सार्वजनिक उद्योगों को हर हालत में खत्म करना अकेले यूनियन ही इसके लिए संघर्ष करेगी तो सफलता नहीं मिलेगी। सार्वजनिक उपक्रम देश के विकास में अहम भूमिका निभाता रहा है। 1991 के बाद से जिन नीतियों पर केंद्र सरकारें चल रही हैं, उससे यह साफ है कि उनका मकसद सार्वजनिक उद्योगों को हर हालत में खत्म कर देना है। देश के निर्माण में केवल और केवल सार्वजनिक उद्योगों ने ही अपनी अग्रणी भूमिका अदा की है। बीएसपी को बचाने अभी से सामने नहीं आए, तो हमारा नंबर भी आ जाएगा.
वेतन समझौता के थोपे जा रहे शर्तों को वापस लो यूनियन ने प्रदर्शन के दौरान कहा कि वेतन समझौता पर थोपे गए शर्तों को वापस लिया जाए। सेल के इकाइयों को बेचने की साजिश को बंद किया जाए। इस मौके पर ठेका श्रमिक और बीएसपी एक्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन के साथी भी मौजूद थे। यूनियन ने प्रबंधन को इस मांग को लेकर पत्र भी सौंपा।
स्पेशल स्टील प्लांटों पर है गर्व
यूनियन ने इस मौके पर कहा कि उनको स्पेशल स्टील प्लांटों पर गर्व है, आधुनिक धनुष तोप का निर्माण कर चर्चा में रहने वाले, मानवरहित चंद्रयान 2 को बनाने में सेलम स्टील प्लांट के स्पेशल स्टील से बने 321 शीट लगे हैं। इन जैसे प्लांट की बदौलत ही हम कई किस्म के अंतरिक्ष उपकरण, रक्षा उपकरण व अन्य औजार, हथियार बना पा रहे हैं।
अफोर्डेबिलिटी क्लॉज वापस ले सरकार
यूनियन के पदाधिकारियों ने कहा कि पिछले दिनों जस्टिस सतीश चंद्र कमेटी की सिफारिशों के आधार पर देश के सभी सार्वजनिक उद्योगों के वेतन समझौता पर जिस तरह की अफोर्डेबिलिटी क्लॉज को थोपे हैं, उसे वापस कर वेतन समझौता का रास्ता साफ किया जाए।
उद्योगों पर छाई हुई आर्थिक संकट इस क्लॉज में केंद्र ने तीन प्रमुख शर्तों को लगाए हैं, जिसमें 3 साल तक लगातार 3,000 करोड़ रुपए से ज्यादा हर साल लाभ की स्थिति में रहने, 3 साल की कमाए हुए लाभ के औसत का करीब 20 फीसदी वेतन समझौता के लिए देने व वेतन समझौता के बाद 3 साल तक लाभ की स्थिति में रहने की बात कही है, जो कि विश्व के आर्थिक मंदी व देश के अंदर उद्योगों पर छाई हुई आर्थिक संकट को ध्यान में रखते हुए सरकार की सुनियोजित चाल के अलावा कुछ भी प्रतीत नहीं होता है।