भीलवाड़ा व शाहपुरा जिले में मत्स्य पालन खतरे में है, लेकिन मत्स्य विभाग राजस्व कमाई के मामले में अन्य किसी जिले से पीछे भी नहीं है। मत्स्य पालन के लिए बांधों व तालाबों के ठेके की लागत प्रति साल पांच से लेकर पन्द्रह फीसदी तक बढ़ ही रही है।
450 बांध व तालाबों में मत्स्य पालन
यह ठेका राशि विभाग वसूलने में किसी प्रकार की कोई कसर भी नहीं छोड़े है। जिले में कुल 450 बांध व तालाबों में मत्स्य पालन हो रहा है, इनमें ए व बी श्रेणी के पचास बड़े बांध व तालाब का राजस्व मत्स्य विभाग के खाते में आ रहा है, जबकि सी व डी के करीब तीन सौ बांध, तालाब से जिला परिषद कमाई ले रहा है।
नहीं रूक रहा पानी का ठहराव
जिले में वर्ष 23-24 में बारिश का दौर सामान्य स्तर का ही रहा, ऐसे में अ धिकांश बांधों व तालाबों में पानी की आवक हुई, लेकिन पानी का ठहराव नहीं रह सका। कुछ में ठहराव रहा तो यहां सिंचाई के लिए नहरें खोल दी गई। इससे बांधों व प्रमुख तालाबों का घटा जलस्तर मत्स्य पालन के लिए खतरे की घंटी बना हुआ है। वहीं बांधों से जुड़ी पेयजल व्यवस्था के भी डांवाडोल होने की संभावना बढ़ गई है।
कई बांध सूख गए
जिले में आसींंद का दांतड़ा बांध सूख चुका है, बारला पोलिया बांध व लड़की बांध में पानी लगातार कम हो रहा है। अरवड़ बांध फिर सूख गया है। जबकि भीलवाड़ा की मानसरोवर झील में पानी है, लेकिन यहां का जल मत्स्य संपदा के अनुकूल नहीं रहा। ऐसे में पांचों के मत्स्य ठेके हो ही नहीं सके।
बांधों का जलस्तर घटा
जिले में अभी कोठारी 96, मेजा बांध 55, गोवटा बांध 23 लाख व जैतपुरा बांध 29 लाख की कमाई दे रहा है। सभी बांधों का जलस्तर लगातार घट रहा है। मई-जून में तो अ धिकांश में पानी सूख जाएगा।
मत्स्य संपदा पर संकट
मत्स्य पालक इकबाल खान बताते है कि मेजा बांध का जलस्तर मानसून के दौरान 17 फीट था, लेकिन नहरें छोड़ने से पानी 9.7 फीट ही रह गया है। यहां का जलस्तर कम होने से पेयजल आपूर्ति के साथ ही मत्स्य संपदा पर संकट बढ़ ही जाएगा।
पांच बांधों के ठेके अभी तक नहीं
मत्स्य विभाग के संयुक्त निदेशक अनिल जोशी का कहना है कि मानसून के सुस्त रहने एवं बांधों का पानी नहरों से छोड़ने से बांधों व तालाबों में पानी की आवक कम है। मौजूदा जलस्तर भी कम हो रहा है, इससे मत्स्य पालकों की चिंता बढ़ी है। जिले के पांच बांधों के ठेके अभी तक नहीं हुए है।