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भिलाई

देश की पहली घटना, जब छत्तीसगढ़ के इस गांव को बचाने पुरखों ने मोड़ दी थी नदी की धार, देखने आए थे MP के तत्कालीन CM

ग्राम तिरगा के लोगों ने अपने गांव के अस्तित्व को बचाने के लिए 62 साल पहले श्रमदान कर खरखरा नदी की धार को मोड़ दिया था।

भिलाईSep 17, 2020 / 04:56 pm

Dakshi Sahu

देश की पहली घटना, जब छत्तीसगढ़ के इस गांव को बचाने पुरखों ने मोड़ दी थी नदी की धार, देखने आए थे MP के तत्कालीन CM

देश की पहली घटना, जब छत्तीसगढ़ के इस गांव को बचाने पुरखों ने मोड़ दी थी नदी की धार, देखने आए थे MP के तत्कालीन CM

भिलाई. हमारे बुजुर्गों ने कई ऐसे काम किए है जो आज अविश्वसनीय लगता है। संसाधनों की कमी के बाद भी असंभव सा लगने वाले काम को भी संभव कर दिखाया है। शायद बहुत लोगों को यह मालूम नहीं होगा कि ग्राम तिरगा के लोगों ने अपने गांव के अस्तित्व को बचाने के लिए 62 साल पहले श्रमदान कर खरखरा नदी की धार को मोड़ दिया था। पूरा गांव साढ़े चार महीने तक नदी की धार को मोडऩे में जुटा रहा। उस समय तकनीकी संसाधन नहीं थे। कुदाली, रापा, गैंती, बेलचा और बैलगाडिय़ों की मदद से ही ग्रामीणों ने असंभव लग रहे काम को संभव कर दिया। नदी की धार मोडऩे का पूरा काम दाऊ भंगीराम बेलचंदन के नेतृत्व में हुआ था। उसने धार मोडऩे के लिए अपनी जमीन भी दी थी। बताते हैं नदी की धार मोडऩे की देश की यह पहली घटना थी। इस काम की गंूज देश भर में हुई थी। धार मोडऩे के बाद से गांव बाढ़ की विभिषिका से महफूज है। ग्रामीण कहते हैं कि अगर नदी की धार को नहीं मोड़ा गया होता तो ग्राम तिरगा आज भूगोल के नक्शे में नहीं होता।
तब 700 की आबादी थी गांव की
ग्रामीण बताते हैं कि खरखरा नदी के बाढ़ की विभिषिका को यह गांव हर साल झेलता था। आज गांव की आबादी करीब 4000 है। जब नदी की धार को मोड़ा गया तब आबादी करीब 700 थी। बाढ़ में नदी की धार गांव के बीच से बहने लगती थी। ग्रामीण रतजगा करते। माल मवेशी और जनधन की हानि जैसी विपदा झेलते थे। आधा गांव उजड़ चुका था। तब ग्रामीणों के सामने एक ही विकल्प था कि गांव छोड़कर दूसरी जगह बसने की। यह आसान नहीं था। पुरखों के खेतखार को यूं ही छोडऩा मुश्किल था, पर किसी के पास इसका कोई समाधान भी नहीं था। बारिश के दिनों में ग्रामीण बारी-बारी से रात भर जागकर पहरा देते थे।
कांग्रेस के नागपुर महासम्मेलन से मिली प्रेरणा
दिवंगत पूर्व विधायक प्यारेलाल बेलचंदन के पिता दाऊ भंगीराम बेलचंदन इस गांव के मालगुजार थे और अविभाजित दुर्ग जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी थे। दाऊ भंगीराम के पोते व जिला सहकारी केंद्रीय बैंक दुर्ग के पूर्व अध्यक्ष प्रीतपाल बेलचंदन बताते हैं कि वर्ष 1957-58 में नागपुर में कांग्रेस का महासम्मेलन हुुआ था। उस महासम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत कांग्रेस के तमाम बड़े नेता आए थे। तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अल्लूजी राजू थे। उस महासम्मेलन में नदियों के पानी की उपयोगिता, बाढ़ से बचाव, बांध निर्माण और सहकारिता पर लंबी चर्चा हुई थी। दाऊ भंगीराम बेलचंदन भी जिले के कुछ नेताओं के साथ इस महासम्मेलन में शामिल हुए थे। नदियों और सहकारिता पर हुई बात भंगीराम बेलचंदन के दिमाग में क्लिक कर गई।
दाऊ ने खुदाई करने अपनी जमीन दी नदी से गहरा खोदा गया
नागपुर से लौटकर उन्होंने गांव में बैठक बुलाई। वे प्रभावशाली व्यक्ति थे। इस बैठक में नदी की धार को पलटने (मोडऩे) पर चर्चा हुई। बहुत लोग इससे असहमत थे। वे इस काम को असंभव मानते थे पर दाऊ के सामने उनकी जुबान बंद हो गई। करीब पौन किलोमीटर तक नदी की धार को मोडऩे के लिए खुदाई करने सरकारी जमीन नहीं थी तो उन्होंने अपना भाठा जमीन को दिया। एक कमेटी बनाई गई और श्रमदान कर धार को मोडऩे का प्लान बनाया गया। इस कमेटी में गांव के खम्हन दाऊ, गुमानसिंह, गजपति, भरत, जोहनसिंह, कोमल, रामअवतार,महासिंग, केजू, जगेसर, बृजलाल,गेंदसिंह, मोहन, जीवन जैसे लोग शामिल थे। इसके बाद काम शुरू हुआ। गांव के हर घर से एक पुरुष और एक महिला सदस्य का श्रमदान में शामिल होना अनिवार्य किया गया।
नदी की चौड़ाई से चौड़ा और अधिक गहरा खोदा गया
गांव को बचाने के लिए करीब पौन किलोमीटर तक खुदाई की गई। नदी की चौड़ाई से अधिक चौड़ा और अधिक गहरा खोदा गया। उस जमाने में आम लोगों के लिए चाय का इतना प्रचलन नहीं था। दाऊ भंगीराम बेलचंदन ने काम करने वाले पुरुषों के लिए चोगी माखूर (बीड़ी व तंबाकू) का इंतजाम किया था। काम के बीच में चोंगी माखूर से थकान मिटाते फिर काम में लग जाते। प्रीतपाल बताते हैं कि जिस दिन नदी की धार को खोद कर बनाए गए नदी में गिराया गया उस दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अल्लूजी राजू, मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू समेत कई नेता आए थे। काटजू ने ही धार को खोदकर बनाए गए जगह पर गिराने के लिए पहला फावड़ा चलाया था। जब काम चल रहा था उस दौरान भी कई नेता दूसरे राज्यों से भी आते थे। किसान नेता इंद्रेश हरमुख कहते हैं कि सचमुच यह असंभव सा काम था। जिस काम को ग्रामीणों ने श्रमदान कर किया है उस काम के लिए आज करोड़ों रुपए खर्च करने की जरूरत पड़ती।

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