बीएसपी वर्कर्स यूनियन के महासचिव खूबचंद वर्मा ने बताया कि इंटुक के गलत समझौता के कारण बीएसपी कर्मियों को अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल रही है। उन्होंने बताया कि 2004 में तात्कालीन मान्यता प्राप्त यूनियन इंटक ने बीएसपी प्रबंधक से द्विपक्षीय समझौता किया कि अनुकंपा के आधार पर रोजगार देने का कोई प्रावधान नहीं है, जिस पर अनुकंपा नियुक्ति के सारे रास्ते महज बीएसपी में बंद कर दिए गए।
उन्होंने बताया कि सेल के अन्य किसी संयंत्र में ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ। जिसकी वजह से महज बीएसपी में अनुकंपा नियुक्ति नहीं हो रही है। इसके पहले 1989 में नेशनल ज्वाइंट कमेटी फॉर स्टील (एनजेसीएस) की बैठक में कार्य के दौरान मृत्यु व अपंगता पर आश्रितों को नौकरी देने का प्रावधान था।
२००४ में लोकल स्तर पर समझौता के बाद 2009 और 2011 में निकाले गए सर्कुलर में भी नौकरी के दौरान हुई मृत्यु को अनुकंपा नियुक्ति आधार मानने से इंकार कर दिए। इस दौरान भी बीएसपी में कौन सी यूनियन मान्यता में थी, वह सभी को स्पष्ट है।
उपमहासचिव शिवबहादुर सिंह ने कहा कि इस प्रकार के समझौते जिसमें संयंत्र कर्मी व उसका परिवार अनुकंपा नियुक्ति से वंचित हो बहुत ही नुकसान देता है। इस समझौते से सिर्फ बीएसपी के कर्मचारी ही प्रभावित हो रहे हैं। इस कारण इसे तत्काल निरस्त करने की दिशा में प्रयास करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सीटू सीटू को सयंत्र कर्मियों ने 4 साल तक मान्यता में रखा। इस दौरान इस काले कानून को बदलने की दिशा में कोई काम नहीं किया। उनके सामने कर्मियों के हित में इस काम को करने का अच्छा मौका था।
यूनियन के नोहर सिंह गजेंद्र ने बताया कि रेल व स्ट्रक्चरल मिल के एक कर्मी की मृत्यु पर उसके परिवार ने उच्च न्यायालय, बिलासपुर में अनुकंपा नियुक्ति के लिए प्रकरण पेश किया, तब बीएसपी ने अपना पक्ष पेश करते हुए इंटुक के मध्य 2004 में हुए समझौते का हवाला दिया, जिस समझौते से संयंत्र कर्मियों के परिवार को यह नुकसान हुआ है।
इंटक के प्रवक्ता वंश बहादुर सिंह ने कहा कि प्रबंधन ने अपने जवाब में यह लिखा है कि 2004 के समझौते में इस प्रावधान का उल्लेख नहीं है। प्रबंधन ने यह नहीं कहा है कि नौकरी नहीं देने का समझौता हुआ है। इस लिए इंटक पर आरोप लगाने वाले राजनीति से प्रेरित होकर आरोप लगा रहे हैं।