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02. मन की पीड़ा
पुर की कांता पलोड़ ने कहा, ४० सालों से मकान में हैं। अब हर पट्टी गिरने वाली है। डर के मारे खाली कर दिया। रोशनलाल महात्मा ने कहा, प्रशासन ने न तो दरारों का कारण पता लगाया और न मुआवजा दिया। बस खानापूर्ति कर रहा है। पुर संघर्ष समिति के महासचिव योगेश सोनी का आरोप है कि दरारें जिंदल सॉ लिमिटेड की ब्लास्टिंग से आ रही है। बस एजेंसियां उन्हें बचा रही है। सोहनलाल सिंघवी ने कहा, दरारें ४० नहीं ४०० मकानों में हैं। शांतीदेवी धोबी ने कहा, खेत व घर बर्बाद हो गए पर कोई नहीं सुन रहा है। रिजवान मोहम्मद ने बताया कि हमने घरों के बाहर बैनर लगाए है कि कृपया हमारे घर कोई नहीं आए क्योंकि घर कभी भी गिर सकता है। भगवती पलोड़ ने बताया कि बल्लियों के भरोसे मकान टिका है। अब एक-एक पाई जुटाकर मकान बनाया अब इसे खाली क्यों करें।
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03. असफल प्रयास
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04. लापरवाही
प्रशासन अब भी पुर मामले में ढिलाई बरत रहा है। वहां की पाइपलाइन इतनी पुरानी है कि पानी बह रहा है। इसे बदलवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। नालियों के पानी की सही निकासी नहीं है। मौका देखकर लगता है अकेले ब्लास्टिंग जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए जमीन की वास्तविकता का पता लगना जरूरी है। नालियों का पानी, पोली जमीन, यहां की मिट्टी की जांच होना जरूरी है परंतु कुछ नहीं हुआ है।
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05. अब उम्मीदें
पुर में ४० मकानों को खाली कराने से काम नहीं चलेगा। इसका पूरा सर्वे करना होगा। प्रशासन को इसे बड़े स्तर पर अभियान के रूप में लेना पड़ेगा क्योंकि मामला भयावह है। लोगों की जिंदगी से जुड़ा मामला है। पूरी जिंदगी कर जो मकान बनाए उन्हें तीन दिन में खाली करना मुश्किल है। अब सबको किराए मकान मिलना मुश्किल है। एेसे में प्रशासन ही पहले इनकी कोई ठोस व्यवस्था करेगा तो ही समस्या का हल हो पाएगा। बाकी पहलुओं पर जांच करना जरूरी है।