आकाश ने बताया कि कंचनजंघा की चोटी से भारत के सिक्किम और दार्जिलिंग की धरती को निहारने का अलग ही अनुभव था जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। 2014 के बाद यह पहला दल है जिसने कंजनजंघा चोटी पर पहुंचने में सफलता पाई है। यहां पहुंचने वालें की मृत्युदर 22 प्रतिशत है।
इस चोटी का कुछ हिस्सा नेपाल और कुछ भारत के सिक्किम में है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 8586 मीटर यानी 28,169 फीट है। 2018 से पहले यहां सिर्फ 334 पर्वतारोही ही पहुंचे हैं जिसमें से 26 भारतीय हैं। जबकि एवरेस्ट में पहुंचने वालों की संख्या साढ़े छह हजार से अधिक है।
आकाश शुरू से ही एडवेंचर स्पोट्र्स के शौकीन रहे हैं। उन्होंने पहले भी मनाली से लेह होते हुए जम्मू तक का सफर बाइक में तय किया। साथ ही ट्रेकिंग के तहत अटल बिहारी बाजपेई इंस्टीटट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड एलाइड स्पोट्र्स की 7००० से मीटर से अधिक सतोपंतपीक पर 2 बार एवं लेह रीजन की 6 हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पीक पर 3 बार चढ़ाई पूरी की है। उन्होंने बताया कि यह सारा अनुभव उन्हें कंचनजंघा की चढ़ाई के वक्त काम आया।
ओएनजीसी मिशन कंचनजंघा की टीम को केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने तिरंगे के साथ रवाना किया था। टीम नेपाल के रास्ते अपने मिशन को पूरा करने काठमांडू पहुंची। कंचनजंघा की खतरनाक चोटी पर फतह करने के साथ अपने मिशन को पूरा कर जब यह टीम 3 जून को वापस लौटी तो भारत में इनका फिर से भव्य स्वागत किया गया।
आकाश ने बताया कि वह ओएनजीसी मुंबई में सीनियर ट्रांसपोर्ट अधिकारी है। उसकी स्कूली शिक्षा बीएसपी सीनियर सेकंडरी स्कूल सेक्टर 10 से एवं इंजीनियरिंग की पढ़ाई शंकरा कॉलेज जुनवानी से हुई है। इसके बाद उन्होंने एमबीए- आईआईबीएम बंगलुरु से किया। वे पूर्व बीएसपी कर्मी स्व जीएस मिस्त्री एवं लक्ष्मी मिस्त्री के पुत्र हैं।