मां शब्द का भाव कई मायने लिए हुए है, कहने को तो यह शब्द मात्र है, लेकिन इनमें मातृत्व की गहराई बचपन से लेकर जिन्दगी के हर मोड से जुड़ी होती है, कई बच्चे ऐसे अभागे भी होते है, जो कि दुनियां में कदम रखते ही किसी की गलती के बोझे से दब जाते है और मां के सीने से लगने के बजाए पराएं हो जाते है। ममता का आंचल बिछाने के बजाए उनका बचपन छीन लिया जाता है और जमाने के लिए वो लावारिस बन जाते है। लेकिन यह सच भी है कि जिनका कोई नहीं होता उनका खुदा होता है, ऐसे अभागे बच्चों के लिए बाल अधिकारिता विभाग एवं बाल कल्याण समिति भी किसी खुदा से कम नहीं है। दोनों ही एजेंसी जन्म होते ही त्यागें गए बच्चों को सरकारी संरक्षण मिलें और जमाने की खुशी उनके कदम चूमे, इसके लिए प्रयासरत है।
इन्हें मिली हर कदम मां गत एक साल में ऐसे कुछ मामले सामने आए जब लोगों के दिल पसीज गए, निष्ठुर मां ने अपने कलेजे के टुकड़ों को सीने से लगा कर पालने की बजाए उन्हें कचरे के ढेर में फैंक दिया या फिर एमसीएच के पालना में छोड़ दिया। इनमें से कई घंटों क्या कई दिनों तक जिन्दगी और मौत से भी लड़ते रहे। कुछ नवजात ये जंग हार गए और काल के ग्रास बन गए, लेकिन इनमेंं कई नवजात ऐसे थे, जिनके लिए महात्मा गांधी चिकित्सालय का शिशु वार्ड पालना बना और यहां का नर्सिग स्टाफ ममतातयी मां, यहां इतना दुलार मिला की ये सभी बच्चे स्वस्थ्य है और इन्हें अपनी पहचान राघव, रविशा, फाल्गुनी , शैलेश, शरद एवं धोनी के नाम से मिली है। इसके बाद शिशु गृह की जीवनदायनी (आयाओं) ने जिम्मेदारी संभाली और उनकी उंगली पकड़ कर अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया
यूं छोड गए इन्हें लावारिस
महात्मा गांधी चिकित्सालय परिसर स्थित मातृ एवं शिशु चिकित्सालय के पालना घर में रविशा को १९ जनवरी २०२० को कोई अज्ञात छोड़ गया था, इसी पालना में फाल्गुनी को भी ९ मार्च २०२० को कोई अज्ञात छोड़ गया था, तिलस्वां के केरखेड़ा में ७ फरवरी २०२० को राघव झाडियों में लावारिस मिला था। इसी प्रकार ३१ अक्टूबर २०२० को पालना में शरद पूर्णिमा पर शरद मिला, २ नवम्बर को इसी पालना में शैलेश मिला, २६ दिसम्बर २०२० को पालना में आई नवजात बालिका का नाम धोनी मिला। इसी प्रकार कोटड़ी के सोडियास, करेड़ा व मांडलगढ़ क्षेत्र में भी नवजात लावारिस हालात में मिलें। इनमें दो बच्चों के प्रति फिर से मां की ममता जागने से परिजनों ने अपना अधिकार जताया है। बच्चों को बाल कल्याण समिति ने उस वक्त संभाला और नाम दिया। अब तीनों बच्चें देश के महानगरों में सभ्रांत परिवारों के चिराग है।
आसान नहीं बच्चों को गोद लेना गोद देने की तमाम प्रक्रिया केन्द्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी नई दिल्ली के जरिए होती है , गोद देने से पहले जिला बाल संरक्षण इकाई सभी प्रकार की विधिक पालना पूरी करती है। शिशु गृह में पल रहे बच्चों की गोद देने की भी कड़ी शर्ते है। दत्तक ग्रहण एजेंसी इसी पालना कड़ाई से कराती है, ऑन लाइन आवेदन के आधार पर इच्छुक दम्पती को बच्चे गोद दिए जाते है। नियमानुसार दम्पती की कुल आयु (दोनों की उम्र का योग ) ११० वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए, उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति सुदृढ़ होनी चाहिए, शारीरिक व मानसिक स्थिति भी अच्छी होनी चाहिए। बच्चे को दत्तक पुत्र-पुत्री घोषित किए जाने के बाद भी जिला बाल संरक्षण इकाई व एजेंसी पांच साल तक बच्चे के पालन पोषण व परिवार के व्यवहार पर नजर रखती है।
२९ बच्चों को मिल गया परिवार सहायक निदेशक बाल अधिकारिता विभाग के अधीन वर्ष २०१२ में पालड़ी में शिशु गृह की स्थापना हुई थी, यहां अभी तक ३४ बच्चे आ चुके है। इनमें २९ बच्चों को केन्द्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी नई दिल्ली के जरिए माता पिता मिल चुके है। इनमें १० बालक व १९ बालिकाएं है। जबकि तीन बच्चों को भी गोद देने की प्रक्रिया हो चुकी है, जबकि दो अन्य यहां शेष रहेंगे।
ये बच्चे अब किसी घर के है चिराग बच्चों की जरुरत किसी को नहीं है तो वो जंगल या खुले में नहीं फेंके, पालना गृह में छोड़ जाए, ताकि वो सुरक्षित रह सकें, ऐसे बच्चे अब अभागे नहीं रहे है, इन्हें महानगरों में सभ्रांत परिवार मिलें है, यहां ये बच्चें परिवारों के आंख के नूर बने हुए है।
डॉ. राजेश छापरवाल, सदस्य बाल कल्याण समिति, भीलवाड़ा
अब शैलेश, शरद एवं धोनी की बारी पांच बच्चे अभी जिला बाल संरक्षण इकाई के अधीन संचालित शिशु गृह पालड़ी में पल रहे है। इनमें शैलेश, शरद एवं धोनी को गोद देने की प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है और इन्हें इसी माह संसारिक माता-पिता मिल जाएंगे। केन्द्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी के जरिए बच्चों को गोद देने के लिए २०१५ से ऑनलाइन प्रक्रिया अपनाई जा रही है। बाल कल्याण समिति ने बच्चों को नाम दिए है। परिवार न्यायालय का भी इसमें अहम सहयोग रहता है।
-धर्मराज प्रतिहार, सहायक निदेशक, बाल अधिकारिता विभाग