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भिलाई

राष्ट्रीय खेल दिवस: पढि़ए सफाई कर्मी महिला की जुनूनी बॉक्सर बेटी सोनम की कहानी, सपना पूरा करने रोज 20 किमी. चलाती है साइकिल

सोनम की सुबह 5 बजे होती है और वह 6 बजे एकेडमी पहुंचने साइकिल से रोजाना जुनवानी तक आने-जाने मे΄ 16 किलोमीटर का सफर तय करती है। (National sports Day 2019)

भिलाईAug 29, 2019 / 11:27 am

Dakshi Sahu

राष्ट्रीय खेल दिवस: पढि़ए सफाई कर्मी महिला की जुनूनी बॉक्सर बेटी सोनम की कहानी, सपना पूरा करने रोज 20 किमी. चलाती है साइकिल

राष्ट्रीय खेल दिवस: पढि़ए सफाई कर्मी महिला की जुनूनी बॉक्सर बेटी सोनम की कहानी, सपना पूरा करने रोज 20 किमी. चलाती है साइकिल

कोमल धनेसर @ भिलाई. रोजाना 20 किलोमीटर से ज्यादा साइकिलिंग, फिर बॉक्सिंग (Boxing in Bhilai) की प्रैक्टिस और फिर विधवा मां का सहारा बनने पावर हाउस मार्केट के एक दुकान मे΄ छोटी सी नौकरी। इससे साथ ही पढ़ाई पूरी करने का जुनून और मेरीकॉम (Mary kom) जैसे बनने का सपना। कुछ तो बात है सोनम मे΄ जो इतनी मेहनत करने के बाद थकती नही΄ और उसके चेहरे की चमक यह कहकर और बढ़ जाती है कि अपने लक्ष्य को पाना है तो संघर्ष तो करना पड़ेगा। (National sports Day 2019)
डाइट भी नहीं ले पाती ठीक से
बैकुठधाम निवासी सोनम राजधर की जिंदगी दूसरे खिलाडिय़ो΄ (Players in CG) जैसी आसान नही΄ है। शरीर को निचोड़ देने वाले गेम बॉक्सिंग के लायक उसके पास डाइट भी नही΄ है। पिछले साल हेमचंद यादव दुर्ग विवि की ओर से बॉक्सिंग मे΄ तीसरे स्थान तक पहुंची सोनम की कहानी भी मेरीकॉम की तरह ही है। जीवन के संघर्ष के बाद मेरीकॉम को तो मंजिल मिल गई पर हमारे शहर की इस बेटी का सपना अभी पूरा होना बाकी है।
रंग लाएगी मेहनत
सोनम की सुबह 5 बजे होती है और वह 6 बजे एकेडमी पहुंचने साइकिल से रोजाना जुनवानी तक आने-जाने मे΄ 16 किलोमीटर का सफर तय करती है। सुबह 9 बजे वापस आने के बाद घर से 3 किलोमीटर दूर पावर हाउस मार्केट मे΄ एक दुकान मे΄ नौकरी करने जाती है। 12 घंटे की नौकरी के बाद जो समय बचता है वह उसकी पढ़ाई का होता है।
अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग रिंग (International Boxing Ring) पर जाने का सपना
सोनम बताती है कि डाइट के लिए वह ज्यादा कुछ नही΄ कर पाती, लेकिन दुकान के मालिक अच्छे हैं तो कभी-कभी कुछ पौष्टिक चीजे΄ खाने को दे देते है΄। सोनम का एक ही सपना है कि इंटरनेशनल बॉक्सिंग रिंग पर भारत का प्रतिनिधित्व कर अपने देश का गौरव बढ़ाए। वह कहती है कि उसे विश्वास है कि उसका संघर्ष जितना कठिन है उसकी कामयाबी भी उतनी बेहतर होगी।
ओपन में जीता गोल्ड मेडल
स्कूल गेम मे΄ लड़कियो΄ के लिए बॉक्सिग मे΄ कोई जगह नही΄ है, लेकिन सोनम ने स्कूल के दिनो΄ से ही प्रैक्टिस शुरू की। पहले सेक्टर-1 मे΄ कोच कुलदीप सोनकर के पास वह बॉक्सिंग सीखने गई। ओपन गेम मे΄ स्टेट लेवल पर गोल्ड मेडल भी जीते। धीरे-धीरे खेल मे΄ वह ऐसी रम गई कि अब उसे अपनी प्रैक्टिस को जारी रखने रोजाना 16 किलोमीटर साइकिल चलाकर जुनवानी की गौरियस एकेडमी जाना पड़ता है।
सोनम के घर की आर्थिक स्थिति जरा भी अच्छी नही΄। मां पहले दूसरो΄ के घरो΄ मे΄ बर्तन मांजती थी अब शासकीय स्कूल जेपी नगर मे΄ सफाई का काम करती है। चार बहनो΄ मे΄ दो की शादी हो चुकी है और वह घर को संभालने नौकरी करने लगी। वैशाली नगर शासकीय कॉलेज से एमए इकोनॉमिक्स की पढ़ाई भी वह साथ-साथ कर रही है।
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