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भीलवाड़ा

भीलवाड़ा की है यह अंदर की बात

This is the inside thing of Bhilwara साहेब मंत्री बन गए तो उन्होने ने भी पाला बदल लिया…..पहले विरोध के सुर अलाप रहे थे, उनमें से अधिकांश ने अब पाळा ही बदल लिया है, कई तो बधाई देने जयपुर तक पहुंच गए है, जयकार कर रहे है। लेकिन मंत्री जी के खास कहते है कि हमें, सब पता है लेकिन फिलहाल चुप है। क्यूंकि वक्त हमेशा करवट लेता है।
 

भीलवाड़ाNov 22, 2021 / 12:19 pm

Narendra Kumar Verma

This is the inside thing of Bhilwara

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भीलवाड़ा की है यह अंदर की बात


साहेब मंत्री बन गए तो उन्होने ने भी पाला बदल लिया

तय था और हुआ भी वही, हम भी यह संकेत दे चुके थे की भीलवाड़ा को अब तोहफे का इंतजार है। एक दशक बाद जिले को मंत्री मण्डल में प्रतिनिधित्व मिला है तो माना जा सकता है कि जिले के सर्वांगीण विकास की राह खुलेगी और सरकार में जिले की पकड़ मजबूत होगी। चर्चा है कि जो पहले विरोध के सुर अलाप रहे थे, उनमें से अधिकांश ने अब पाळा ही बदल लिया है, कई तो बधाई देने जयपुर तक पहुंच गए है, जयकार कर रहे है। लेकिन मंत्री जी के खास कहते है कि हमें, सब पता है लेकिन फिलहाल चुप है। क्यूंकि वक्त हमेशा करवट लेता है। This is the inside thing of Bhilwara
खाकी जी के मोबाइल को खास की ही पहचान

जनता में विश्वास एवं अपराधियों में भय यह पुलिस का अपना फार्मुला और स्लोगन है, लेकिन हालात ऐसे पुलिस थानों में नजर नहीं आते है। आला अधिकारियों के तमाम दावों के बावजूद पुलिस की कथनी व करनी में ही अंतर नजर आता है। आमजन की पीड़ा है कि पुलिस थानों में शिकायत नहीं सुनी जाती है। रपट लिखवाने के लिए आज भी कागज की रिम परिवादी से ही मंगाई जा रही है, जिले के अधिकांश थाना प्रभारियों के मोबाइल उन्ही कॉल को पहचानते जो कि खास होते है, अधिकांश पुलिस थानों के लैंड लाइन टेलीफोन नम्बर अब सीवीजी हो गए, इसकी जानकारी आम जनता तक पहुंचाई ही नहीं गई। चर्चा है कि पुलिस थानों में राजनीतिक संरक्षण के बूते जमे कई पुलिस कर्मी अपने अधिकारियों तक की परवाह नहीं करते है। नए टाईगर ने बदलाव की दशा में कड़े निर्णय नहीं लिए तो हालात जस के तस ही रहने है।
रजिस्ट्री फिसली, रौनक नदारद

रजिस्ट्री विभाग कुवाड़ा रोड स्थित पंजीयन भवन में पूर्ण रूप से क्या शिफ्ट हुआ की कलक्ट्रेट ही सूना हो गया है। रजिस्ट्री कराने वालों की रैलम पेलम कलक्ट्रेट से छंट गई, कईयों के रोजगार पर भी बन आई है। केंटीन व साईकिल स्टैंड संचालकों की कमाई भी अब नाममात्र की रह गई है। चर्चा है कि सब रजिस्ट्रार कार्यालय की भांति कलक्ट्रेट में पराए भवनों में जमे विभागों को भी उनके मूल ठिकानों पर भेजा जाए तो कलक्ट्रेट के हालात और सुधर सकते है।
साहेब का नहीं ठौर-ठिकाना

प्रशासन शहरों व गांवों के संग अभियानों की प्रगति किसे से छिपी नहीं है, जिन्हें मेहनत करना है, वही अधिकारी व कर्मचारी कौलूह के बैल की तरह काम कर रहे है और घंटों शिविर में उलझे हुए है। चर्चा है कि सरकारी महकमों के हाल यह है कि कुर्सियों पर अधिकारी व कर्मचारी मिलते ही नहीं है, पूछ जाने पर मातहत कर्मियों का एक ही जवाब रहता है कि साहेब तो शिविर में है, लेकिन कई ऐसे भी है जो शिविर के बहाने घर या फिर अपनी निजी दुकान में ही नजर आते है।

आला के नहीं चल रहे दांव

नगर विकास न्यास में बिगड़े ढर्र को सुधारने के लिए आला अधिकारी अपने प्रयास में कोई कमी नहीं छोड़े है, बड़े कदम भी बदलाव के लिए उठाए गए, लेकिन नतीजे ढाक के तीन पांत ही साबित हुए । चर्चा है कि जिन अभियंताओं की पेराफेरी के जोन वापस लिए गए थे, उनके राजनीतिक दबाव भारी पड़े, वापस हाथ से निकली पेराफेरी उन्हें मिल गई, इतना ही नहीं हड़ताल से लौटे अभियंता भी अतिरिक्त प्रभार का अपना हक मांग रहे हैं। डांवाडोल अधिकारी व बाबू भी चूक करने लगे है, हाल ही इंटरनेट बिल का भुगतान करना ही भूल गए, लेकिन टेलीकॉम एजेंसी ने गलती नहीं की और तुरंत कनेक्शन काट दिया।
– नरेन्द्र वर्मा

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