गुड़-बेसन, गोमूत्र और गोबर से 100 गांव के किसान करेंगे प्राकृतिक खेती
पहले चरण में प्रत्येक गांव में 5-5 किसानो का किया चयन
गुड़-बेसन, गोमूत्र और गोबर से 100 गांव के किसान करेंगे प्राकृतिक खेती
भिण्ड. प्राकृतिक खेती के दायरे को बढ़ाने के लिए पंचायतों में एक मॉडल तैयार करने का लक्ष्य कृषि विभाग ने बनाया है। जीरो बजट की इस खेती को परंपरागत बनाने के लिए जिले के 100 गांव में पांच-पांच किसानों का चयन किया जाएगा। प्रत्येक किसान को प्रशिक्षण देकर एक-एक एकड़ में प्राकृतिक तरीके से फसलें उगाई जाएंगी। पिछले एक साल में 300 कृषकों ने प्राकृतिक पद्धति को अपनाकर मृदा को अपशिष्ट से मुक्त किया है।
एक गाय से होगी 30 एकड़ खेती
एक गाय से किसान 30 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती कर सकते हैं। कृषि विभाग के उप संचालक आरएस शर्मा ने बताया देशी गाय के गोबर, गोमूत्र में अधिक पोषक तत्व होते हैं जो मृदा की उपजाऊ क्षमता को विकसित करते हैं। वर्ष 2024 तक जिले के 500 एकड़ में प्राकृतिक खेती करने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए आत्मा विभाग द्वारा किसानों को नियमित प्रशिक्षण देकर खेती के तरीके बताए जा रहे हैं। जो किसान पहले से इस खेती को कर रहे हैं, वे चार गुना तक बिना लागत के लाभ कमा रहे हैं।
कृषि विभाग द्वारा केंद्र सरकार की पहल पर यूरिया, डीएपी जैसे केमिकलयुक्त खाद की जगह जैविक व प्राकृतिक खेती को बढ़ाया दिया जा रहा है। किसानों को इस खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों और आत्मा के द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अधिकारी खेतों पर पहुंचकर निरीक्षण कर रहे हैं। किसान की खेती में लागत कम करके सवस्थ धरा और स्वस्थ मानव के उद्देश्य को पूरा करने की अवधारणा कृषि विभाग कर रहा है।
ऐसे करें प्राकृतिक खेती
देशी गाय के तरल खाद के प्रयोग से प्राकृतिक खेती की जाती है। खाद बनाने के लिए 6 से 8 लीटर गोमूत्र, 7 से 8 किलो गोबर, आधा किलो गुड़ और 250 ग्राम बेसन के साथ एक किलो मिट्टी का ड्रम में घोल तैयार करते हैं। तीन से चार दिन के लिए इस घोल को ढककर रख देते हैं, जिसके बाद छानकर तरल खाद के रूप में फसल को दिया जाता है।
सिरसोंद में 20 एकड़ में शुरू की खेती
गोहद के सिरसोदा गांव के किसान रामगोपाल गुर्जर 20 एकड़ में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। खेतों में उन्होंने इस वर्ष चार बेराइटी के आलू, जिसमें चिपसोना वन, पुखराज, कुफरी पुखराज लगाए हैं। इसके अलावा टमाटर, बैगन, चना, अरहर की फसल लहलहा रही है। गोहद में प्राकृतिक आलू 40 रुपए तक बेचा जा रहा है
प्राकृतिक खेती के फायदे
-मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।
-ङ्क्षसचाई का अंतराल बढ़ जाता है।
-रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होती है।
-फसल की लागत में कमी आती है।
-फसलों की उत्पादकता बढ़ जाती है। ।
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