scriptWold tourism day: देश का एकमात्र ऐतिहासिक धरोहर हमारे CG में …पढि़ए टूरिज्म कॉरिडोर की रिपोर्ट | Wold tourism day in chhattisgarh | Patrika News
भिलाई

Wold tourism day: देश का एकमात्र ऐतिहासिक धरोहर हमारे CG में …पढि़ए टूरिज्म कॉरिडोर की रिपोर्ट

पत्रिका दुर्ग संभाग के ऐतिहासिक विरासतों का रोडमैप और पूरी जानकारी के साथ अपने पाठकों के लिए उपलब्ध करा रहा है। हमारी पड़ताल में। ऐसी कई दुर्लभ जानकारी मिली है। जिसके बारे में खुद वहां के लोग अनजान है।

भिलाईSep 27, 2019 / 12:34 pm

Tara Chand Sinha

dev baloda temple

Wold tourism day- देश का एकमात्र ऐतिहासिक धरोहर हमारे संभाग में … पढि़ए टूरिज्म कॉरिडोर,Wold tourism day- देश का एकमात्र ऐतिहासिक धरोहर हमारे संभाग में … पढि़ए टूरिज्म कॉरिडोर,Wold tourism day- देश का एकमात्र ऐतिहासिक धरोहर हमारे संभाग में … पढि़ए टूरिज्म कॉरिडोर

ताराचंद सिन्हा@ भिलाई. हमारे संभाग में कई ऐसी ऐतिहासिक और विश्व विख्यात धरोहर बिखरे पड़े हैं। जिसे सहेजने की जरूरत है। इनमें से कई तो ऐसी दुर्लभ हैं। जो प्रदेश और देश में दूसरी जगह नहीं है। इन ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने की बेहतर संभावनाएं हैं। सभी स्थलों को आपस में जोड़कर राष्ट्रीय स्तर के टूरिज्म कॉरिडोर बनाया जा सकता है। इससे उपेक्षित पड़े इन स्थलों को सहेजने के साथ अपनी विरासत को संरक्षित कर सकते हैं। ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों को पर्यटन के रूप में विकसित होने से रोजगार के नए अवसर भी मिलेगा।पर्यटकों की आवाजाही से गांव, जिले और संभाग को राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान भी मिलेगी।
पत्रिका अपने स्थापना दिवस पर
पत्रिका दुर्ग संभाग के 12 ऐतिहासिक विरासतों का रोडमैप और पूरी जानकारी के साथ अपने पाठकों के लिए उपलब्ध करा रहा है। हमारी पड़ताल में। ऐसी कई दुर्लभ जानकारी मिली है। जिसके बारे में खुद वहां के लोग अनजान है। हर एक स्थल की अपनी अलग कहानी है। कोई रियासत से जुड़ा है। स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।जिसे देखकर ही मन प्रफुल्लि हो उठता है। कुछ तो धर्म संस्कृति से जुड़ा से है। जिनके दर्शन मात्र से मन को एक सुखद अहसास होता है। जिसे देखने के लिए बाहर जाते हैं। जबकि ऐसी धार्मिक स्थल और विरासत एक रोड मैप में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता है। कई ऐसी विरासत है। जो सैकड़ों साल के बाद आज भी उसी स्थिति में है। जैसा पहले बनाया गयाथा। ठीक वैसा ही है। इस वजह से यह लोगों के बीच श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। हम इस टूरिज्म कॉरिडोर की शुरुआत दुर्ग जिले के देवबलौदा प्राचीन मंदिर से कर रहे हैं। भोरम देव कबीरधाम में समाप्त होता है।
सबसे अलग- देवबलौदा

नवरंग मंडप नागर शैली में बना देवबलौदा का एकमात्र प्राचीन शिव मंदिर है। जहां ध्वज कलश नहीं है। केवल मंडप है। जो अन्य प्राचीन मंदिरों से अलग है। मंदिर के मंडप में प्रवेश करने के लिए सात सोपान है। मंडप खुले रूप में है। वितान स्तंभ के सहारे हैं। इसके बाद अंतराल है और अंतराल के बाद गर्भगृह है। गर्भगृह में स्वयं-भू शिवलिंग है।गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ दो आले हैं। जिसमें में गणेश जी अलग-अलग रूप में विराजमान हैं। गर्भ गृह के चारों तरफ सुंदर अलंकरण दिखाई देता है। द्वार के ऊपर की ओर सात विभिन्न देवी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। बाजू में कुंड है। जिसमें 23 सीढिय़ां है।
खासियत – कल्चुरी वंश के राजा ने 13 वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया है। आस्था, स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। इस वजह से इसकी तुलना भोरमदेव, खजुराहो तथा अजंता की गुफा से तुलना की जाती है।
किवदंती- लोक मान्यता है कि मंदिर को बनाने वाला शिल्पी इसे अधूरा छोड़कर चला गया था। इस वजह से इसका गुंबद ही नहीं बन पाया।मंदिर के बारे में दूसरी मान्यता यह भी है कि जब शिल्पकार मंदिर को बना रहा था। तब वह इतना लीन हो चुका था कि उसे अपने कपड़े तक की होश नहीं थी। दिन रात काम करते-करते वह नग्न अवस्था में पहुंच चुका था। उस कलाकार के लिए एक दिन पत्नी की जगह बहन भोजन लेकर आई। जब शिल्पी ने अपनी बहन को सामने देखा तो दोनों ही शर्मिंदा हो गए। मंदिर के बाजू के कुंड में छलांग लगा दी। बहन, भाई के गम में बाजू के तालाब में कूद गई। वहीं यहां मौजूद कुंड के भीतर ऐसा गुप्त रास्ता है जो आरंग में निकलता है।
पहुंच मार्ग- रायपुर से 25 किलोमीटर दूर दुर्ग- नागपुर नेशनल हाइवे-53 के किनारे है। दुर्ग रेलवे स्टेशन से लगभग 18 किलोमीटर और भिलाई रेलवे स्टेशन से लगभग 2 मील की दूरी है। रायपुर से कुम्हारी, चरौदा जाते समय चरौदा के पहिले बायीं तरफ इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप से थोड़ा-सा आगे है। यहां दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे लाइन सी केबिन के समीप है।
shri ram temple deokar
देश का इकलौता पाप विमोचन कुंड – बानबरद
गौ हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने वाले देश के इकलौता मंदिर दुर्ग जिले के बानबरद में है। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बानबरद अहिवारा में 17वीं शताब्दी का ऐतिहासिक विष्णु मंदिर है। यहां फाल्गुन में हर साल माघ पूर्णिमा में तीन दिन का भव्य मेला लगता है। छत्तीसगढ संस्कृति और पुरात्व विभाग की सूची में यह संरक्षित क्षेत्र है।
किवदंती- 17 वीं सदी के इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा है। एक सीढ़ीदार बावड़ी (पाप विमोचन कुंड) है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से गौ-हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाती है। बानबरद में गुप्त सम्राटों के कुल 9 स्वर्ण सिक्के मिले हैं। इतिहासकारों के मुताबिक सात सिक्के स्कंदगुप्त और एक-एक कुमार गुप्त व काचगुप्त के हैं। ऐसा माना जाता है कि बाणासुर नाम के राक्षस के हाथों निर्दोष गायों की हत्या हो गई। बाणासुर ने श्रीविष्णु से समाधान पूछा। विष्णु ने उन्हें बताया कि यहां कुंड का निर्माण करो, उनकी प्रतिमा निकलेगी, जिसे स्थापित कर कुंड में स्नान करने पर ही गौ-हत्या के पाप से झुटकारा मिल पाएगा।
ऐसे पहुंचें – दुर्ग से उत्तर की ओर अहिवारा-बेरला रोड पर 18 किलोमीटर पर स्थित है। पावर हाउस भिलाई से जामुल होते अहेरी ऐरो ड्रम होते हुए बानबरदा तक पहुंचा जा सकता है। साधन-ऑटो टैक्सी या अपने खुद के वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
judwa mandir sahaspur
छातागढ़ दुर्ग में टीले पर विराजित हैं बाबा
शिवनाथ नदी के महमरा तट पर एक टीले में बना है छातागढ़ बाबा का मंदिर। भगवान शिवजी और पार्वती की लगभग 12 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है। यह करीब दो सौ साल पुराना है। महाशिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है। शिवलिंग की स्थापना को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहां की प्रसिद्ध को देखते हुए राज्य सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की है।
किवदंती-मंदिर समिति के छेदीलाल चक्रधारी मान्यता के बारे में बताते हैं कि छातागढ़ से राजिम तक एक लंबी सुरंग बना हुआ है। इसी सुरंग से राजा जगतपाल घोड़े में बैठकर भगवान राजीव लोचन का दर्शन के लिए राजिम जाते थे। राजा भगवान राजिव लोचन के अनन्य भक्त थे।
देश का एकमात्र देवी भक्त लंगूर वीर

देश में देवी भक्त लंगूरवीर का एकमात्र मंदिर दुर्ग में है। शनिश्चरी बाजार दुर्ग में भव्य मंदिर है। सालभर श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। चैत्र और क्ंवार नवरात्रि में मेला लगता है। विश्व में देवी भक्त लंगूरवीर का सबसे पुराना मंदिर काठमांठू नेपाल में है।
ऐसे पहुंचें- दुर्ग से पश्चिम में तीन किलोमीटर पर स्थित है। बस स्टैंड से चंडी मंदिर होते बघेरा रोड होकर पंचशील नगर के पास से दायीं सड़क होते हुए ग्राम मोहलाई होते छातागढ़ तक पहुंचा जा सकता है। साधन-ऑटो टैक्सी या अपने खुद के वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
गुंबद आकार का 400 साल पुराना है देवकर में श्रीराम मंदिर

सुरही नदी के किनारे बसी देवकर को भी टूरिज्म क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। गुबंद आकर 400 साल पुराना श्रीराम मंदिर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है। वहीं 16वी शताब्दी का घुघुस राजा मंदिर देखने लायक है। दोनों ही प्राचीन मंदिर दुर्ग-बेमेतरा रोड किनारे सुरही नदी के तट पर है। जिसकी अपनी अलग पहचान है। चार मंदिरों के समूह वाले श्रीराम मंदिर परिसर में एक मंदिर ऐसा है जिसका आकार गुंबद के रूप में है। शीर्ष पर ध्वज कलश स्थापित है। चारो दिशाओं में मेहराब बनी हुई है। किसी हिन्दू मंदिर में इस तरह का गुबंद प्रदेश और देश में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता। इस गुंबद के पीछे की दिलचस्प कहानी ही पर्यटकों को आकर्षिक करता है।
खासियत- प्राचीन मंदिर भगवान श्रीराम को समर्पित है। जनश्रृति के मुताबिक मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। यहां भगवान श्रीराम चारों भाईयों के साथ दो रूप में विराजमान है। जो पर्यटक और श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। प्रमुख मंदिर जगती पर निर्मित है। मंदिर 18 मीटर लम्बा और 8 मीटर चौड़ा है तथा लगभग 2.5 मीटर ऊंचे चबुतरे पर स्थित है। मंदिर का मण्डप 12 मीटर लम्बा एवं 5 मीटर चौड़ा है। इसके इसमें 12 आले हैं। प्रवेश द्वार उत्तरमुखी है। प्रवेश द्वार के दोनों तरफ नृत्य मुद्रा में महिला है।गर्भगृह में सीताराम, लक्ष्मण, मांडवी-भरत, श्रुतकीर्ति-शत्रुघन राजसी रूप में विराजमान है। उसके ठीक सामने पूर्वमुखी मंझला मंदिर है। जहां श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन की वनवासी रूप में सुंदर मूर्तियां है। इसके ठीक सामने पश्चिम मुखी गुबंद के आकार का मंदिर है। जहां हनुमान और शिवलिंग विराजित हैं। भगवान बलभ्रद, जगन्नाथ और सुभद्रा भी विराजमान है। चारों मंदिर में प्रतिमा स्वरूप में हनुमान जी विराजित हैं।
किवंदती- किवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण स्वामी माधव दास ने करवाया है, लेकिन संस्कृति और पुरातत्व विभाग में जो प्रमाण मिलते हैं। उसके मुताबिक यह मंदिर 16वीं शताब्दी से पहले बना है।

देश का एकमात्र शिलालेख जिसे कोई नहीं पढ़ पाया

देश का एकमात्र शिलालेख हैै। जिसे अब तक कोई नहीं पढ़ पाया। शिलालेख साजा विकासखंड से 11 किलोमीटर दूर देवकर में है।16वीं सती का मृति स्मारक है। जो बिखरे हुए हैं। एक सती स्तंभ अभिलेख युक्त है। जिसे कोई नहीं पढ़ पाया। यहां दो मंदिर है। एक मंदिर के गर्भगृहम ें घिस मुखवाली नृसिंह की प्रतिमा है। जिसे लोग घुघुस राजा (आदिवासी मिथक के नायक ) के रूप में मानते हैं। दूसरे मंदिर में हनुमान की प्रतिमा स्थापित है। ये दोनों मंदिर
किवदंती- पुजारी राधेश्याम मरकाम का कहना हैकि राजा घुघुस अपने सेना के साथ सुरही नदी के किनारे चल रहे थे। रात्रि में विश्राम करने के लिए देवकर में रूके हुए थे। ऐसा कोई दैविक श्राप हुआ कि सभी पत्थर बन गए। सैनिकों का घोड़े पर सवार, खड़े हुए कई प्रतिमाएं थी। जो बिखर गई। उनका यह भी कहना है रात में डीहपारा के आसपास के एरिया में घोड़े की चलने की आवाज सुनाई देता है। इसलिए लोग उसे शहर के रक्षक के रूप में पूजा करते हैं। शादी-विवाह का प्रथम निमंत्रण राजा घुघुस को ही देते हैं।
13वीं शताब्दी का जुड़वा मंदिर – सहसपुर
जुड़वा मंदिर वास्तुकला की नायाब धरोहर है। फणी नागवंशी राजाओं के शासनकाल में निर्मित जुड़वा मंदिर प्रतिनिधि स्मारकों में से एक है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कवर्धा के फणी नागवंशी राजाओं ने 13-14 वीं शताब्दी में बनवाया है।
खासियत-मंदिर 13 वीं शताब्दी का है। जुड़वा मंदिर पूर्वाभिमुख है। एक मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। दूसरे मेंं प्रतिमा नहीं थी। बाद में गांव वालों ने हनुमान की प्रतिमा स्थापित की है। मंदिर में अंतराल, गर्भगृह और मंडप है। नागर शैली में आमलक एवं कलश युक्त शिखर है। मंडप का धरातल, गर्भगृह से लगभग 4 फीट ऊंचा है। शिव मंदिर के मंडप में पत्थर से बनें 16 पिल्लर(कॉलम) है। प्रत्येक पिल्लर में नाग उकेरे गए हैं।
किवदंती – गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग कभी नहीं डूबा।सुबह से शाम तक शिवलिंग पर हजारों गैलन जल चढ़ाया गया, लेकिन शिवलिंग को जल से डुबाने का प्रयास असफल रहा। हजारों गैलन पानी कहां गया किसी को पता नहीं चला। तब गांव वालों को यह लगा कि शिवजी को पानी से डुबाने का निर्णय एक अहंकार था।
सीता मंदिर- देवरबीजा
जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूरी पर साजा ब्लॉक के देवरबीजा में सीता देवी की मंदिर है। वनवास में राम-सीता-लक्ष्मण आए थे। वनवास के दौरान भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण ने तालाब के किनारे अपनी कुटिया बनाई थी और कुछ दिनों तक निवास किया था। इस प्रकार इस स्थान की प्राचीनता त्रेतायुग से जुड़ी है।
कैसे पहुंचे- धमधा, देवकर सहसपुर और देवरबीजा दुर्ग से बेमेतरा राज्य मार्ग पर स्थित है। इस वजह से टूरिज्म कॉरिडोर के रूप में विकसित करने में दिक्कत नहीं आएगी। धमधा, दुर्ग से 30 किलोमीटर की दूरी पर है।धमधा से देकर 10 किलोमीटर, देवकर से सहसपुर 7 किलोमीटर, देवकर से देवबीजा 17 किलोमीटर, देवरबीजा से बेमेतरा 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मार्ग पर सुबह 6 बजे से रात 9.30 बजे तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट है।

Home / Bhilai / Wold tourism day: देश का एकमात्र ऐतिहासिक धरोहर हमारे CG में …पढि़ए टूरिज्म कॉरिडोर की रिपोर्ट

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो