उदयपुर में 17 जून 1920 को सिविल इंजीनियर सरदारमल ओरडिया के घर जन्मे रणजीत सिंह मैट्रिक पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। मेवाड़ राज्य प्रजामंडल की स्थापना के साथ ही राजनीतिक आन्दोलनों से जुड़ गए। भले ही वे खुद जेल नहीं गए, लेकिन भरी गर्मी में साइकिल से कोसो दूर जेलों में बंद स्वाधीनता सैनानियों को चिठ्ठियां पहुंचाने जाते थे। लोक नायक माणिक्य लाल वर्मा, स्थानकवासी आचार्य जवाहरमल महाराज व गुरु मास्टर बलवन्त सिंह मेहता से उन्होंने प्रेरणा ली। वे पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडि़या, हरदेव जोशी, पूर्व सांसद रमेश चंद्र व्यास के नजदीकी रहे। लोगों ने उन्हें खूब कहा कि आपने इतना किया, स्वतंत्रता सैनानी के रूप में पेंशन आदि तो लो, उनका जवाब था कि ये सब कुछ पाने के लिए नहीं किया था।
कई रचनात्मक कार्य किए वे उन्नीस साल की उम्र में भीलवाड़ा आ गए। यहां स्वंयसेवी संस्थाओं के माध्यम से रचनात्मक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हुए कई नवाचार किए। भीलवाड़ा में बरसों तक कांग्रेस में विभिन्न पदों पर रहे। उन्होंने हमेशा खादी पहनने का संकल्प करते हुए वर्ष 1940 में शहर में गोल प्याऊ के निकट प्रथम खादी भंडार की स्थापना की। यहां पहला मेडिकल स्टोर भी शुरू किया। भीलवाड़ा में शिक्षा के प्रसार के लिए नवयुग विद्यामंदिर व सेवासदन की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। यहां उन्होंने बिजौरा नींबू की चटनी का उत्पादन शुरू किया।
पत्रिका को नई ऊंचाइयां दी राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूरचंद्र कुलिश से उनकी जयपुर में मुलाकात हुई। इसके बाद कुलिश जी से उनके मैत्रीपूर्ण सम्बंध बन गए। कुलिश जी की प्रेरणा से ओरडिया ने भीलवाड़ा में पत्रिका की शुरूआत की। वे यहां के संवाददाता भी रहे। शुरूआत में यहां जयपुर से ट्रेन से सुबह पत्रिका आती थी। फिर उदयपुर से पत्रिका छपकर आने लगी। वर्ष 2000 में भीलवाड़ा से प्रकाशन शुरू होने के बाद उन्होंने पत्रिका को यहां नई ऊंचाइयां प्रदान की। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डा. गुलाब कोठारी से उनके आज भी आत्मीय सम्बन्ध है।
सुबह चार बजे से दिनचर्या शुरू ओरडिया का शुरू से ही ब्रह्म मुर्हुत में सुबह चार बजे उठ जाना दिनचर्या का हिस्सा रहा। वे नियमित तीन से चार किलोमीटर की सैर, कुछ देर योगा और व्यायाम करते। युवाकाल में उन्होंने पहलवानी और तैराकी भी की। उदयपुर में पिछोला झील को वे रोजाना पार करते थे। कोरोना काल में उन्होंने घर में ही घूमना फिरना जारी रखा।
खानपान पर विशेष ध्यान
वे नियमित रूप से फल खाते है या उसका रस पीते है। रोजाना सुबह-शाम प्रोटीन के चार बिस्किट के अलावा नियमित गुड़ का सेवन, दूध के साथ च्यवनप्राश, शहद, मुनक्का और केले का शेक, छाछ, शिकन्जी उनके भोजन में शामिल है। उन्होंने कभी भी तली हुई चीजों, कचौरी, समोसे का सेवन नहीं किया।
मिलती है खुशी
रणजीत सिंंह का कहना है कि सादगी से जीवन में खुशी मिलती है। दूसरे को देखकर ईष्र्या करना स्वास्थ्य के लिए नुकसान दायक होता है। जीओ और जीने दो का सिद्धांंत रखते हुए जरुरतमंद की मदद करने वालों का ईश्वर भी ध्यान रखता है। उम्र तो हर दिन बढऩ़ी है, इसलिए हर रोज को आनंद से जीना आना चाहिए।