भिलाई

पाटन नगर पंचायत चुनाव में मुख्यमंत्री और सांसद दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर

प्रदेश की राजनीति में चाचा व भतीजे के बीच घमासान को लेकर सुर्खियों में रहने वाले पाटन में इस बार भी नगर पंचायत का चुनाव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बनाम सांसद विजय बघेल होने की संभावना है। इस चुनाव में जहां दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी।

भिलाईDec 05, 2019 / 11:30 pm

Satya Narayan Shukla

पाटन नगर पंचायत चुनाव में मुख्यमंत्री और सांसद दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर

दुर्ग@Patrika. प्रदेश की राजनीति में चाचा व भतीजे के बीच घमासान को लेकर सुर्खियों में रहने वाले पाटन में इस बार भी नगर पंचायत का चुनाव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बनाम सांसद विजय बघेल होने की संभावना है। इस चुनाव में जहां दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। सीएम भूपेश् ाबघेल पर विधानसभा में जीत के बाद अब नगर पंचायत की सत्ता भाजपा से छीनने का सुनहरा मौका है, वहीं सांसद विजय बघेल पर पाटन का किले के साथ साख बचाने की है। लिहाजा दोनों ही नेता चुनाव मैदान में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहेंगे। कहा जा रहा है कि दोनों ने ठोक-बजाकर प्रत्याशी मैदान में उतारा है। वहीं अब एक-एक वोट की रणनीति के साथ मैदान फतह करने की कवायद शुरू कर दी गई है।
सीएम भूपेश बघेल और सांसद विजय बघेल दोनों का निर्वाचन क्षेत्र

पाटन सीएम भूपेश बघेल और सांसद विजय बघेल दोनों का निर्वाचन क्षेत्र हैं। सीएम भूपेश बघेल यहां तिकड़ी के साथ पांच बार जीत दर्ज कर सत्ता की शीर्ष पर पहुंचे में कामयाब हुए हैं। वहीं बदली हुई परिस्थिति में उन्हें अपने ही भतीजे विजय बघेल से पराजय का भी सामना करना पड़ा था। पाटन नगर पंचायत दोनों के निर्वाचन क्षेत्र को मुख्यालय है। इस लिहाज से दोनों का बराबर दखल माना जाता है और यहां की राजनीति से ही पूरे विधानसभा क्षेत्र की दशा व दिशा तय होती है। इस लिहाज से सीधे तौर पर इस बार भी पाटन का चुनाव भूपेश बनाम विजय होने जा रहा है।
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भूपेश 27 तो विजय 23 हजार से जीते
नवंबर में हुएविधानसभा चुनाव में सीएम भूपेश बघेल ने पाटन विधानसभा में 27 हजार 477 मतों से जीत दर्ज की है। वहीं 3 माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में सांसद विजय बघेल ने 23 हजार 31 वोट से यहां जीत दर्ज की। हालांकि मुकाबले में दोनों आमने-सामने नहीं थे। अब 9 माह बाद नगर पंचायत का चुनाव होने जा रहा है और दोनों के ही समर्थक मैदान में हैं। ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होना तय है।
पार्षद से ज्यादा अध्यक्ष पर फोकस
बदले हुए नियम के अनुसार इस बार अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं किया जाएगा। इसकी जगह निर्वाचित पार्षद अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। इसलिए दोनों नेताओं के सामने दोहरी चुनौती रहेगी। पहले अपने ज्यादा से ज्यादा प्रत्याशियों को जीताकर लाना होगा। ऐसा हुआ तो अध्यक्ष के चुनाव में परेशानी नहीं होगी। परिणाम नजदीकी का रहा तो अध्यक्ष के चुनाव में फिर सिर-फुटौव्वल हो सकती है।
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तीसरा विकल्प भी रहा है पसंद
पाटन के 15 वार्डों के 7 हजार 810 मतदाता इस बार अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। यहां के मतदाता राजनीतिक दलों के बजाय प्रत्याशियों के व्यक्तित्व को भी महत्व देते रहे हैं। इसके चलते वर्ष 2011 के चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशियों को नकारकर मतदाताओं ने निर्दलीय उपासना चंद्राकर के सिर जीत के सेहरा बांध दिया था। हालांकि चंद्राकर ने बाद में भाजपा का दामन थाम लिया था। पिछली बार भाजपा के कृष्णा भाले ने बाजी मारी थी। इस बार मैदान में उपासना चंद्राकर व भाले के बेटे हर्ष भाले दोनों भाजपा से पार्षद प्रत्याशी हैं।
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