जी हां, डाली कहार मूक-बधिर होने के बाद भी गांव के बच्चों से लेकर महिलाओं को पढ़ाती हैं। वह बोल नहीं पाती है, लेकिन इशारों से उन्हें अध्ययन करवाते देखें तो अच्छे से अच्छा शिक्षत हार मान ले। डाली ने ने साक्षरता केंद्र आखरधाम से पढऩे की शुरुआत की। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से वह खुद नौवीं कक्षा से आगे पढ़ाई नहीं कर पाई। इसका डाली को आज भी पछतावा है।
मां सहित अन्य सदस्य भी मूक-बधिर डाली खुद ही नहीं, बल्कि उसके परिवार के अन्य सदस्य भी मूक-बधिर हैं। डाली को जब भी समय मिलता है, घर परिवार व मोहल्ले की महिलाओं को आखरज्ञान सहित बच्चों को स्कूल का गृहकार्य करवाने में सहयोग करने में जुट जाती है।
डाली की मां, भाई, बहन भी बोलने व सुनने में असक्षम हैं। परिवार के मुखिया देवीलाल ने बताया कि पत्नी जन्म से ही मूक-बधिर है। किस्मत का अभिशाप ही है कि उसके बच्चों में भी यही बीमारी है। वे भी बोल या सुन नहीं पाते हैं।
लोगों के लिए प्रेरणा है डाली ब्लॉक समन्वयक साक्षरता विभाग के विनोदकुमार कोली ने बताया कि डाली कहार क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है। मूक-बधिर होने के बाद भी वह जिस प्रकार शिक्षा की अलख जगा रही है यह ग्रामीण परिवेश में अहम बात है। डाली ने वर्ष 2009 से आखरधाम से पढऩे-लिखने की शुरुआत की थी। डाली चाहती है कि गांव के बच्चे पढ—लिखकर नाम करे।