यहां सबसे गंभीर समस्या है कि यहां के बच्चे पढ़ाई करने 6 किमी दूर पैदल चलकर स्कूल पहुंचने की है। यह मार्ग भी किसी खतरे से खाली नहीं है। सुनसान जंगल के रास्ते से बच्चे वन्य प्राणियों का डर और झिझक के बीच प्रतिदिन खाली पैर पैदल स्कूल पहुंचते हैं। @Patrika.यही नहीं इस गांव की परेशानियां समस्या यही खत्म नहीं होती। गांव की इस स्थिति को देखकर तो इस गांव में कोई अपनी बेटी देना नहीं चाहते। पर इस गांव की यह गंभीर समस्या आज भी शासन-प्रशासन के नजरों से दूर है। क्योंकि इस गांव में कोई अधिकारी नहीं आता, तो कहां इस गांव की समस्या दिखेगी।
ग्रामीण गायत्री बाई ने बताया गांव की जनसंख्या मात्र 60 है, पर यहां प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल या आंगनबाड़ी नहीं है। @Patrika.कक्षा पहली की पढ़ाई करने भी यहां के छोटे-छोटे बच्चों को पैदल ही जंगल रास्ते से स्कूल जाना होता है। ग्रामीणों ने बताया गांव के 15 बच्चे शिक्षा ग्रहण करने ग्राम मडिय़ाकट्टा स्थित शासकीय स्कूल जाते हैं। गांव में बिजली तो है, पर गलियां अंधेरे में डूबी रहती है।
ग्रामीण रूखमणी बाई ने बताया गांव में सड़क भी ठीक से नहीं है और न ही यहांं मोबाइल का नेटवर्क रहता है। कई बार रहवासियों का स्वास्थ्य खराब हुआ तो संजीवनी 108 या महतारी 102 को बुलाने के लिए सम्ंपर्क नहीं हो पाता, अंत में निजी वाहन से ही स्वास्थ्य केंद्र ले जाते हैं। @Patrika.इस गांव की परेशानी यहीं कम नहीं होती। बताया कि यहां आज तक कोई स्वास्थ्य शिविर नहीं लगा। सड़क की खराब हालत और सुनसान मार्ग को देखते हुए स्वास्थ्य कर्मी यहां नहीं आते। बच्चों को टीका लगाना हो तो 6 किमी दूर मडिय़ाकट्टा जाना होता है।
ग्राम घोरदा के इन छोटे बच्चों का पैदल स्कूल जाना किसी खतरे से कम नहीं है। बताया जाता है कि यह मार्ग काफी सुनसान रहता है। इसलिए असमाजिक तत्व व नकाबपोशों ने बीते साल लड़कियों से छेड़छाड़ की घटना को अंजाम दिया था। @Patrika.पर इन घटनाओं से अभी अब तक शासन-प्रशासन की आंखे नहीं खुली है, ऐसे में आज भी बच्चे डर के बीच स्कूल आते हैं।
छात्रा उषा ने बताया कि वह कक्षा आठवीं की पढ़ाई करने अकेली ही पैदल 6 किमी दूर ग्राम मडिय़ाकट्टा जाती हैं। @Patrika. जंगल में जंगली जानवर है, पर पढ़ाई करना भी है इस कारण स्कूल जाते समय आधा डर और आधा बल के साथ स्कूल आते-जाते हैं। उन्होंने कहा शासन-प्रशासन हमारी परेशानियां दूर करने पहल करे।