इससे अवैध कॉलोनाइजिंग को तो प्रोत्साहन मिल ही रहा है, एक नए तरह के घोटाले/भ्रष्टाचार को भी जन्म दिया जा रहा है। ये विकास कार्य ऐसी बस्तियों में कराए गए हैं, जो किसी खेत मालिक या कॉलोनाइजर ने निजी कृषि भूमि पर अवैध रूप से बसाई हैं। इन कॉलोनियों को वैध किए बिना वहां विकास कार्य कराने का यह सिलसिला अब भी जारी है। नियमानुसार वैध रिहायशी इलाकों में ही ये विकास कार्य कराए जा सकते हैं। अगर किसी अवैध कॉलोनी या बस्ती में इन्हें कराया भी जाता है तो नगर पालिका उनकी पूरी या आंशिक लागत संबंधित कॉलोनाइजर से वसूलती है।
शहर में ३५ से ज्यादा अवैध कॉलोनियां : नगर पालिका ने शहर में लगभग ३५ से ज्यादा अवैध कॉलोनियों को चिह्नित किया है। इनका निर्माण गुजरे २० से ३० सालों में हुआ है। अधिकांश ग्वालियर इटावा नेशनल हाईवे और उसके बायपास पर और भिण्ड अटेर राजमार्ग पर खेती की जमीनों पर खड़ी की गई हैं। इनमें सड़क, बिजली, पानी, ड्र्रेनेज-सीवेज जैसी बुनियादी नागरिक सुविधाओं की कॉलोनजरों द्वारा कोई व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं। इनमेंं मकान बनाकर रहने वाले हजारों लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। जल निकास न होने से वहां गंदे पानी के तालाब भरे हैं व सड़कें दलदल में तब्दील हैं। गाहे-ब-गाहे इन अवैध कॉलोनियों के निवासी नगर पालिका व प्रशासन के सामने सड़क, बिजली, पानी व जलनिकास आदि की समस्याओं का रोना रोते रहते हैं। अटेर रोड के वार्ड नंबर ०१ व ३९ में १२ से ज्यादा अवैध कॉलोनियाँ हैं, जिनमें अवैध कॉलोनाइजरों ने नगरपालिका के अधिकारियों से साठगांठ कर नगरपालिका से करोड़ों रुपए लागत की तमाम सीसी सड़कों, नालियों, पुलियों का निर्माण तथा हैण्डपंपों की स्थापना करा ली है जिनके गवाह वहां निर्माण कार्यों के शिलान्यास व लोकार्पण के वक्त नगर पालिका द्वारा लगाए गए पत्थर हैं, जबकि तमाम वैध कॉलोनियों व बस्तियोंं के लोग आज भी सड़क, नालियों व पेयजल के लिए तरस रहे हैं। जिला प्रशासन ने अवैध कॉलोनाइजिंग को रोकने के लिए गुजरे एक साल में अवैध कॉलोनाइजरों पर लगभग १० करोड़ रुपए से ज्यादा का जुर्माना किया है, पर नगर पालिका इनके खिलाफ बजाय प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के उन्हें प्रश्रय देने का काम कर रही है।
शहर में है 200 अवैध कॉलोनियां यहां बतादें कि प्रदेश सरकार ३१ दिसंबर २०१६ के पहले विकसित की गई सभी अवैध कालोनियोंं को वैध करने पर विचार कर रही है, जिसका जिम्मा स्थानीय नगरीय निकायों को सौंपा है। शहर में कुल घोषित अघोषित अवैध कॉलोनियेां की संख्या नगरपालिका के अनुमान के विपरीत तकरीबन २०० है, जबकि वैध कॉलोनियां केवल दर्जन भर हैं। आवासीय कॉलोनी विकसित करने के लिए संबंधित को कॉलोनाइङ्क्षजंग का लायसेन्स लेना पड़ता है तथा कॉलोनी में जल-मल निकासी, बिजली, पेयजल, सड़क नालियों, उद्यान, स्कूल, अस्पताल, बाजार आदि की व्यवस्थाएं सुनिश्चित करनी होती हैं, लेकिन अवैध कॉलोनाइजर भारी मुनाफा कमाकर इन कामों पर होने वाले करोड़ों के खर्च से बच जाते हैं।
अवैध कॉलोनियों में विकास कार्य न हों, यह देखना अधिकारियों का काम है। गुजरे सालों में इन कॉलोनियां में ऐसे कार्य किन परिस्थितियों में हुए हैं, इसकी पड़ताल कराएंगे। कलावती वीरेन्द्र मिहोलिया, अध्यक्ष नपा भिण्ड