फोरलेन पर लोग तो जैसे-तैसे हिचकोले खाते सफर कर ही रहे हैं, ट्रांसपोर्टर, उद्योगपति और भिलाई इस्पात संयंत्र को भी इससे तगड़ा झटका लग रहा है। गड्ढों के कारण गाडिय़ां जाम में फंस जा रही हंै और इसका असर भारी वाहनों के परिवहन के फेरे पर पड़ रहा है। इससे ट्रांसपोर्टर को सीधे आर्थिक चपत लग रही है। जाम लगने के कारण उद्योगपतियों को भी माल निर्धारित समय से डिलीवर नहीं हो पा रहा है। इधर संयंत्र से उत्पाद का समय पर उठाव नहीं हो रहा, जिससे खरीदी-बिक्री की प्रक्रिया धीमी हो जा रही है।
0. बीएसपी में पहले दिन शाम को गाडिय़ां माल लोड होने के लिए लग जाती थी। दूसरे दिन दोपहर 12 बजे तक गंतव्य तक माल परिवहन कर गाडिय़ां फिर संयंत्र आ जाती थी। इस तरह कुल डेढ़ दिन में एक फेरा हो जाता था।
0. अब गाडिय़ां जगह-जगह जाम में फंस जा रही हैं। इससे जाते और आते दोनों पारी में समय फिजूल जाया हो जा रहा है। डेढ़ दिन के बजाए तीन दिन में गाडिय़ां बीएसपी में लग रही है।
0. इससे ट्रांसपोर्टर की कमाई सीधे आधी हो गई है। दूसरी तरफ लागत बढ़ गई है। खराब सड़क के कारण ईंधन और मेंटनेंस खर्च के साथ-साथ ऑपरेटर और उसके सहायक को वेतन और भाड़ा तो देना ही पड़ता है।
0. बीएसपी से विभिन्न मर्चेंट उत्पाद जैसे सरिया, एंगल, वायर, वायर राड्स आदि राज्य के विभिन्न शहरों की रोलिंग मिलों और कुछ पड़ोसी राज्यों में भी सड़क मार्ग से भेजे जाते है।
0 उद्योगपति संयंत्र से महंगी कीमत में माल खरीदते हैं, लेकिन निर्धारित समय से डिलीवर नहीं होने पर उन्हें आगे की प्रोसेसिंग में दिक्कतें होती है। इससे उनके कारोबार पर असर पड़ता है।
0. उद्योगपति भी बाजार से लेन-देन करते हैं। इस देरी का उहें ब्याज के रूप में कीमत चुकानी पड़ती है।
0. बीएसपी सार्वजनिक उपक्रम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की इकाई है। यहां बिक्री के बाद माल का उठाव समय पर नहीं होने से ब्रांच सेल ऑफिस से समस्त खरीदी-बिक्री की प्रक्रिया धीमी हो गई है।
0. निर्धारित समय से माल डिलीवर नहीं होने के कारण उद्योगपति व अन्य लोहा कारोबारियोंं का बीएसपी के साथ व्यावसायिक रिश्ते में गेप बढ़ रहा है। इसकी वजह सिर्फ खराब सड़क है।
0. भिलाई स्टील प्लांट में रोजाना लगभग 200 भारी वाहन माल परिवहन के लिए लगते थे।
0. एक फेरे में 30 टन माल लोड होता है। यानि प्रतिदिन 6000 टन विभिन्न उत्पादों का परिवहन संयंत्र से होता रहा है।
0. यदि कीमत के रूप मेंं इसका आंकलन करें तो टीएमटी और वायर रॉडस कीमत 45 से 55 हजार और फ्लैट उत्पादों का 60 से 65 हजार रुपए प्रति टन है।
0. औसत अगर 55 हजार रुपए प्रति टन की दर से भी यदि अनुमान लगाया जाए तो रोजाना लगभग 3.30 करोड़ का कारोबार होता था। यानि महीने में लगभग 1 अरब का।
0. अब जब परिवहन वाले वाहनों की संख्या ही जब आधी रह गई है तो सीधे-सीधे रोजाना यह कारोबार घटकर 1.15 करोड़ पर आ गया है। यानि लगभग 35 करोड़ रुपए प्रति माह। मतलब कारोबार में अंतर 65 करोड़।
0 इसके कारण भिलाई नगर निगम को मिलने वाले निर्यात कर का घाटा उठाना पड़ रहा है।
0 उद्योगों का कारोबार प्रभावित होने से शासन को मिलने वाले विभिन्न प्रकार के टैक्स और शुल्क का नुकसान हो रहा है।