संस्थान ने यह पहल कर छत्तीसगढ़ के अन्य संस्थानों तथा इस्पात मंत्रालय को प्रेरित किया है। एफएसएनएल को प्रदेश में अवस्थित कार्यालयों की श्रेणी में प्रथम संस्थान वेस्ट पेपर रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने का श्रेय मिला है।
एफएसएनएल के प्रबंध निदेशक राजीब भट्टाचार्य के नेतृत्व में यह कार्य शुरू किया गया। इस प्लांट को लगाने के बाद से कोई भी कर्मचारी रद्दी कागजों को जलाता नहीं और फेकता भी नहीं है। बल्कि उसे एकत्रित कर वेस्ट पेपर रिसाइक्लिंग प्लांट में माध्यम से निगमित सामाजिक उत्तरदात्वि योजना के तहत गरीब वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए लेखन सामग्री तैयार करता है। इसका उद्देश्य एफएसएनएल से निकलने वाले रद्दी कागजों का उपयोग करना तथा कागज की बर्बादी रोकना है।
बेकार कागजों के उचित निपटान के लिए यह व्यवस्था की गई है, रिसाइकलिंग यूनिट स्थापित करने से इसका बेहतर उपयोग किया जा रहा है और चार बेरोजगार को रोजगार ? भी मिला हुआ है।
तैयार किया जा रहा पेपर, फाइल व फोल्डर
लघु स्वरूप में वेस्ट पेपर रिसाइकलिंग प्लांट स्थापित की गई है। इस प्लांट से रद्दी कागज की रिसाइकलिंग की जा रही है। इससे पेपर, फाइल फोल्डर, लिफाफे, थैलियां व अन्य लेखन सामग्रियां बनाए जा रहे हैं। संस्थान के प्रबंध निदेशक का कहना है कि वेस्ट पेपर रिसाइकलिंग प्लांट हमें न सिर्फ कागज की अहमियत को बताता है, बल्कि यह किसी भी बर्बाद किए जाने वाले वस्तु को फिर से उपयोग में लाने की कोशिश करने को भी प्रेरित करता है।
प्रबंधन निदेशक का कहना है कि वेस्ट पेपर रिसाइकलिंग प्लांट स्थापित करने के पीछे एक विचार आया कि जिस कागज पर लिखने के बाद उसे रद्दी की टोकरी में फेंक देते हैं उसे बनाने में कितना श्रम और कितना समय लगता है। यह श्रम के महत्ता का एहसास भी दिलाता है। इस तरह से हर कर्मचारी को इससे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता है।
बांस के एक पेड़ से बनता है १०० पन्ना
हम पेपर की जरूरत को पूरा करने के लिए पेड़ों की धड़ल्ले से कटाई कर रहे हैं। पहले सिर्फ बांस की लकड़ी से पेपर बनाए जाते थे, पर अब कई सॉफ्ट लकड़ी का उपयोग होता है। इन दिनों हर चीजों में पेपर का इस्तेमाल किया जा रहा है। पेपर पर कई मामलों में डिपेंडेंट हो गए हैं। बताया जाता है कि १०० पन्ना बनाने में बांस का एक पूरा पेड़ लग जाता है। पेपर तो तैयार कर लिया जाता है, लेकिन उस अनुपात में पेड़ नहीं लगाया जाता।
ऑक्सीजन हो जाएगा
स्कूलों में अब किताबें ड्रेस की तरह चेंज होने लगी हैं। एक-एक स्टूडेंट्स को एक ही कक्षा में दर्जनों किताबें पढऩी पड़ती हैं। यह सभी को पता है कि एक-एक पन्ने की आड़ में हम ऑक्सीजन खत्म करते जा रहे हैं। बगैर ऑक्सीजन के इंसान जिंदा नहीं रह सकता है, पर यह भूलते जा रहे हैं। तभी तो, पेड़ लगाया तो नहीं जाता, पर धड़ाधड़ कट जरूर रहे हैं। जिस किताब में ऑक्सीजन बचाने का पाठ पढ़ते हैं, उसी के लिए ऑक्सीजन खत्म करते जा रहे हैं।