2002 से 2007 के बीच जब त्रिपाठी बीएसएनएल महाप्रबंध कार्यालय दुर्ग में एडिशनल जनरल मैनेजर के पद पर पदस्थ रहे। तब विभाग ने किराए पर गाडिय़ां लेने के लिए निविदा बुलाई गई थी। तब निविदाकारों के पास स्वयं के या फर्म के नाम पर व्यावसायिक रूप से वाहनों का पंजीयन नहीं था। इसके बावजूद एक फर्म को ठेका दिया गयाथा। इसकी शिकायत हुई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुआ। जिस फर्म को उन्होंने ठेका दिलवाया था। वही फर्म लगातार सात वर्षों उच्चदर पर बीएसएनएल को किराए पर वाहन उपलब्ध कराया। 2008 में जब उनका रायपुर स्थानांतरण हुआ। तब भी उन्होंने ऐसा सेटिंग्स किया था कि उसी फर्म को ही ठेका मिला। इतना ही नहीं जब वह आबकारी विभाग में प्रतिनियुक्ति पर गए। तब भी उसी फर्म को आबकारी विभाग में अधिकारियों की माटिरिंग और उसी फर्म से किराए पर गाडिय़ां ली।
बता दें कि 27 फरवरी को आईटी की टीम ने त्रिपाठी के सेक्टर-9 स्थित आवास में छापा मारा। 29 फरवरी की शाम तक चली जांच-पड़ताल में उनके निवास से लगभग पेपर, डायरी, जमीन के दस्तावेज, नकदी राशि सहित इलेक्ट्रानिक्स गैजेट जब्त किया है।