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भिंड

डेढ़ करोड़ से अधिक में बनी पांच लैब शुरू तक नहीं हो पाईं, किसान परेशान

मनुष्य की तरह कृषि भूमि का स्वास्थ्य परीक्षण भी जरूरी है। जांच के आधार पर आने वाली रिपोर्ट के अनुसार उसमें पोषक तत्वों की पूर्ति कर किसान समुचित उत्पादन प्राप्त करते हैं, लेकिन डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक की लागत से पांच विकासखंड मुख्यालय पर बनीं लैब जिले भर में बंद हैं। इससे किसानों को मृदा परीक्षण सुविधा का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।

भिंडMar 14, 2023 / 09:25 pm

Ravindra Kushwah

मृदा परीक्षण प्रयोगशाला-भिण्ड

जिला मुख्यालय की लैब

भिण्ड. पांच साल पहले बनकर तैयार यह लैब चालू हो जाएं तो किसान ब्लॉक स्तर पर ज्यादा नमूने परीक्षण करवाकर उसके अनुसार उपचार लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जिला मुख्यालय पर जांच का पूरा जिम्मा होने से किसान कम आ पाते हैं। जिला मुख्यालय पर इकलौती लैब चालू होने से यहां नमने जांच का लक्ष्य भी कम रहता है। हालांकि यहां नमूनों की जांच का लक्ष्य से ज्यादा हो रही है, लेकिन ब्लॉक स्तर पर जांच नहीं हो पा रही है। इससे किसान परेशान होते हैं। जिला मुख्यालय आलमपुर, दबोह, लहार, गोहद, मेहागंव व अटेर के किसान नहीं आ पाते। जिला मुख्यालय पर वर्ष 2022-23 में एक हजार 765 नमूनों की जांच का लक्ष्य था। नमूने प्राप्त हुए दो हजार 32 और सभी का परीक्षण किया गया। हालांकि स्वास्थ्य प्रमाण पत्र एक हजार 872 को ही वितरित किए जा सके। वहीं 2019-20 में चार हजार 792 नमूनों के लक्ष्य के विरुद्ध चार हजार 810 प्राप्त हुए और सभी का परीक्षण कर रिपोर्ट दी गई। 2021-22 में चार हजार 233 के लक्ष्य के विरुद्ध चार हजार 502 नमूने आए और सभी का परीक्षण किया गया।
जिले की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी
कृषि अधिकारियों का मानना है कि मृदा परीक्षण ब्लॉक स्तर पर नहीं हो पाने से वास्तविक स्थिति सामने नहीं आ पाती है। जिला मुख्यालय पर जो नमूने आ रहे हैं, उनकी जांच में नाइट्रोजन की कमी दिख रही है। हालांकि इसकी पूर्ति के लिए यूरिया व अन्य रासायनिक खाद हैं। लेकिन यदि किसान कंपोस्ट खाद या जैविक खाद का उपयोग करें तो इससे मिट्टी का स्वास्थ्य लंबे समय तक बरकरार रह सकता है।
जिले में 3.5 लाख से ज्यादा किसान परिवार
जिले में साढ़े तीन लाख से अधिक किसान परिवार हैं। किसानों की संख्या तो 10 लाख से ज्यादा है। लेकिन उसके अनुपात में मृदा परीक्षण का काम बेहद कम हो पाता है। किसानों को इसके बारे में विस्तार से बताया भी नहीं जाता है। जबकि किसान चाहते हैं कि उनकी मिट्टी की जांच हो जाए और अनुशंसा के आधार पर खाद, बीज एवं फसल चक्र अपनाकर ज्यादा लाभ कमाएं।
स्टाफ के अभाव में चालू नहीं हो पा रहीं लैब
जिले में जिला मुख्यालय को छोडक़र अटेर, मेहगांव, गोहद, लहार एवं रौन में तहसील मुख्यालयों पर आधुनिक मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। एक प्रयोगशाला के भवन निर्माण और उपकरण की व्यवस्था में 35 लाख रुपए से अधिक का खर्च किया गया है। लेकिन करीब पांच साल बाद भी किसानों को इनका लाभ नहीं मिल पाया है। अधिकारियों का कहना है कि नव निर्मित प्रयोगशालाओं के लिए तकनीकी कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो पाने से वे बंद हैं।
कथन-
जिला मुख्यालय पर तय लक्ष्य से ज्यादा ही नमूने आ जाते हैं। उनका विश्लेषण करके उनकी रिपोर्ट भी किसानों को दे दी जाती है। ब्लॉक मुख्यालय पर प्रयोगशालाएं तो पांच साल पहले बन चुकी हैं, लेकिन तकनीकी व अन्य कर्मचारी नहींं होने से काम नहीं कर पा रही हैं। यहां तो नाइट्रोजन की कमी जांच में आ रही है। इससे पौधे की वृद्धि और उपज की गुणवत्ता के साथ उत्पादन भी 20 प्रतिशत तक प्रभावित होता है।
राजेश त्रिपाठी, प्रयोगशाला प्रभारी, भिण्ड

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