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भिंड

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल बेचने की जद्दोजहद, चार लाख किसानों में से सिर्फ 33383 ही करा पाए पंजीयन

पांच दिन बढ़ाने के बाद भी नहीं मिला ज्यादा फायदा, जिले में हो पाए किसानों के 8.34 फीसद पंजीयन
 

भिंडFeb 26, 2021 / 09:54 pm

हुसैन अली

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल बेचने की जद्दोजहद, चार लाख किसानों में से सिर्फ 33383 ही करा पाए पंजीयन

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल बेचने की जद्दोजहद, चार लाख किसानों में से सिर्फ 33383 ही करा पाए पंजीयन

भिण्ड. किसानों को रबी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए मध्यप्रदेश में पंजीयन कराना अनिवार्य है। लिहाजा पंजीयन के लिए शासन द्वारा 20 फरवरी तक का समय दिया गया था जिसे बाद में पांच दिन बढ़ाकर 25 फरवरी कर दिया गया। कुल मिलाकर किसानों को 30 कार्य दिवस में पंजीयन कराने थे। ऐसे में चार लाख किसानों में से महज 8.34 फीसद 33383 किसान ही पंजीयन करा पाए हैं।
हैरानी की बात ये है कि जिला प्रशासन केवल इस वर्ष ही नहीं बल्कि पिछले तीन साल से 30 हजार के आंकड़े के इर्दगिर्द ही पंजीयन कर पा रहा है। ऐसे में जिले के 91 फीसद से ज्यादा किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी फसलें नहीं बेच पा रहे हैं। विदित हो कि वर्ष 2019 में गेहूं, चना, मसूर व सरसों की फसल के लिए कुल 30702 पंजीयन हुए थे। वहीं वर्ष 2020 में एमएसपी के लिए किसानों द्वारा कराए गए पंजीयनों की संख्या 29386 ही रह गई थी, जबकि वर्ष 2021 में 33383 पंजीयन हुए। भले ही किसानों के पंजीयन की संख्या गुजरे वर्ष की तुलना में करीब 4000 ज्यादा हो गई है, लेकिन रकबा बीते वर्ष के मुकाबले 7400 हेक्टेयर घट गया है।
आधार कार्ड को खसरा खतौनी से लिंक कराने की बाध्यता से नहीं बढ़ पाई पंजीयन संख्या

उल्लेखनीय है कि शासन द्वारा अचानक से किसानों के समक्ष पंजीयन कराने के लिए आधार कार्ड को खसरा खतौनी से लिंक कराने का नियम लागू कर दिया। ऐसे में किसान दस्तावेज लिए भटकते रहे। कई दिनों तक सरवर नहीं चलने से पंजीयन केंद्र पर पंजीयन की प्रक्रिया ही ठप रही। इतना ही नहीं 20 फरवरी तक का जो समय दिया गया था उसमें भी पांच अवकाश थे ऐसे में 25 कार्य दिवस ही पंजीयन के लिए रह गए। हालांकि शासन द्वारा बाद में २५ फरवरी तक पंजीयन की तिथि कर दी गई। कुल मिलाकर 30 दिवस में पर्याप्त संख्या में कृषक अपने पंजीयन नहीं करा पाए।
ऐसे बढ़े इस वर्ष 4000 पंजीयन और ऐसे घटा फसल का रकबा

बता दें कि प्रशासनिक स्तर पर किसानों के पंजीयन का आंकड़ा 30 हजार के इर्द-गिर्द अटका हुआ है। इससे ज्यादा किसानों के पंजीयन हो ही नहीं पा रहे। इस वर्ष जो किसानों के पंजीयन की संख्या करीब 4000 बढ़ी है उसकी वजह बटांकन और बंटवारा है। उदाहरण स्वरूप पहले घर के एक मुखिया के नाम पंजीयन हुआ था इस बार उसी घर में दो या तीन बंटवारे हो जाने से संख्या बढ़ गई। बतादें कि बीते वर्ष 103810.82 हेक्टेयर रकबे का पंजीयन हुआ था जबकि 2021 में महज 90448 हेक्टेयर रकबे का पंजीयन हुआ है।
शत प्रतिशत नहीं तो कम से कम 50 फीसद पंजीयन आवश्यक

जिले के किसानों की दशा सुधारने के लिए न्यूनतम 50 फीसद किसानों के पंजीयन आवश्यक हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर जिले में महज आठ से नौ फीसद ही पंजीयन हो पा रहे हैं जो चिंतनीय है। इस परिपाटी के चलते किसानों की माली हालत सुधरने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। पंजीयन अधिक संख्या में नहीं होने के पीछे एक वजह ये भी है कि क्षेत्र का किसान अपने हक के प्रति जागरूक नहीं है। कई साल से बेहद कम होते आ रहे पंजीयन के बावजूद किसी प्रकार का विरोध या आक्रोश सामने नहीं आया है।
कुछ किसान कम फसल करते हैं जिसके लिए वह स्वत: ही पंजीयन नहीं कराते। वहीं जिले में कुल रबी फसल का रकबा 108100 हेक्टेयर है, जो किसान रह गए थे उनके पंजीयन बढ़ाए गए पांच दिनों में हो गए हैं।
डॉ. वीरेंद्र नवल सिंह रावत, कलेक्टर भिण्ड

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