ज्ञान प्राप्ति का माध्यम है आगम स्वाध्याय: आचार्य महाश्रमण
अंतिम सूत्र वाचन के साथ ही ठाणं प्रवचनमाला का समापन
ज्ञान प्राप्ति का माध्यम है आगम स्वाध्याय: आचार्य महाश्रमण
भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण ने ठाणं प्रवचन के अंतिम अध्याय के अंतिम सूत्र पर धर्म देशना देते हुए बताया कि इस लोक में छह द्रव्य हैं। उनमें से एक पुद्गगलस्तिकाय एक ऐसा द्रव्य है, जो आंखों से देखा जा सकता है। अन्य पांच द्रव्य आंखों के विषय नहीं बनते हैं। पुद्गल में भी गुणात्मक अंतर होता है। हमारी ये दुनिया पुद्गलमय है। अन्य द्रव्यों की भी उपयोगिता है, पर पुद्गल की विशेष उपयोगिता है। ये हमारे जीवन से जुड़ा हुआ साक्षात स्पष्ट तत्व है। अंतिम सूत्र वाचन के साथ ही ठाणं प्रवचनमाला का समापन हुआ।
आचार्य ने ठाणं आगम के बारे में बताया कि लगभग चालीस वर्ष पूर्व आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा इसका व्यवस्थित रूप से संस्कृत छाया, टिप्पणी सहित संपादित ग्रंथ सामने आया। इसके दस अध्यायों में अनेक विषयों का प्रस्तुतिकरण समाहित है। बत्तीस आगमों में ये एक स्वत: प्रमाण वाला विशिष्ट अंग है। इस ग्रंथ का अध्येता, विद्यार्थी गहन अध्ययन करे, तो अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों एवं साधु-साध्वियों का अथक श्रम आगम संपादन कार्य में रहा है। वर्तमान में भी अनेक आगमों का कार्य गतिशील है। आगम एक अपेक्षा से व्याख्यान का आभूषण है। दिनचर्या में आगम स्वाध्याय का क्रम रहे, तो अनेक ज्ञान रत्नों को पाया जा सकता है। कार्यक्रम में जोधपुर के सुशील भंडारी ने जीवन के रंग जीवन के संग पुस्तक का विमोचन किया।
अन्याय करना गलत, अन्याय बर्दाश्त करना भी गलत
प्रवचन के बाद आचार्य के सानिध्य में भीलवाड़ा अभिभाषक संघ के अधिवक्ताओं ने मार्गदर्शन प्राप्त किया। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि दुनिया में न्याय अन्याय की बात आती है। अन्याय करना तो गलत है ही, अन्याय को बर्दाश्त करना भी गलत है। अन्याय के खिलाफ लड़ाई करना एक प्रकार से शौर्य की बात होती है। अधिवक्ता वर्ग अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाला वर्ग है। अधिवक्ता का अपने मुवक्किल के प्रति एक कर्तव्य भी होता है। अधिवक्ता यह ध्यान दें कि अपनी बौद्धिकता, तार्किक शक्ति का दुरुपयोग न करें। न्यायालय में बेईमानी, मिथ्या आरोपण करने से बचने की कोशिश रहनी चाहिए। यह संकल्प रहे तो न्याय में भी धार्मिकता रह सकेगी। आचार्य की प्रेरणा से अधिवक्ताओं ने नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। मुनि कुमारश्रमण ने भी विचार व्यक्त किया।