शासकीयकरण के लिए हुई हड़ताल
भिलाई लोक सृजन समिति, मेडिकल कॉलेज के कर्मचारी संघ एवं लोक तांत्रिक इस्पात इंजीनियरिंग मजदूर यूनियन की उपस्थिति में एक संयुक्त बैठक रखी गई थी, जिसमें 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन एक दिवसीय सांकेतिक भूख हड़ताल तक की गई। हड़ताल में डॉक्टरों और कमियों के बकाया वेतन को लेकर विवाद हुई। मैनेजमेंट ने कर्मियों का वेतन रिलीज ही नहीं किया। वहीं एमबीबीएस के विद्यार्थियों ने भी राज्यपाल से मिलकर अपनी समस्या बताई थी।
चंदूलाल चन्द्राकर स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय में वर्ष 2017 में प्रवेश परीक्षा (नीट) उत्तीर्ण कर छात्रों ने एडमिशन लिया था। यह एडमिशन निर्धारित स्टेट और केन्द्र के कोटे के तहत लिया गया था। शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, पर वर्ष 2018 में चिकित्सा महाविद्यालय की मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया ने मान्यता रद्द कर दी। अब तक महाविद्यालय को मान्यता नहीं दी गई है। उसके बाद से महाविद्यालय में आधारभूत सुविधाओं में कमी आने लगी और कक्षाएं भी निरंतर नहीं लग रही थी। पंजीयन न होने की स्थिति में एमबीबीए छात्र प्रैक्टिस से भी वंचित हो गए थे। न शासकीय सेवाओं के लिए पात्र थे।
चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल अस्पताल प्रबंधन से बैकों की 143 करोड़ की लेनदारी का विवाद काफी लंबे समय से चला आ रहा है। पूर्व सांसद व वरिष्ठ कांग्रेस नेता स्व. चंदूलाल चंद्राकर के पौत्र अमित चंद्राकर ने अस्पताल प्रबंधन के डायरेक्टर डॉ. एमपी चंद्राकर सहित दस लोगों पर उनके दादा चंदूलाल के नाम का दुरुपयोग करने का गंभीर आरोप लगाया था। कहा था कि यदि प्रबंधन ने विवाद को नहीं सुलझाया तो डायरेक्टर्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से परहेज नहीं करेंगे। अमित ने दोनों बैंक और नगर निगम को भी पार्टी बनाने की बात कही थी। कहा था कि चंदूलाल चंद्राकार मेमोरियल हॉस्पिटल प्रबंधन समिति में उनके परिवार का ना तो कोई सदस्य है और ना ही कोई डायरेक्टर। बैंक के इस वसूली नोटिस से उनको एवं उनके परिवार को गहरा आघात लगा है। परिवार के साथ धोखाधड़ी भी की गई है।
शैक्षणिक सत्र 2017-18 में कॉलेज की मान्यता को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई थी। बावजूद इसके प्रबंधन ने 85 सीटों पर मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन बांट दिए। उसी समय कॉलेज की मान्यता समाप्त हो गई। जितने भी विद्यार्थियों को एडमिशन दिए गए थे, वे सभी न्यायालय की शरण में पहुंच गए। प्रत्येक विद्यार्थी से 35 से 50 लाख रुपए तक की राशि ली गई थी, जिसे कोर्ट की दखल के बाद सभी विद्यार्थियों को वापस लौटाना पड़ा। यहीं से कॉलेज का वित्तीय ढांचा खराब होता गया और कॉलेज के संचालन में दिक्कत आने लगी। स्टाफ का वेतन तक नहीं दिया गया।