भिलाई इस्पात संयंत्र से उत्पादन की शुरुआत 1959 में हुई। तब यहां रशियन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया। उस वक्त यह टेक्नोलॉजी सबसे शानदार मानी जाती थी, जिससे बीएसपी ने अब तक का सफर तय किया है। हालांकि इस टेक्नोलॉजी में अब भी अधिक परेशानियां नहीं आती, लेकिन कई बार हादसे हो जाते हैं। जिससे भारी जानमाल की हानि होती है। बीएसपी ने कुछ वर्ष पूर्व ही अपनी मशीनों को हाईटेक करने का काम शुरू किया है।
बीएसपी के साथ इस प्रोजेक्ट में काम करने के लिए आईआईटी भिलाई ने अपनी फैकल्टी और स्टूडेंट्स को साथ लेकर एक तरह का स्टार्टअप तैयार किया है, जो इस सॉफ्टवेयर को बनाने और इसके इंस्ट्रालेशन में मदद करेगा। इस प्रोजेक्ट में बीएसपी अपनी ओर से सबसे बड़ा योगदान देगा। जल्द ही इस प्रोजेक्ट को लेकर संयंत्र के इंजीनियर्स के साथ बैठक हो सकती है। इस प्रोजेक्ट के लिए शुरुआती दौर में आईआईटी भिलाई इस स्टार्टअप को करीब 7 करोड़ रुपए का अनुदान जारी कर सकता है। इस अनुदान को लेकर तीन दिनों में बड़ा फैसला आएगा। इसके बाद दोनों संस्थान के बीच एमओयू साइन किए जाएंगे।
इसलिए जरूरी है यह तकनीक
इस तकनीक के संयंत्र में पहुंचने के बाद बीएसपी को मशीनों के कॉस्ट मैनेजमेंट में बड़ी राहत मिलेगी। वक्त से पहले उक्त पार्ट्स को निकालने से बचा जा सकेगा, जो कुछ महीने और चल सकते थे। बीएसपी की मशीनों और उसके पार्ट्स बहुत महंगे हैं इसी तरह उन्हें दूसरे देशों के इम्पोर्ट करना होता है। यानी उस पार्ट्स को कुछ और महीने से चलाने से उसको बदलने का खर्च नहीं लगेगा वहीं जिस मशीन का पार्ट्स खराब होने की कगार पर होगा, उसे समय रहते बदल देंगे। इस तरह बिना काम रोके हर मशीन समय पर हो रही सर्विस के जरिए सालों साल चलेंगी।
आईआईटी के इस विशेष सेंसर युक्त सॉफ्टवेयर क प्रयोग सबसे पहले यूनिवर्सल रेल मिल से हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यूआरएम को बीएसपी ने हाल ही में अपडेट किया है। बीएसपी ने यहां नई टेक्नोलॉजी का उपयोग किया, जो सेंसर्स बेस्ट कही जाती है। आईआईटी रेल मिल से शुरुआत इसलिए कर रहा है, क्योंकि यह मशीनें इंडस्ट्रीज 4.0 की तर्ज पर स्थापित की गई हैं। इनसे सॉफ्टवेयर आधारित डाटा लिया जा सकता है। इस प्रयोग के सफल होने के बाद आईआईटी शुरुआती दौर की मशीनों को भी हाईटेक बनाने का जुगाड़ करेगा, ताकि संयंत्र में हादसों को रोका या कम किया जा सके।