Rajasthan Pollution Control Board आरपीसीबी ने जिले के करीब ३०० ईंट भट्टा संचालकों को कहा कि वायु प्रदूषण नियंत्रण के तहत कंसेन्ट टू स्टेबलिस तथा कंसेन्ट टू ऑपरेट की अनुमति लेनी होगी। इसके लिए ऑनलाइन आवेदन करने होंगे। एेसा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश की पालना में किया जा रहा है। प्रदेश के उदयपुर, कोटा, जोधपुर, जयपुर तथा अलवर शहर को प्रथम चरण में नॉन एटेंटमेंट सिटी में माना।
तीन तरह के होते हैं भट्टे
चिमनी वाले ईंट भट्टे तीन तरह के होते है। स्माल श्रेणी में १५ हजार तक ईंट पकाई जाती है तथा चिमनी की ऊंचाई २२ मीटर होनी चाहिए। मीडियम में १५-३० हजार ईंट तथा २७ मीटर ऊंचाई में चिमनी तथा मध्यम दर्जे के ईंट भट्टे में ३० हजार या अधिक ईंटें पकाई जा रही हो व चिमनी की ऊंचाई कम से कम ३० मीटर होनी चाहिए। सभी ईंट भट्टे जिग जैग प्रणाली के होने चाहिए। इसके लिए सरकार ने पहले ३१ जुलाई २०१९ तक का समय दिया था, जिसे अब ३१ अक्टूबर तक कर दिया।
चिमनी वाले ईंट भट्टे तीन तरह के होते है। स्माल श्रेणी में १५ हजार तक ईंट पकाई जाती है तथा चिमनी की ऊंचाई २२ मीटर होनी चाहिए। मीडियम में १५-३० हजार ईंट तथा २७ मीटर ऊंचाई में चिमनी तथा मध्यम दर्जे के ईंट भट्टे में ३० हजार या अधिक ईंटें पकाई जा रही हो व चिमनी की ऊंचाई कम से कम ३० मीटर होनी चाहिए। सभी ईंट भट्टे जिग जैग प्रणाली के होने चाहिए। इसके लिए सरकार ने पहले ३१ जुलाई २०१९ तक का समय दिया था, जिसे अब ३१ अक्टूबर तक कर दिया।
यह होती है जिगजैग तकनीक
ईंट पकाने के लिए भट्टों में आमतौर पर छल्लियों में सीधी हवा दी जाती है। जिगजैग में टेढ़ी-मेढ़ी लाइन बना हवा दी जाती है। इससे ईंधन कम लगता है। कोयले का प्रयोग होता है। इससे ईंटों की गुणवत्ता अच्छी रहती है। साधारण विधि का इस्तेमाल करने पर भटे में करीब 50 प्रतिशत ईंट अच्छी निकलती हैं। इस तकनीक में 90 प्रतिशत ईंटें अच्छी होती हैं। कोयले की कम खपत होने से प्रदूषण भी कम होगा। बुल्स ट्रेंच किल्न (एफसीबीटीके) प्रौद्योगिकी पर चल रही है। जिगजैग भट्टियां एफसीबीटीके के मुकाबले कोयले की 25 प्रतिशत कम खपत करती हैं।
ईंट पकाने के लिए भट्टों में आमतौर पर छल्लियों में सीधी हवा दी जाती है। जिगजैग में टेढ़ी-मेढ़ी लाइन बना हवा दी जाती है। इससे ईंधन कम लगता है। कोयले का प्रयोग होता है। इससे ईंटों की गुणवत्ता अच्छी रहती है। साधारण विधि का इस्तेमाल करने पर भटे में करीब 50 प्रतिशत ईंट अच्छी निकलती हैं। इस तकनीक में 90 प्रतिशत ईंटें अच्छी होती हैं। कोयले की कम खपत होने से प्रदूषण भी कम होगा। बुल्स ट्रेंच किल्न (एफसीबीटीके) प्रौद्योगिकी पर चल रही है। जिगजैग भट्टियां एफसीबीटीके के मुकाबले कोयले की 25 प्रतिशत कम खपत करती हैं।
१ से होगी कार्रवाई
जिले में संचालित ३०० से अधिक ईंट भट्टा संचालकों को प्रदूषण नियंत्रण मंडल से अनुमति लेनी होगी। ३१ अक्टूबर से पहले तक ऑनलाइन पंजीयन कराना होगा। १ नवम्बर के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
महावीर मेहता, क्षेत्रीय अधिकारी आरपीसीबी
जिले में संचालित ३०० से अधिक ईंट भट्टा संचालकों को प्रदूषण नियंत्रण मंडल से अनुमति लेनी होगी। ३१ अक्टूबर से पहले तक ऑनलाइन पंजीयन कराना होगा। १ नवम्बर के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
महावीर मेहता, क्षेत्रीय अधिकारी आरपीसीबी