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भिलाई

हाथ नहीं तो क्या हुआ, लक्ष्मी बुलंद हौसले से लिख रही अपनी तकदीर, पढि़ए पूरी खबर

ग्राम तिलईरवार की दिव्यांग लक्ष्मी ने कमजोरी को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और अब आंगनबाड़ी में खुशियां बिखेरने का काम कर रही है।

भिलाईDec 15, 2017 / 02:37 pm

Satya Narayan Shukla

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दिवाकर सोनी.राजनांदगांव/डोंगरगांव. कहते हैं यदि हौसला हो तो सब कुछ संभव है। क्या हुआ कि उसके हाथ नहीं हैं। फिर भी वह अपनी तकदीर लिख रही है। और बेहतर लिख रही है। डोंगरगांव क्षेत्र के ग्राम तिलईरवार की एक दिव्यांग बेटी ने कमजोरी को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और अब यह बेटी गांव की आंगनबाड़ी में खुशियां बिखेरने का काम कर रही है।
जन्म से ही दिव्यांग लक्ष्मी के दोनों हाथ नहीं
तिलईरवार गांव तो वैसे तो सभी गांवों की तरह एक सामान्य गांव है लेकिन यहां की आंगनबाड़ी में जाने पर लगने लगता है कि इस गांव में कुछ खास है। इस गांव को आम से खास बनाने का काम किया है यहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लक्ष्मी साहू ने। जन्म से ही दिव्यांग लक्ष्मी (इसके दोनों हाथ नहीं हैं), इस बात का अहसास ही नहीं होने देती कि वह कहीं से कमतर है।
नाना-नानी ने पाला
लक्ष्मी महज एक वर्ष की आयु से ही अपने नाना-नानी के पास पली-बढ़ी और प्रायमरी से लेकर स्नातक (बीए) तक की पढ़ाई अच्छे नंबरों के साथ उत्तीर्ण किया। पढ़ाई पूरी हुई तो आगे कुछ कर गुजरने की ललक से उसने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में आवेदन किया। सफल हुई और अब गांव की आंगनबाड़ी केन्द्र में बच्चों के बीच खुशियां बिखेरते हुए खेल-खेल में शिक्षा दे रही है।
दिव्यांगता नहीं आई आड़े
तीन भाईयों की एक बहन लक्ष्मी के दोनों हाथ है ही नहीं। वह अपना सारा कार्य अर्धविकसित दाहिने पैर से ही करती है। मोबाइल चलाने से लेकर रजिस्टर में लिखने जैसे बारीक काम भी वह आसानी से कर लेती है। रजिस्टर में उसके पैरों द्वारा लिखे गए मोती जैसे शब्द उसके द्वारा किये गए मेहनत का बखान करते हैं।
बच्चों को गढ़ रही
दिव्यांगों के लिए एक उदाहरण लक्ष्मी अपने आंगनबाड़ी केन्द्र में पहुंच रहे गांव के 17 बच्चों को एक कुम्हार की तरह गढ़ रही है। इस काम में उसे आंगनबाड़ी केन्द्र में काम कर रही सहायिका जमुना पटेल एवं गांव वालों के साथ ही ग्राम पंचायत तिलईरवार सरपंच चंद्रकुमार साहू का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। हालांकि विभागीय कार्य की अधिकता और पगार के रूप में काफी कम राशि उसे निराश करती है.
कोई मदद नहीं मिली
वर्ष 2011 से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रही लक्ष्मी को शासन स्तर पर कभी कोई मदद नहीं मिली है। अपने बूढ़े हो चले नाना सुदर्शन साहू व नानी थानीबाई साहू के साथ जीवन यापन कर रही लक्ष्मी ने शासन से कई बार गुहार लगाई लेकिन उसे हमेशा असफलता ही मिली। लक्ष्मी के नाना बताते हैं कि प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह से उन्होंने कई बार मुलाकात की थी। तब सीएम डॉ. सिंह ने बारहवीं पास करने के बाद कुछ करने का आश्वासन दिया था लेकिन अब स्नातक होने के बाद भी जब वे सीएम सहित सांसद अभिषेक सिंह से मिले तो नियमों का हवाला देकर टाल दिया गया।
शिक्षक बनना चाहती है
लक्ष्मी की इच्छा है कि वह शिक्षक बने। वह चाहती है कि शासन प्रशासन उसकी मदद करें ताकि वो शिक्षाकर्मी बनकर अपनी शिक्षा और हुनर का सही उपयोग कर सके। नाना सुदर्शन ने बताया कि पिछले वर्ष ग्राम में सांसद अभिषेक सिंह आए थे तब लक्ष्मी ने अपनी मंशा सामने रखी थी लेकिन सांसद ने बीएड-डीएड परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही शिक्षाकर्मी पद के लिए कोई पहल करने की बात कह दी।

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