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भिंड

‘धार्मिक कार्यक्रम करने के बाद भी आज का मानव दु:खी’

कार्यक्रम: आचार्य प्रसन्न सागर की पदयात्रा में शामिल होने पहुंचे श्रद्वालु

भिंडJan 16, 2020 / 11:06 pm

Rajeev Goswami

‘धार्मिक कार्यक्रम करने के बाद भी आज का मानव दु:खी’

‘धार्मिक कार्यक्रम करने के बाद भी आज का मानव दु:खी’

भिण्ड. गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज से पुष्पगिरि तीर्थक्षेत्र में हाल ही में आचार्य पदवी मिलने के पश्चात् 27 जनवरी को पदयात्रा करते हुए आ रहे आचार्य प्रसन्न सागर महाराज के साथ भीषण सर्दी में भिण्ड से प्रज्ञसंघ के तत्वावधान में कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए श्रद्वालुओं की टोली मकर संक्रांति के दिन रवाना हुई। आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने भिण्ड के श्रद्वालुओं के लिए सोनागिरि तीर्थक्षेत्र में आशीष बचन कहे।
आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि आज का व्यक्ति हर तरफ से दुखी है, परेशान है। जबकि वह खूब धार्मिक कार्य के अनुष्ठान इत्यादि करता है,लेकिन उसका फल उसको प्राप्त नही हो पाता है, जिसके कारण व्यक्ति इधर-उधर की बातों एवं झाड़ा- फूंकी में लगा हुआ हैं। उन्होनें कहा कि व्यक्ति धर्म कार्य तो कर रहा है,लेकिन वह जानने का प्रयास नही कर रहा है कि आखिर में चूक कहां हो रही है। मुनिश्री ने कहा कि धार्मिक कार्य करने एवं ईश्वरीय भाव रखने के पश्चात् हम अपने मूल सिद्वांतों और कर्तव्यों को भूल चुके है। समाज और व्यक्तियों में यदि खोई हुई नैतिकता वापस आ जाए तो इंसान स्वमेव ही सुखी हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस दिन बाजारों में जूते दुकानों में कांच के शोकेश में बिकना प्रारंभ हो जाए और किताबें फुटपाथ पर बिकना शुरू हो जाए उस दिन समझ लेना इस देश को अब ज्ञान की नहीं जूतों की जरूरत है। आज समाज में नैतिकता मर चुकी है,मानवता विलुप्त हो चुकी है, आस्था को पुन: जगाने के लिए मैं भिण्ड अहिंसा संकल्प पदयात्रा के साथ भिण्ड आ रहा हूं। आचार्य ने वर्ष 2004 में गुवाहाटी से यात्रा प्रारंभ की थी। तबसे लगातार आज तक पदबिहार करते हुए जन-जन में अहिंसा का संदेश फैला रहे है।
गिनीज बुक में दर्ज होंगे कार्यक्रम

मीडिया प्रभारी मुकेश जैन एवं रिषभ जैन ने बताया कि 27 जनवरी को महाराज का प्रवेश होने के उपरांत 01 फरवरी से 0& फरवरी तक होने वाले ऐतिहासिक कार्यक्रमों को गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड की भी दर्ज किए जाएगा। सोनागिरि में आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि भिण्ड का पुण्य अपने आप में विशेष है। जहां पर अधिकांशत: साधुओं के विचरण होते ही रहते है। ऐतिहासिक कार्यक्रमों में सबसे बड़ा स्नान एवं हवन होगा। स्नान करने वाले के वस्त्र गीले भी नही होगे। हवन ऐसा होगा इसमें धुंआ नही होगा। उक्त कार्यक्रम में व्यक्ति की आधि-व्याधि को दूर करने के लिए महास्नान एवं निर्धूय हवन किया जाएगा।

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