क्या कहते हैं मरीज
मरीज नाम नहीं छापने के शर्त पर बताते हैं कि ऑक्सीजन प्लांट से एक जैसे आवाज नहीं निकलती, वह बदलते रहती है। नींद लगते ही तेज आवाज ऐसे आती है जैसे किसी प्लांट के भीतर लेटें हों। एक अन्य मरीज ने बताया कि इस प्लांट की आवाज इतनी तेज है कि उसको सुनते-सुनते सुबह हो जाती है। रात में इसे बंद कर दिया जाना चाहिए।
ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट की आवाज को कम करने की है जरूरत
कोरोना की तीसरी लहर से पहले 50 बेड से ऊपर वाले सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट लगाने की बात केंद्र सरकार ने कही थी। अब पीएम केयर्स फंड से सिविल हॉस्पिटल, सुपेला में लगाया गाया ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट शुरू हो चुका है। अस्पताल में दाखिल एक साथ 70 से अधिक मरीजों को इसका लाभ मिल सकेगा। यहां दिक्कत यह है कि इसकी आवाज को कम करने के लिए कोई तकनीक का सहारा लिया जाना चाहिए।
खूब खपत है डीजल की
प्लांट लगाने के बाद इसके समीप में ही जनरेटर भी लगा दिया गया है। अब बिजली गुल होने पर जनरेटर के माध्यम से इसे चालू कर दिया जाता है। चंद घंटों में ही हजारों का डीजल यह प्लांट पी रहा है। एक ओर ऑक्सीजन कमी की शिकायत वाले मरीज नहीं है। दूसरी ओर बिजली बंद होने पर भी इसे नियमित चालू रखने जनरेटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे खर्च अधिक आ रहा है।
90 फीसदी शुद्ध ऑक्सीजन की होती है सप्लाई
ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट से मरीजों को कम से कम 90 फीसदी शुद्ध ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है। शुद्धता अगर इससे कम हो जाती है तब यह प्लांट ऑक्सीजन आपूर्ति करना अपने आप बंद कर देता है। जिससे अशुद्ध ऑक्सीजन मरीज तक न पहुंचे। मरीज का जीवन सुरक्षित रहे। सिविल हॉस्पिटल, सुपेला में जंबो सिलेंडर की व्यवस्था भी है, जिससे ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट में कोई तकनीकी दिक्कत आए तो भी मरीजों पर इसका असर न पड़े और ऑक्सीजन की आपूर्ति नियमित होती रहे।