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दो माह के मासूम को बौद्ध भिक्षु बनाने का फैसला, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को शिकायत

दो माह के मासूम को बौद्ध भिक्षु बनाने का फैैसला किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग में की शिकायत

भिलाईMar 30, 2018 / 10:23 pm

Nitin Tripathi

Patrika News
राजनांदगांव . अपने दो माह के मासूम बच्चे को बौद्ध भिक्षु बनाने का फैैसला लेने वाले माता-पिता विवाद में पड़ सकते हैं। मासूम के संबंध में लिए गए इस फैसले को चाइल्ड लाइन के संचालक और राज्य बाल संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य शरद श्रीवास्तव ने किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 का उल्लंघन और बाल अधिकार का हनन बताया है। अधिनियम का हवाला देते हुए मामले की शिकायत राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग में की है।
पत्रिका में ‘2 माह के बच्चे को बौद्ध भिक्षु बनाने का एलान, सात वर्ष तक रहेगा माता पिता के संग’ शीर्षक के साथ समाचार प्रकाशित होने पर मामला सामने आया है। इसके बाद शुक्रवार को आयोग को पत्र लिखा है। इसमें श्रीवास्तव ने बताया कि प्रकाशित समाचार में परिजन ने जिस बच्चे को बौद्ध समाज के प्रचार प्रसार के लिए समाज को समर्पित करने की घोषणा की है उस बच्चे की उम्र वर्तमान में केवल 2 माह की है। जबकि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के लिए संविधान ने यह माना है कि वह निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता है। इस संबंध में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग व कलेक्टर एवं अध्यक्ष जिला बाल संरक्षण समिति राजनांदगांव को भी पत्र लिखा गया है।
राजनांदगांव के कोल्हाटकर दंपती अपने बच्चे को बौद्ध भिक्षु बनाएंगे
राजनांदगांव के शांति नगर में रहने वाले 30 वर्षीय संदीप कोल्हाटकर और उनकी धर्मपत्नी पूनम ने 21 जनवरी को जन्मे अपने पुत्र को बौद्ध समाज के प्रचार-प्रसार के लिए समाज को समर्पित करने की घोषणा की है। उनके अनुसार सात वर्ष की उम्र तक बालक अपने माता-पिता के साथ रहेगा।
अजीब तर्क : सम्राट अशोक की तरह बेटा सौंपा
कोल्हाटकर दंपती ने बच्चे के जन्म के बाद नामकरण की रस्म श्मशान में की थी। बच्चे को सम्राट अशोक की जयंती समारोह में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सौंपने की घोषणा की थी। उनका तर्क था कि सम्र्राट अशोक ने भी अपने पुत्रों को धर्म प्रचार के लिए सौंपा था, वैसा ही वे भी कर रहे हैं।
बड़ा सवाल : बच्चे को क्यों न मिले माता-पिता का साथ
शिकायत में सवाल उठाया गया है कि बच्चे को भले ही सात वर्ष तक माता-पिता अपने साथ रखेंगे, लेकिन उसके बाद बच्चे को बौद्ध भिक्षु बनाने के लिए सौंप देना कहां तक उचित है? क्या उस बच्चे को अधिकार नहीं कि उसकी परवरिश माता-पिता करें, उसे भी परिवार का सुख मिले?
कानूनन : जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में क्या
जानकारों के अनुसार किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 75 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जो कोई बालक का वास्तविक भार साधन या उस पर नियंत्रण रखते हुए उस बालक पर ऐसी रीति से, जिससे उस बालक को अनावश्यक मानसिक या शारीरिक कष्ट होना संभाव्य हो, हमला करेगा, उसका परित्याग करेगा, उत्पीडऩ करेगा, उसे उच्छन्न करेगा या जानबूझकर उसकी उपेक्षा करेगा या उस पर हमला किया जाना, उसका परित्याग, उत्पीडऩ, उत्छन्न या उसकी उपेक्षा किया जाना कारित करेगा या ऐसा किए जाने के लिए उसे उपाप्त करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकेगी या एक लाख रुपए जुर्र्माना या दोनों दंड एक साथ दिए जा सकेंगे।
धर्म के लिए मासूम को छोड़ देने के देश के सबसे बड़े मामलों पर नजर

जब मां ने 5 माह के मासूम का गोदनामा साधु के नाम कर दिया : जयपुर का यह बहुचर्चित मामला वर्ष 2015 का है। जब मां अजमेर निवासी पूजा और पिता बिल्डर पवन ने अपने 5 माह के मासूम का गोदनामा करके खंडवा मध्यप्रदेश के रामेश्वर दयाल महाराज (छोटे सरकार) को सौंप दिया था। बच्चे को उनका उत्तराधिकारी माना जा रहा था। लेकिन बच्चे के दादा राजेंद्र प्रसाद पुरोहित ऐसा नहीं चाहते थे। जयपुर हाईकोर्ट में इस संवेदनशील मामले को रखा गया। तब हाईकोर्ट ने कहा था ‘जब पांच महीने के एक बच्चे के अधिकारों को उसके माता-पिता ही नुकसान पहुंचा रहे हों। उसे धर्म के नाम पर दांव पर लगा रहे हों यहां से बहुत दूर मध्यप्रदेश के किसी आश्रम में वह किसी धार्मिक गुरु की दया पर आश्रित होने वाला हो। अदालत मूकदर्शक नहीं रह सकती। बच्चों को जीवन जीने का अधिकार है और उनके अधिकारों को संरक्षित करना सरकार की जिम्मेदारी है।’

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