समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी से लेकर मिलिंग और परिवहन आदि खर्च को मिलाकर एक किलो चावल की कीमत सरकार को करीब 40 रुपए पड़ता है। सरकार यह चावल गरीबों को मुफ्त में प्रति राशन कार्ड 35 किलो दे रही है। उसी चावल की कालाबाजारी कर कोचिए 25 रुपए प्रति किलो की दर से कुछ मिलर्स को बेच रहे हैं। मिलर्स उसी चावल को दोबारा पेकिंग कर नान (नागरिक आपूर्ति निगम) के गोदाम में जमा कर देते हैं।
इससे उनको बड़ा मुनाफा हो रहा है। क्योंकि समर्थन मूल्य के धान की मिलिंग कर मिलर्स को चावल जमा करना पड़ता है। कालाबाजारी के चावल जमा करने से वे मिलिंग का खर्च बचा लेते हैं। इधर समर्थन मूल्य के धान की मिलिंग कर चावल को खुले बाजार में बेचकर अधिक मुनाफा कमाते हैं।
जानकारी के मुताबिक दुर्ग-भिलाई में रोज औसतन 100 टन चावल की हेराफेरी की जा रही है। इस तरह देखें तो 25 रुपए प्रति किलो के हिसाब से ढाई करोड़ रुपए का चावल की कालाबाजारी रोज की जा रही है। जिले के जिम्मेदार प्रशासक ठोस कार्रवाई के बजाय लीपापोती कर मामला रफा-दफा कर देते हैं।
नान के गोदामों से जिन दुकानों में चावल भेजा जाता है, उस दुकान में अचानक खाद्य विभाग के अधिकारी दबिश देकर स्टॉक की जांच करें। इसके साथ ही खाद्य विभाग एक टीम बनाकर उस परिवहनकर्ता की गाड़ियों की जांच करें, जब वे खाली होने जाती है। इससे दुकान संचालक की चोरी पकड़ा जाएगी।
एक राइस मिलर्स ने नाम न प्रकाशित करने के आग्रह पर पीडीएस चावल की हेराफेरी के बार में पूरी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकारी दुकानों तक चावल परिवहन करने के लिए टेंडर होता है। जिस ट्रांसपोर्टर को टेंडर मिलता है, वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली लिखे गाड़ियों में लोडकर चावल उचित मूल्य की दुकान में पहुंचाते हैं। फिर सुपेला के दो कोचिए खेल यहां से शुरू करते हैं। गोदाम से जैसे ही गाड़ी निकलती है कोचिए उसके पीछे लगे रहते हैं। दुकान संचालक से मिलीभगत कर स्टॉक कम उतारते हैं। उसी चावल को दलालों के माध्यम से राइस मिलर्स के पास खपा देते हैं।
दुर्ग एवं भिलाई के कोचिए चावल की कालाबाजारी में लगे हैं। दुर्ग क्षेत्र के कोचिए करीब 60 टन और भिलाई क्षेत्र से 35 टन पीडीएस चावल की रोज हेराफेरी होती है। इसे जेवरा स्थिति मिलों में खपाए जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि खाद्य विभाग को इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन मिलर्स के खिलाफ कार्रवाई तो दूर जांच भी नहीं करते हैं। इसका फायदा कोचिए, दलाल और मिलर्स उठा रहे हैं।
परिवहनकर्ता से दलाल मिलकर दुकानदारों को चावल कम देते हैं। उसी चावल को राइस मिलों में खाली कर हेराफेरी करते हैं। रोज कम से कम 5 टन की हेराफेरी की जा रही है। यदि दुकानदारों के यहां भेजे गए चावल की वजन कराई जाए तो वास्तविक स्थिति साफ हो जाएगी।
राइस मिलर्स पीडीएस के चावल को दलालों और कोचिए से खरीदते है। उस चावल की रिसाइकिलिंग कर नान में जमा करा देते है। इससे उनको मिलिंग का खर्च बच जाता है। कई मिलर्स अन्य प्रांतों में भी उसकी सप्लाई करते हैं।
पीडीएस की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ खाद्य विभाग को सतत और सख्त कार्रवाई के निर्देश दे दिए गए हैं। किसी प्रकार से अधिकारियों की लापरवाही मिली तो उनके खिलाफ भी एक्शन लिया जाएगा। -ऋचा प्रकाश चौधरी, कलेक्टर दुर्ग