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भीलवाड़ा

भोले तेरे कितने नाम

भीलवाड़ा शहर के प्रसिद्ध हरणी महादेव मंदिर मेले से लेकर मांडलगढ़ क्षेत्र के तिलस्वां महादेव मंदिर तक मेलों में अपार जन समूह उमड़ा हुआ है। शहर के अधिकांश कॉलोनियों व प्रमुख मार्गो पर शिव मंदिर है। इनमें कई शिव मंदिर विभिन्न नामों से जाने व पहचाने जाते है और इनकी अलग-अलग मान्यता है। जिले में मांडलगढ़ क्षेत्र में स्थित तिलस्वां महादेव मंदिर की भी विशेष महत्ता है। bhilwara m Bhole Tere Kitne Naam

भीलवाड़ाFeb 21, 2020 / 12:55 pm

Narendra Kumar Verma

Famous Temple Of Lord Shiva Vankhandeshwar Mahadev mandir

चंबल के इस मंदिर में सालों से जल रही है अखंड ज्योति, देश में विख्यात है बाब की महिमा

भोले तेरे कितने नाम

भीलवाड़ा जिले में महाशिवरात्रि पर्व की धूम मची हुई है। भीलवाड़ा शहर के प्रसिद्ध हरणी महादेव मंदिर मेले से लेकर मांडलगढ़ क्षेत्र के तिलस्वां महादेव मंदिर तक मेलों में अपार जन समूह उमड़ा हुआ है। शहर के अधिकांश कॉलोनियों व प्रमुख मार्गो पर शिव मंदिर है। इनमें कई शिव मंदिर विभिन्न नामों से जाने व पहचाने जाते है और इनकी अलग-अलग मान्यता है। जिले में मांडलगढ़ क्षेत्र में स्थित तिलस्वां महादेव मंदिर की भी विशेष महत्ता है। यहां भी सात दिवसीय मेले के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु मन्नत लेकर पहुंचे है तो कई चर्मरोग से मुक्ति की उम्मीद में यहां पवित्र कुंड में डूबकी लगाते है। Bhole Tere Kitne Naam
भीलवाड़ामें स्थित शिवालयों के बारे में आप यूं जानिए bhilwara m shiv mandir

हरणी महादेव मंदिर
वस्त्रनगरी का धार्मिक स्थल ‘हरणी महादेव मंदिरÓ का इतिहास आठ सौ वर्ष पुराना है। ये मंदिर भीलवाड़ा शहर से महज चार किलोमीटर दूर मंगरोप मार्ग पर है। यहां महाशिवरात्रि पर्व पर शिव भक्त अनुष्ठानों के साथ ही हवन,यज्ञ एवं पूजा अर्चना व साधना करते है। महाशिवरात्रि पर्व पर यहां सुबह पांच बजे से श्रद्धालुओं की लम्बी कतार लगना शुरू हो जाती है। ५५ वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ, इसके बाद से लगातार मंदिर को कलात्मभव्यता प्रदान की जा रही है।
भीमेश्वर महादेव
पांच सौ साल पहले उदयपुर दरबार महाराणा भीम ने तेजाजी चौक में तालाब का निर्माण करवाया और वहां पाल पर एक छोटी सी छतरी के नीचे शिवलिंग की स्थापना की। स्थापना के बाद इनका नामकरण भीमेश्वर महादेव किया गया। आज यह मन्दिर हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। महाशिवरात्रि व नर्बदेश्वर जयंती और सावन मास पर इस मन्दिर में विशेष आयोजन होते है।
पीपलेश्वर महादेव मन्दिर
आजादी से पहले शहर के बीच सूचना केन्द्र के पीछे एक पीपल के पेड़ के नीचे यहां के निवासियों ने एक शिवलिंग स्थापित कर इसे पीपलेश्वर महादेव नाम दिया। पीपल के नीचे स्थापित इस शिवलिंग के चहुंओर चार दीवारी का निर्माण जन सहयोग से हुआ। १५ वर्ष पूर्व क्षेत्र के लोगों ने मन्दिर ट्रस्ट का गठन कर यहां मन्दिर निर्माण करवाया। वर्तमान में यहां शिव परिवार के साथ ही माताजी की प्रतिमा भी स्थापित है। वर्तमान में पण्डित महेश यहां पूजा अर्चना कर रहे है।
बड़लेश्वर महादेव
कोटा रोड स्थित एक बड़ के पेड़ नीचे २८ वर्ष पूर्व ६ मार्च १९८९ को कोली समाज के पंचो ने शिवलिंग की स्थापना की थी। तब से इस स्थान को बड़लेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। कोली समाज विकास ट्रस्ट में प्रथम अध्यक्ष सुंदरलाल बछापरिया सचिव भागचंद फतहपुरिया ,पंच रघुनाथ कसोडिया, कन्हैयालाल लोरवाडिय़ा, मानिया डांगाडा, कन्हैयालाल बछापरिया, चौथमल आमेरिया ने सन् 2015 में मकर संक्रान्तिं पर बड़लेश्वर महादेव मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का संकल्प लिया। समाज के भामाशाहों ने सहयोग करके 10 लाख लागत से मंदिर का निर्माण करवाया।
बालाजी मन्दिर शिवालय
आजाद चौक के पीछे स्थित बालाजी मार्केट बालाजी मन्दिर में ३६ वर्ष पहले पण्डित गोविन्द शर्मा की प्रेरणा से सीताराम मानसिंहका ने शिवलिंग की स्थापना कर प्राण प्रतिष्ठा करवाई। तब से लेकर आज तक मानसिंहका परिवार पीढीयों से यहां दर्शनार्थ आ रहा है। पण्डित गोविन्द शर्मा के स्वर्गवास के पश्चात उनके भ्राता पण्डित आशुतोष शर्मा शिव परिवार की नियमित सेवा पूजा कर रहे है। शिवालय पर सावन मास सहित अन्य अवसरों पर अनके आयोजन होते है।
हरिसिद्धेश्वर महादेव मंदिर
शहर की हरिशेवा धर्मशाला परिसर में स्थित यह मन्दिर १३ साल पहले बना। हरिशेवा धाम के महन्त महामण्डलेश्वर हंसराम उदासीन ने आकर्षक शिवलिंग की स्थापना कराकर सदगुरू बाबा हरिराम के नाम से इस मन्दिर का नाम नामकरण किया। मन्दिर में सिंधी सहित अन्य कई समाज के लोग नियमित रूप से दर्शनार्थ पहुंचते है। मन्दिर में विशेष पूजा अर्चना द्वारा काल सर्प दोष का निवारण भी किया जाता है। सावन मास में भी कई आयोजन होते है। जन्मदिवस सहित अन्य मांगलिक आयोजनों पर महंत हंसराम की प्रेरणा से श्रद्धालु अभिषेक भी करते है।
मंगलेश्वर महादेव
पुराने शहर के मंगला चौक में स्थित इस मन्दिर का नामांकरण अजमेर जिले के सरवाड़ में स्थित तोषनीवाल परिवार के मंगलेश्वर महादेव के नाम से रखा गया। करीब दो सो वर्ष पूर्व यहां केवल एक चबुतरे पर शिवलिंग था। ५१ वर्ष पूर्व स्थानीय केसरीमल-कल्याणमल तोषनीवाल परिवार ने यहां मन्दिर निर्माण कराकर शिव परिवार की प्राण प्रतिष्ठा करवाई और नामकरण किया। इसके बाद से ही यहां तोषनीवाल परिवार सहित अन्य कई श्रद्धालुओं द्वारा नियमित सेवा पूजा की जाती है। यहां श्रावण मास में पूरे महीने प्रतिदिन भोलनाथ का नव श्रृंगार किया जाता है साथ ही भजन कीर्तन व महाआरती के आयोजन किए जाते है।
नीलकंठ महादेव मंदिर
शास्त्री नगर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर की खाण्डल विप्र समाज के परिवारों से सहयोग राशि एकत्रित कर मंदिर निर्माण की नींव रखी गई। १5 मई 1986 (वैशाख शुक्ला षष्ठी सम्वत 2043) को मंदिर में शिव परिवार एवं हनुमानजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। रामनिवास भट्ट के अनुसार औंकारेश्वर से लाए गए इस शिवलिंग पर बीच में नीले रंग की धारी बनी होने से इसका नाम नीलकंठ महादेव रख दिया गया। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी महाशिवरात्रि के पर्व पर भोलेनाथ का अभिषेक, अनुष्ठान एवं सत्संग किया जा रहा है।
श्री शिव सांई मंदिर
आर के कॉलोनी में छोटी पुलिया के समीप श्री शिव सांई मंदिर है। ये मंदिर करीब २० वर्ष पुराना है। यहां सोमवार को भक्तों की भीड़ रहती है। सांई के साथ ही शिव की प्रतिमा स्थापित होने से यहां गुरुवार को भी श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। पुजारी सांई ओमप्रकाश पाराशर है। यहां महिला मण्डल की तरफ से सत्संग एवं भजन संध्या के कार्यक्रम होते है।
सिद्देश्वर महादेव मंदिर
रमेश चन्द्र व्यासनगर सेक्टर वन में ये सिद्देश्वर महादेव मंदिर स्थापित है, करीब तीस वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने जनसहयोग से कराया था। यहां रोजाना श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। सोमवार व श्रावण मास में तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है। क्षेत्र के मुकेश अग्रवाल चक्की वाले बताते है कि यहां महाशिवरात्रि पर्व पर अभिषेक, हवन व यज्ञ समेत विभिन्न कार्यक्रम होंगे।
जंगजीत महादेव मंदिर
सिंधुनगर में गल्र्स कालेज के निकट स्थित जंगजीत महादेव मंदिर का इतिहास वर्षो पुराना है। ये मंदिर पूर्व में नगर परिषद परिसर में ही स्थित था, इस बाद में मंहत धर्मदत्त पुरी ने यहां स्थापित किया। मंदिर में महंत धर्मदत्त पुरी ,शंकर पुरी व ईश्वर पुरी की समाधि भी है। मंदिर में विशाल बड वृक्ष की छत्र छाया भी है। यहां शिवालय होने के साथ ही अन्य देवी देवताआें की मूर्तियां भी है। यहां रोजाना भक्तों की भीड़ रहती है।
पातोला महादेव
उपनगर पुर मे उत्तर दिशा मे पुर के राजमार्ग से दो किलोमीटर दूर सिंहनुमा पहाडियों की आकृति से ओतप्रोत तालाब की पाल पर पतोला महादेव मंदिर स्थित है। यह स्थान कनपटटे नाथ संप्रदाय के साधु-संतों का है। उक्त स्थल की पूजा व्यवस्था हेतु तत्कालीन महाराणा मेवाड राज्य की ओर से माफ ी मे जमीन मिली हुई है। यहां मंदिर में एक चबूतरे पर भगवान महादेव विराजमान है। वर्तमान मे पहाडी की उत्तर दिशा मे भी तलहटी व तालाब के किनारे कुछ वर्षो पहले गुफ ा स्थान पर खुदाई के दौरान प्राचीन भगवान शिव की मूर्ति और चबूतरा निकला था। यहां सोमवार के साथ ही महाशिवरात्रि पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
अधर शिला महादेव
पुर में अधरशिला महादेव श्रद्धा के साथ ही रमणीय स्थल है। पुर से दो किलोमीटर दूर ढलान पर मंगरमच्छ की आकृति की चट्टान के रूप में मंदिर है। यहां गुप्त मौर्य काल की ओंकारेश्वर महादेव की प्रतिमा स्थित हैै। यहां गुफ ा के ऊपर कुंड को मोर कुंड के नाम से जाना जाता है। यहां तांत्या टोपे ठहरे थे और रात में ही महादेव जी की पूजा अर्चना करते थे। यहां पर महाशिवरात्रि पर सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
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