मैदान में उतारा है। १९६२ से कांग्रेस के गढ़ गुंडरदेही में पहली बार १९९० में ताराचंद ने भाजपा से जीत दर्ज की थी। वे १९९३ में हुए चुनाव में दोबारा चुने गए। इसके बाद ताराचंद लगातार लोकसभा के लिए चुनते रहे। हालांकि इसके बाद हुए चार चुनावों में दो बार भाजपा से विधायक निर्वाचित हुए, लेकिन पिछली हार को देखते हुए अब पार्टी ने दीपक को गुंडरदेही भेज दिया है।
राजनीति में प्रमोशन, मेयर अब विधायक की दौड़ में

दोनों ही दल कांग्रेस और भाजपा में एक समानता यह है कि दोनों ही अपने-अपने महापौर को विधायक चुनाव भी लड़वा रहे हैं। भाजपा ने दुर्ग की महापौर चंद्रिका चंद्राकर को दुर्ग शहर विधानसभा से तो कांग्रेस ने भिलाई महापौर को भिलाई नगर विधानससभा से विधायक पद का उम्मीदवार बनाया है। यह उनका प्रमोशन है।

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