MGH अस्थिरोग विभाग के सहायक प्राचार्य डॉ. गौरव ने बताया, रघुनाथ को दर्द से राहत मिल चुकी है। वह लम्बे समय बाद सामान्य रूप से चल-फिर सकेगा। करीब ७५ हजार रुपए के आयातित बॉल कूल्हों में डाले गए। निजी अस्पताल में करीब तीन लाख रुपए खर्चा होता। ऑपरेशन टीम में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य राजन नन्दा व अन्य डाक्टर शामिल थे।
फैक्ट्री श्रमिक रघुनाथ के दोनों कूल्हों में एवीएन बीमारी थी। इसमें कूल्हे की दोनों बॉल गल गई। कूल्हे छोटे पड़ गए, जो दवा से ठीक नहीं हो सकते थे। उपचार केवल कूल्हे की बॉल बदलना ही था। एक कूल्हे में एवीएन बहुत ज्यादा था। नस में खून रुकने से कूल्हे की हड्डी सिकुडऩे लगी थी। कूल्हे ने काम करना बंद कर दिया। रघुनाथ ठीक से नहीं चल पाता था। हमेशा असहनीय दर्द रहता था। बैठना-चलना तक मुश्किल होने लगा था।